बाबा चमलियाल की दरगाह जहां पाक रेंजर भी झुकाते हैं शीश

Edited By ,Updated: 27 Jul, 2016 01:05 PM

Chamaliyal Baba Dargah

भारत में एक जगह ऐसी भी है जहां पाकिस्तानी रेंजर न सिर्फ आते हैं बल्कि सिर भी झुकाते हैं। वह अद्भुत जगह है जम्मू से करीब 45 किलोमीटर दूर रामगढ़ सैक्टर में। साम्बा जिले के रामगढ़ सैक्टर में बाबा चमलियाल की दरगाह पर हर साल एक मेला लगता है। इस मेले में

भारत में एक जगह ऐसी भी है जहां पाकिस्तानी रेंजर न सिर्फ आते हैं बल्कि सिर भी झुकाते हैं। वह अद्भुत जगह है जम्मू से करीब 45 किलोमीटर दूर रामगढ़ सैक्टर में। साम्बा जिले के रामगढ़ सैक्टर में बाबा चमलियाल की दरगाह पर हर साल एक मेला लगता है। इस मेले में भारत-पाकिस्तान की सीमा का बंधन टूट जाता है। साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रतीक बाबा की दरगाह पर दुश्मन समझे जाने वाले पाकिस्तान के लोग भी आकर एक-दूसरे के गले मिलते हैं। भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद पिछले 69 सालों से यह परम्परा चली आ रही है।
 
साम्बा जिले की भारत-पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर ऐतिहासिक बाबा चमलियाल मेले में हर साल हजारों श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। मजार पर माथा टेकने के लिए राज्य के अलावा बाहर से भी लोग आते हैं। इस मेले में आने वाले पाकिस्तानी रेंजर अपने साथ दरगाह पर चढ़ाने के लिए चादर लाते हैं। वे खुद दरगाह पर चादर चढ़ाकर सिर झुकाते हैं। लौटते समय पाक रेंजर ट्रैक्टर के साथ पानी के टैंकर तथा मिट्टी की ट्रालियां ले जाते हैं। पानी को ‘शरबत’ तथा ‘मिट्टी’ को ‘शक्कर’ के नाम से पुकारा जाता है। 
 
 
मेले में शांति ध्वजों के साथ पाकिस्तानी रेंजर के अधिकारी अपने सहयोगियों के साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर जीरो लाइन पर खड़े बी.एस.एफ. के अधिकारियों और उनके साथी एक-दूसरे को सैल्यूट कर तपती दोपहरी में एक-दूसरे का हालचाल पूछते हैं। कुछ साल पहले तक पाक रेंजर अपने साथ अपनी पत्नियों और बच्चों को भी लाते थे लेकिन बाद में तनाव बढऩे पर सिर्फ रेंजर ही आने लगे।
 
 
इस सीमा चौकी पर एक मजार होने से मेले के साथ धार्मिक भावनाएं भी जुड़ी हैं। कहा जाता है कि जिस कुएं का पानी सीमा पार भेजा जाता है उसमें गंधक की मात्रा बहुत अधिक है। इस विशेष स्थान की मिट्टी में कुछ ऐसे कैमिकल पाए जाते हैं जो चर्म रोगों के इलाज में कारगर हैं। इसलिए इस पानी तथा मिट्टी का लेप बना चर्म रोगी शरीर पर लगाकर चर्म रोगों से मुक्ति पाते हैं।
 
अंतर्राष्ट्रीय सीमा से महज पचास गज पीछे यह मेला लगता है। दिन में कई टैंकर पानी तथा कई ट्रालियां मिट्टी उस ओर भिजवाई जाती हैं। बी.एस.एफ. तथा पाकिस्तानी रेंजर इन रिवाजों को आज भी निभाते आ रहे हैं। वैसे तो भारत के लोग चर्म रोगों से मुक्ति पाने के लिए इस कुएं के पानी तथा विशेष रासायनिक तत्वों वाली मिट्टी का लेप लगाने पूरे साल आते रहते हैं मगर सीमा पार यानी पाकिस्तान के लोगों को सिर्फ मेले वाले दिन ही यह मौका मिलता है। जीरो लाइन पर चमलियाल सीमांत चौकी पर जो मजार है वह बाबा दिलीप सिंह मिन्हास की समाधि है।
 
कहते हैं कि बाबा के शिष्य को एक बार ‘चंबल’ नामक चर्म रोग हो गया था। बाबा ने उसे इस स्थान पर स्थित एक विशेष कुएं से पानी तथा मिट्टी का लेप शरीर पर लगाने को दिया था। लेप लगाने से शिष्य बिल्कुल ठीक हो गया। 
 
इसके बाद बाबा की प्रसिद्धि बढऩे लगी तो गांव के किसी व्यक्ति ने उनका गला काटकर हत्या कर दी। बाद में उनकी हत्या वाले स्थान पर उनकी समाधि बनाई गई। सीमा पर स्थित बाबा की मजार पर पाकिस्तानी रेंजर अपनी जनता की ओर से दी हुई चादर लाकर बाबा की मजार पर चढ़ाते हैं। यहां लोग सीमा पर शांति और सीमा के दोनों ओर अमन की दुआ मांगते हैं। 

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