आप भी सत्संग में जाते हैं लेकिन असर नहीं होता, तो जानें इसके कारण

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 Mar, 2017 12:49 PM

you also go to satsang but do not have any effect

एक शिष्य अपने गुरु के पास आकर बोला, ‘गुरु जी लोग हमेशा प्रश्र करते हैं कि सत्संग का असर क्यों नहीं होता?

एक शिष्य अपने गुरु के पास आकर बोला, ‘गुरु जी लोग हमेशा प्रश्र करते हैं कि सत्संग का असर क्यों नहीं होता? मेरे मन में भी यह प्रश्र चक्कर लगा रहा है। कृपा करके मुझे इसका उत्तर समझाएं।’ 


गुरु जी ने उसके सवाल पर कोई प्रतिक्रिया नहीं जताई लेकिन थोड़ी देर बाद बोले, ‘वत्स जाओ, एक घड़ा मदिरा ले आओ।’


शिष्य मदिरा का नाम सुनते ही अवाक हो गया। ‘गुरुजी और शराब’ वह सोचता ही रह गया। गुरुजी ने फिर कहा, ‘सोचते क्या हो, जाओ एक घड़ा मदिरा ले आओ। वह गया और मदिरा का घड़ा ले आया।’ 


फिर गुरुजी ने शिष्य से कहा, ‘यह सारी मदिरा पी लो।’ शिष्य यह बात सुनकर अचंभित हुआ। 


आगाह करते हुए गुरुजी ने फिर से कहा, ‘वत्स एक बात का ध्यान रखना, मदिरा मुंह में लेने पर निगलना मत। इसे शीघ्र ही थूक देना। मदिरा को गले से नीचे न उतारना। शिष्य ने वही किया, मदिरा को मुंह में भरकर तत्काल थूक देता, देखते-देखते घड़ा खाली हो गया।’


फिर आकर उसने गुरुजी से कहा, ‘गुरुदेव घड़ा खाली हो गया।’ 


गुरुजी ने पूछा, ‘तुझे नशा आया या नहीं?’


शिष्य बोला, ‘गुरुदेव, नशा तो बिल्कुल नहीं आया।’ 


गुरुजी बोले, ‘अरे मदिरा का पूरा घड़ा खाली कर गए और नशा नहीं चढ़ा। यह कैसे सम्भव है?’ 


शिष्य ने कहा, ‘गुरुदेव, नशा तो तब आता जब मदिरा गले से नीचे उतरती। गले के नीचे तो एक बूंद भी नहीं गई, फिर नशा कैसे चढ़ता?’ 


गुरुजी ने समझाया, सत्संग को ऊपर-ऊपर से जान लेते हो, सुन लेते हो गले के नीचे तो उतारते ही नहीं, व्यवहार में यह आता नहीं तो प्रभाव कैसे पड़ेगा। सत्संग के वचन को केवल कानों से नहीं, मन की गहराई से भी सुनना होता है। एक-एक वचन को हृदय में उतारना पड़ता है। उस पर आचरण करना ही सत्संग के वचनों का सम्मान है।

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