पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को इस उपासना का लाभ अधिक मिलता है

Edited By ,Updated: 22 May, 2017 12:34 PM

women gain more benefit from this worship than men

मां गायत्री को वेदों की माता कहा गया है। गायत्री माता की उपासना से जो फल मिलता है, उसका शब्दों में वर्णन करना सम्भव नहीं है। यह वैदिक मंत्रों में वेदसार है, सर्वश्रेष्ठ है। जिस प्रकार मां संतान को जन्म देती है, उसी

मां गायत्री को वेदों की माता कहा गया है। गायत्री माता की उपासना से जो फल मिलता है, उसका शब्दों में वर्णन करना सम्भव नहीं है। यह वैदिक मंत्रों में वेदसार है, सर्वश्रेष्ठ है। जिस प्रकार मां संतान को जन्म देती है, उसी प्रकार वेदमाता से सारे वेद उत्पन्न हुए हैं। इसीलिए वेदमाता गायत्री की उपासना एवं जाप से समस्त वैदिक ज्ञान प्राप्त हो जाता है और साधक वेदमय हो जाता है। प्रत्येक मनुष्य के अंदर शक्ति है जिसे हम आत्मा या आंतरिक शक्ति मानते हैं। गायत्री मंत्र की सहायता से हम उस आंतरिक शक्ति या आत्मा को शुद्ध, पवित्र व शक्तिशाली बनाने में सफल होते हैं।


साधकों का उपास्य गायत्री ही हो सकती है। यह ईष्ट बनने योग्य है। गायत्री का ईष्ट के रूप में वरण सर्वोत्तम चयन है। इतना निश्चित-निर्धारण करने पर आत्मिक-प्रगति का उपक्रम सुनिश्चित गति से, द्रुतगति से अग्रगामी बनने लगता है। 


गायत्री को गुरुमंत्र भी कहा गया है। प्राचीनकाल में बालक जब गुरुकुल में विद्या पढऩे जाते थे तो उन्हें वेदारम्भ संस्कार के समय गुरुमंत्र के रूप में गायत्री की ही शिक्षा दी जाती थी। वेद का आरंभ वेदमाता गायत्री से होता है। प्राचीन काल में गायत्री मंत्र के अतिरिक्त और कोई मंत्र न था।


पुरुषों की भांति स्त्रियां भी गायत्री उपासना से लाभान्वित हो सकती हैं। कई आध्यात्मिक तत्ववेताओं का यह कहना है कि पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को गायत्री उपासना का लाभ अधिक मिलता है।


गायत्री मंत्र- गायत्री मंत्र जो 24 अक्षरों का होता है, उसे वास्तव में 24 वर्णीय मंत्र कहते हैं।


‘ऊं भूर्भव स्व: तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात।’


गायत्री मंत्र की सकाम साधना के लिए सवा लाख का संकल्प लेना चाहिए। संकल्प लेते समय अपनी कामना सिद्धि का उल्लेख करना चाहिए। जो लोग सवा लाख मंत्र का जाप करने में अपने आप को असमर्थ पाते हैं, उन्हें 24 हजार मंत्रों का ही संकल्प लेना चाहिए। जितना मंत्र जपें, उसका दशांश घी की आहुति से नित्य हवन करते जाएं।
गायत्री उपासकों को उपासना विधि-विधान भली प्रकार समझ लेना चाहिए क्योंकि विधिपूर्वक साधना करना एक महत्वपूर्ण बात है। किसी कार्य को उचित क्रिया पद्धति के साथ किया जाए तो उसका लाभ एवं फल ठीक प्राप्त होता है।


शरीर को शुद्ध करके साधना पर बैठना चाहिए। साधारणत: स्नान द्वारा ही शरीर की शुद्धि होती है पर किसी विवशता की दशा में हाथ-मुंह धोकर गीले कपड़े से शरीर पोंछकर काम चलाया जा सकता है। साधना के समय जिन सूती वस्त्रों को शरीर पर धारण किया जाए, वे धुले हुए होने चाहिएं। पालथी मार कर सीधे ढंग से बैठना चाहिए। कष्टसाध्य आसनों से चित में अस्थिरता आती है। बिना कुछ बिछाए जमीन पर नहीं बैठना चाहिए। कुश का आसन, चटाई का आसन आदि सर्वोत्तम हैं।


माला तुलसी या चंदन की लेनी चाहिए। प्रात:काल से 2 घंटे पूर्व गायत्री साधना आरम्भ की जा सकती है। दिन में किसी भी समय जप हो सकता है। सूर्य अस्त होने के एक घंटे बाद तक जप कर लेना चाहिए, दो घंटे प्रात:काल के और एक घंटा सायंकाल का। ये तीन घंटे छोड़कर रात्रि के अन्य भागों में नियमित गायत्री साधना नहीं होती। 


मौन मानसिक जप किसी भी समय हो सकता है। प्रात:काल पूर्व की ओर, शाम को पश्चिम की ओर मुख करके बैठने का विधान है परन्तु यदि मूर्त या चित्र किसी स्थान पर स्थापित हो तो दिशा का विचार न करके उसके सम्मुख ही बैठना उचित है। माला जपते समय सुमेरू (माला के आरंभ का सबसे बड़ा दाना) का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। एक माला पूरी होने पर उसे मस्तक से लगाकर पीछे को ही उलट देना चाहिए। इस प्रकार सुमेरू का उल्लंघन नहीं होता। तर्जनी उंगली का जप के समय उपयोग नहीं किया जाता है।


जप नियमित संख्या में तथा नियत स्थान पर करना उचित है। यदि कभी बाहर जाने या अन्य कारणों से जप छूट जाए तो आगे थोड़ा-थोड़ा करके उस छूटे हुए जप को पूरा कर लेना चाहिए और एक माला प्रायश्चित स्वरूप अधिक करनी चाहिए। यदि साधक मन से, पूर्ण आस्था से, विश्वास से मां गायत्री की साधना करते हैं तो साधक की संकल्पित मनोकामना अवश्य ही पूर्ण होगी। 

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!