PIX: यहां खेलते थे भगवान श्रीकृष्ण, परिक्रमा करने से धुलते हैं पीढ़ियों के पाप

Edited By ,Updated: 23 Aug, 2016 10:23 AM

govardhana parvat

गोवर्धन पर्वत उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के अंतर्गत आता है। ये गिरिराज के नाम से भी प्रसिद्ध है। गोवर्धन और इसके आस-पास के क्षेत्र को ब्रज भूमि

गोवर्धन पर्वत उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के अंतर्गत आता है। ये गिरिराज के नाम से भी प्रसिद्ध है। गोवर्धन और इसके आस-पास के क्षेत्र को ब्रज भूमि कहते हैं। भगवान श्री कृष्ण बचपन में यहीं खेलते थे। श्री कृष्ण ने द्वापर युग में ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठा लिया था। गोवर्धन पर्वत को भक्क्तजन गिरिराज जी भी कहते हैं।

 

मानसी गंगा पर गिरिराज का मुखारविंद है, जहां उनका पूजन होता है। इसी के आस-पास गोवर्धनग्राम बसा है। यहां वज्रनाभ के एकचक्रेश्वर महादेव का मंदिर है। गोवर्धन पर्वत पर दीपावली के दिन दीपमाला सजाई जाती हैं। विशेषकर छोटी दीवाली को यहां दीप जलाने देशभर से बहुत संख्या में श्रद्धालु आते हैं। माना जाता है कि यहां दीप प्रज्वलित करने से रोगों का नाश होता है।

 

भक्त यहां दंडौती परिक्रमा करते हैं। ये परिक्रमा करने के लिए भक्त आगे हाथ फैलाकर जमीन पर लेटते हैं, जहां हाथ पहुंते हैं वहां पर निशान लगा कर फिर आगे लेटते हैं। यह परिक्रमा एक से दो सप्ताह में पूर्ण होती है। माना जाता है कि इस परिक्रमा को करने से पीढ़ियों के पाप धुल जाते हैं। मानसी गंगा पर प्रत्येक वर्ष आषाढ़ी पूर्णिमा तथा कार्तिक अमावस्या को मेला लगता है। इस मेले में लाखों संख्यां में श्रद्धालु आते हैं।

 

गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। इसके अन्तर्गत लगभग 21 कि.मी. की परिक्रमा की जाती है। परिक्रमा मार्ग में प्रसिद्ध स्‍थल पड़ते हैं।जैसे- आन्यौर, राधाकुंड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, गोविंद कुंड, पूंछरी का लोटा अौर दानघाटी। इसके अतिरिक्त यहां गोरोचन, धर्मरोचन, पापमोचन और ऋणमोचन चार कुंड हैं तथा भरतपुर नरेश द्वारा बनवाई हुई छतिरयां तथा सुंदर इमारतें हैं। जहां से परिक्रमा आरंभ होती है, वहां दानघाटी नामक प्रसिद्ध मंदिर है।

 

गोवर्द्धन पर्वत राधाकुंड से 3 मील की दूरी पर स्थित है। यहां कुसुम सरोवर बना है जो बहुत सुंदर है। यहां वज्रनाभ के हरिदेवजी जी थे। औरंगजेब काल में वे यहां से चले गए थे अौर उनके स्थान पर दूसरी प्रतिमा स्थापित कर दी गई। मथुरा से दीघ को जाने वाली सड़क गोवर्धन पार करके जहां पर निकलती है, वह स्थान दानघाटी कहलाता है। इस स्थान पर श्रीकृष्ण दान लेते थे। 

 

दिल्ली से मथुरा लगभग डेढ़ सौ कि.मी. दूर है। उसके पश्चात गोवर्धन की मथुरा से दूरी 20 कि.मी. है। गोवर्धन पहुंचने के लिए मथुरा जंक्‍शन या बस अड्डे, स्टेशन से जीप, बस, टेक्सी आदि साधन उपलब्ध होते हैं। यहां रुकने के लिए गोवर्धन एवं जतीपुरा में कई धर्मशालाएं एवं होटल हैं। 

 

 

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