यमलोक यात्रा के दौरान बेचनी पड़ती है ये चीज, यमदूतों से बचने के लिए आज ही कमाएं

Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Jul, 2017 09:01 AM

yamalok yatra after death

गरुड़ पुराण में बताया गया है कि यमलोक का रास्ता भयानक और पीड़ा देने वाला है। वहां एक नदी भी बहती है जोकि सौ योजन अर्थात

गरुड़ पुराण में बताया गया है कि यमलोक का रास्ता भयानक और पीड़ा देने वाला है। वहां एक नदी भी बहती है जोकि सौ योजन अर्थात एक सौ बीस किलोमीटर है। इस नदी में जल के स्थान पर रक्त और मवाद बहता है और इसके तट हड्डियों से भरे हैं। मगरमच्छ, सूई के समान मुखवाले भयानक कृमि, मछली और वज्र जैसी चोंच वाले गिद्धों का यह निवास स्थल है। 


यम के दूत जब धरती से लाए गए व्यक्ति को इस नदी के समीप लाकर छोड़ देते हैं तो नदी में से जोर-जोर से गरजने की आवाज आने लगती है। नदी में प्रवाहित रक्त उफान मारने लगता है।  पापी मनुष्य की जीवात्मा डर के मारे थर-थर कांपने लगती है। केवल एक नाव के द्वारा ही इस नदी को पार किया जा सकता है। उस नाव का नाविक एक प्रेत है। जो पिंड से बने शरीर में बसी आत्मा से प्रश्र करता है कि किस पुण्य के बल पर तुम नदी पार करोगे। जिस व्यक्ति ने अपने जीवनकाल में गौदान किया हो केवल वह व्यक्ति इस नदी को पार कर सकता है, अन्य लोगों को यमदूत नाक में कांटा फंसाकर आकाश मार्ग से नदी के ऊपर से खींचते हुए ले जाते हैं।  


शास्त्रों में कुछ ऐसे व्रत और उपवास हैं जिनका पालन करने से गोदान का फल प्राप्त होता है। पुराणों के अनुसार दान वितरण है। इस नदी का नाम वैतरणी है। अत: दान कर जो पुण्य कमाया जाता है उसके बल पर ही वैतरणी नदी को पार किया जा सकता है। 


वैतरणी नदी की यात्रा को सुखद बनाने के लिए मृतक व्यक्ति के नाम वैतरणी गोदान का विशेष महत्व है। पद्धति तो यह है कि मृत्यु काल में गौमाता की पूंछ हाथ में पकड़ाई जाती है या स्पर्श करवाई जाती है। लेकिन ऐसा न होने की स्थिति में गाय का ध्यान करवा कर प्रार्थना इस प्रकार करवानी चाहिए।

 
वैतरणी गोदान मंत्र
‘धेनुके त्वं प्रतीक्षास्व यमद्वार महापथे।
उतितीर्षुरहं भद्रे वैतरणयै नमौऽस्तुते।।
पिण्डदान कृत्वा यथा संभमं गोदान कुर्यात।’

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