आपकी भी चाह है एक ऐसे घर की, जिसमें सुख-शांति और मोहब्बत हो

Edited By Punjab Kesari,Updated: 03 Jul, 2017 12:10 PM

you also want a house that has peace and love

हर किसी की चाह होती है एक ऐसे घर की, जिसमें सुख-शांति और मोहब्बत हो। शायद इसी कल्पना के

हर किसी की चाह होती है एक ऐसे घर की, जिसमें सुख-शांति और मोहब्बत हो। शायद इसी कल्पना के साथ ही हर कोई अपनी गृहस्थी की शुरूआत करता है... लेकिन अक्सर यह कल्पना हकीकत का रूप नहीं ले पाती और पति-पत्नी में आपसी मनमुटाव, तनाव, झगड़े और अंतत: अलगाव तक हो जाता है। कभी आपसी समझ की कमी के चलते तो कभी अन्य कारणों को जिम्मेदार ठहराया जाता है, लेकिन क्या कभी आपने गौर किया है कि आपके बैडरूम का वास्तु भी आपके आपसी संबंधों में दरार का एक बड़ा कारण हो सकता है?


शयनकक्ष बहुत ही पर्सनल जगह है और वहां व्यक्ति रिलैक्स व एंज्वॉय करता है, लेकिन यदि वहां का वास्तु सही नहीं होगा तो तनावमुक्ति की यह जगह तनाव का कारण बन जाएगी। वहां नकारात्मक शक्तियां उत्पन्न होकर नकारात्मक प्रभाव डालेंगी, जिससे व्यक्ति की मानसिक दशा प्रभावित होगी और आपसी संबंधों को प्रभावित करेगी। शयनकक्ष में वास्तु की दृष्टि से निम्रलिखित बातों का ख्याल रखना चाहिए, ताकि अधिक से अधिक सकारात्मक ऊर्जा ग्रहण की जा सके और नकारात्मक ऊर्जा को दूर रखा जा सके।


कैसा हो आपके शयनकक्ष का वास्तु? उसमें क्या कमी है और उसे कैसे ठीक किया जा सकता है जिससे आपकी मानसिक दशा अच्छी बनी रहे और आपके संबंधों में प्रगाढ़ता आए... इन्हीं सब बातों के संदर्भ में वास्तु कन्सल्टैंट श्री प्रकाश संघवी के सुझाव :


सिर को उत्तर दिशा में रखकर सोने से न सिर्फ यौन जीवन प्रभावित होता है, बल्कि स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां भी होती हैं। इसकी मुख्य वजह है मैग्रेटिक वेव्स यानी चुंबकीय तरंगें जो हमें प्रभावित करती हैं। 


आपका बैड लकड़ी का होना चाहिए, धातुओं के बैड के प्रयोग से बचें क्योंकि उनसे पति-पत्नी के बीच ईगो प्रॉब्लम होती है।


बैड दीवार को सपोर्ट करते हुए होना चाहिए, इससे रिश्ते में मजबूती आती है। आपके बैड को सपोर्ट करने वाली दीवार पर कोई खिड़की न हो, इससे विवाहेत्तर संबंधों की संभावना बढ़ जाती है क्योंकि दीवार का सपोर्ट चला जाता है। 


इसी तरह से बैडरूम के दरवाजे की दिशा दक्षिण-पश्चिम की ओर नहीं होनी चाहिए।


शयनकक्ष में आईना कभी भी बैड को फेस करते हुए नहीं होना चाहिए क्योंकि उसके रिफ्लैक्शन से नींद डिस्टर्ब होती है और जाहिर है नींद सही नहीं होगी तो उसका नकारात्मक प्रभाव हमारी मानसिक दशा, दिनचर्या और जीवन से जुड़े तमाम पहलुओं पर पड़ेगा।


कोशिश करें कि जहां तक हो सके शयनकक्ष में कोई भी इलैक्ट्रॉनिक का सामान न हो, खासतौर से टी.वी., क्योंकि उनसे इलैक्ट्रोमैग्रेटिक वेव्स प्रभावित होती हैं, वैसे भी टी.वी. वगैरह से संबंध तो प्रभावित होते ही हैं। अगर पति ऑफिस से आते ही टी.वी. देखने बैठ जाए तो पत्नी को गुस्सा आता है और यदि पत्नी खाना परोसने के वक्त या समाचार के समय ही अपने पसंदीदा सीरियल्स देखना चाहे तो तनाव हो सकता है।


शयनकक्ष में मंदिर व श्रीयंत्र वगैरह नहीं रखना चाहिए, यहां हम भगवान की मूर्त जैसी पवित्र चीजें रखेंगे तो उसका बुरा प्रभाव पड़ेगा। हां यदि किसी के यहां, एक ही कमरा है तो वे लकड़ी का मंदिर रखकर उसे पर्दे से ढक सकते हैं। 


वस्तुओं के साथ-साथ रंगों का भी प्रभाव पड़ता है। दीवारों का रंग ग्रे, ब्लैक या ब्ल्यू नहीं होना चाहिए। ये रंग आपके मूड को प्रभावित करते हैं और नकारात्मक भावनाएं उत्पन्न करते हैं तथा डलनैस भी पैदा करते हैं। 


कमरे में क्रिएटिव चीजें रखें, चाहे वे पेंटिंग हो या कुछ और? आप फ्लावर पॉट रख सकते हैं, इससे एक ताजगी का एहसास भी बना रहेगा। यूं तो यह पति-पत्नी की पसंद पर निर्भर करता है कि कमरे को किस तरह सजाया जाए, लेकिन चीजों के सही-गलत प्रभाव को समझते हुए और एक-दूसरे की पसंद का ख्याल रखते हुए यदि मिलकर रचनात्मक तरीके से यह काम किया जाए तो बेहतर होगा।


साज-सज्जा के अलावा बहुत जरूरी है कि कमरा साफ-सुथरा रहे। वैसे भी यूं ही नहीं कहा गया कि ईश्वर का भी वहीं वास होता है जहां स्वच्छता होती है। अत: न सिर्फ वास्तु के दृष्टिकोण से बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी साफ-सफाई जरूरी है। यह आपके मूड को भी प्रभावित करती है।


कपड़ों का रंग भी बहुत महत्व रखता है जितना संभव हो, गहरे रंग के कपड़ों से दूर रहें, जैसे-ब्लैक, डार्क ब्ल्यू, इन रंगों से ईगो क्लैशेका हो सकते हैं। पति-पत्नी में मतभेद बढ़ेंगे तो जाहिर है संबंधों में भी दरार आएगी।


आपने अक्सर इस बात पर गौर तो किया ही होगा कि कोई भी व्यक्ति जो बड़े मुकाम पर है, वह काला रंग पसंद करता है, उसके कपड़ों का रंग और यहां तक कि गाड़ी का रंग भी काला होता है। दरअसल यह रंग ही ईगो को दर्शाता है। अत: आपसी संबंधों में रंग के इस नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए बेहतर होगा कि इसका कम ही इस्तेमाल किया जाए।  

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