Edited By ,Updated: 04 Feb, 2017 10:49 AM
प्राचीनकाल में ऋषि-मुनि, देव-दानव आदि तप के बल पर भगवान को प्रसन्न कर मनचाही सिद्धियां प्राप्त करते थे। आज विज्ञान इतनी तरक्की कर गया है की चुटकियों में लगभग सभी इच्छाएं पूरी
प्राचीनकाल में ऋषि-मुनि, देव-दानव आदि तप के बल पर भगवान को प्रसन्न कर मनचाही सिद्धियां प्राप्त करते थे। आज विज्ञान इतनी तरक्की कर गया है की चुटकियों में लगभग सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। कल और आज में यदि कुछ परिवर्तित नहीं हुआ, तो वो है मृत्यु का अटल सत्य। जो कल भी परमात्मा के हाथ में थी और आज भी है। संसार क्षणभंगुर है, जो जीव इस संसार में आया है वो मृत्यु में वलीन अवश्य होगा। सनातन धर्म के शास्त्रों की मानें तो मृत्यु उपरांत दो तरह से गति होती है, अच्छे कर्म करने वाला स्वर्ग के सुख भोग भोगता है और बुरे कर्मों का फल नर्क की यातनाओं के रूप में मिलता है।
नर्क का नाम सुनते ही शरीर में विराजित आत्मा कांप उठती है। नर्क से बचने के लिए शास्त्रों में बहुत से उपाय बताए गए हैं। कुछ ऐसी चीजें हैं, जो मृत्यु के वक्त व्यक्ति के पास हों तो यमदूत उसे नर्क नहीं ले जाते और शरीर से जब प्राण निकलते हैं उस पीड़ा से भी राहत दिलवाते हैं।
तुलसी का पौधा सिर के पास हो अथवा तुलसी का पत्ता मस्तक पर, यमदूत दोनों ही स्थितियों में व्यक्ति के पास नहीं आते। शास्त्र कहते हैं तुलसी विष्णुप्रिया है, तभी तो भगवान के मस्तक पर शोभा पाती हैं।
मृत्यु के समय मुंह में गंगाजल होने से तन और मन दोनों पवित्र हो जाते हैं। धर्मशास्त्र कहते हैं की जब कोई शुद्धता से शरीर का त्याग करता है तो उसे यमदंड से राहत मिलती है।
श्रीमद्भागवत का पाठ अंत समय में जिसके कानों में पड़ता है उस व्यक्ति का शरीर से मोह समाप्त हो जाता है। दुख सहे बिना आत्मा शरीर का त्याग करती है और मुक्ति पाती है। इसके अतिरिक्त अपने धर्म ग्रंथ को सुनते हुए प्राण त्यागने वाला नर्क का कष्ट नहीं भोगता। अंत समय में जिस संबंध में सोचा जाता है,मृत्यु उपरांत वैसी ही गति होती है।