Edited By ,Updated: 23 May, 2016 12:37 PM
भारत में चार धाम बद्रीनाथ, जगन्नाथपुरी, द्वारिकापुरी एवं सेतुबंध रामेश्वरम को माना गया है पर हिमालयी क्षेत्र में चार धाम-यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ व बद्रीनाथ
भारत में चार धाम बद्रीनाथ, जगन्नाथपुरी, द्वारिकापुरी एवं सेतुबंध रामेश्वरम को माना गया है पर हिमालयी क्षेत्र में चार धाम-यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ व बद्रीनाथ को माना गया है। इस क्षेत्र की यात्रा चारधाम की यात्रा मानी जाती है। इनमें से एक केदारनाथ, भगवान शिव महादेव के द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक हैं। केदार स्वरूप महादेव में से प्रथम हैं केदारनाथ महादेव और छठे केदार हैं भगवान पशुपतिनाथ महादेव-काठमांडू (नेपाल), अन्य चार केदार महादेव हिमालयी क्षेत्र में ही विराजमान हैं।
चार धाम की यात्रा में केदारनाथ का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि यदि कोई श्रद्धालु आस्थावान केदारनाथ के दर्शन किए बिना बद्रीनाथ आकर भगवान बद्रीनारायण के दर्शन करता है तो उसकी पूरी यात्रा निष्फल रहती है, वहीं जो बसाहा (नंदीकेश्वर-वृषभ-बैल) की पीठ के स्वरूप (केदार) में विराजमान महादेव के दर्शन कर लेता है वह पापों से मुक्ति पाकर पावन हो जाता है।
उत्तराखंड या उत्तरांचल में हिमालय पर्वत के मध्य एक चौकोर चबूतरे पर केदारनाथ का भव्य मंदिर स्थित है। यह समुद्रतल से 3593 फुट की ऊंचाई पर 6 फुट ऊंचे चौकोर प्लेटफार्म पर बना हुआ एक भव्य मंदिर है। मंदिर में मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में नंदी (बैल) वाहन के रूप में विराजमान हैं। प्रात: सूर्य की प्रथम किरण के साथ ही यहां के शिवपिंड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर विशुद्ध गोघृत (गाय का घी) का लेपन किया जाता है। पश्चात विधि-विधान से पूजन कर धूप-दीप जलाकर आरती उतारी जाती है। तब श्रद्धालु भक्तों को दर्शन, पूजन-अर्चन के लिए आने दिया जाता है। संध्या के समय भगवान शिव का श्रृंगार किया जाता है। उन्हें विविध प्रकार के चित्ताकर्षक ढंग से सजाया जाता है।
सनातन धर्म संस्कृति की मान्यता के अनुसार सनातन काल से ही उक्त महादेव स्थान पूजित है। वहां भगवान शिव स्वत: प्रकट होकर विराजमान हैं वह भी ज्योतिर्लिंग के रूप में और केदार स्वरूप में। कुछ लोग इसे आद्य शंकराचार्य (509-477 ई.पू.) द्वारा स्थापित व निर्मित मानते हैं जो एक भ्रम है। वास्तव में आदिशंकर ने अपनी मां द्वारा प्रदत्त गहने-जेवर आदि से प्राप्त राशि द्वारा इस केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार-पुनरुद्धार किया था। ऐसा ही उल्लेख उनके जीवन वृत्त से प्राप्त होता है। प्रथम शंकराचार्य जी ने कांची की पहाडिय़ों में गुहावास किया और ब्रह्मलीन हुए, वहीं छठे सुप्रसिद्ध शंकराचार्य अभिनव तीर्थ ने इसी केदारनाथ मंदिर के पीछे से स्वर्गारोहण किया था। इसीलिए उनकी स्मृति में वहां शंकराचार्य का स्मारक निर्मित है।