भगवान शिव के इस भक्त की कभी मृत्यु नहीं हो सकती, इस मंदिर में आते हैं हर रोज

Edited By ,Updated: 07 Mar, 2016 09:18 AM

shiva mahadeva khodra

सनातन धर्म में भगवान शंकर को देवों के देव महादेव कहकर संबोधित किया जाता है। वेदों के अनुसार भगवान शंकर को निर्गुण निराकार रूप में लिंग के रूप में पूजा जाता है।

सनातन धर्म में भगवान शंकर को देवों के देव महादेव कहकर संबोधित किया जाता है। वेदों के अनुसार भगवान शंकर को निर्गुण निराकार रूप में लिंग के रूप में पूजा जाता है। अध्यात्मिक रूप से मूलतः शिव ही एक मात्र धत घट के वासी परमात्मा परमेश्वर हैं। पुराणोक्त दृष्टि के अनुसार पृथवी लोक पर शक्तिपुंज स्वरुप में कई गूढ़ और रहस्यमयी शिवलिंग व ज्योतिर्लिंग असिस्त्व में हैं, जो स्वयंसिद्ध और अलोलिक हैं। 

भारतवर्ष में ऐसा ही एक शिवलिंग खोदरा महादेव के नाम से मध्यप्रदेश राज्य में महू ज़िले के निकट स्थि‍त है। भूगोलिक दृष्टि से खोदरा महादेव का पावन धाम 1000 फुट ऊंची पहाड़ी के बीच स्थित है। करही क्षेत्र का खोदरा महादेव मंदिर नर्मदा नदी के शालीवाहन घाट के निकट स्थित है। मध्यप्रदेश स्थित खोदरा महादेव का यह स्थान महू डिस्ट्रिक्ट से तकरीबन 12 किलोमीटर दूर चोरल क्षेत्र से तकरीबन 10 किलोमीटर दूर विंध्यांचल दुर्ग की पहाड़ी क्षेत्र में विद्यमान है। शिवलिंग स्थित पहाड़ी के ‍नीचे खोदरा गांव बसा हुआ है, इस कारण इस स्थान का नाम खोदरा महादेव पड़ा है।

इतिहासिक घटनाओं पर आधारित लोकजीवन में प्रचलित कथाओं के अनुसार। खोदरा महादेव धाम में चमत्कारिक शिवलिंग के साथ-साथ शिव वाहन नंदी भी विराजमान हैं। किंवदंती दृष्टांत के अनुसार इस स्थान को सात चिरंजीवी पुरुषों में से एक द्रोणपुत्र अश्वत्थामा की तपस्थली के रूप में भी जाना जाता है। लोकमान्यता के  अनुसार आज भी द्रोणाचार्य पुत्र अश्वत्थामा खोदरा महादेव धाम में तप करने आते हैं।

महाभारत के बारे में जानने वाले लोग अश्वत्थामा के बारे में निश्चित तौर पर जानते होंगे। महाभारत के कई प्रमुख चरित्रों में से एक शिव भक्त अश्वत्थामा का वजूद आज भी है। द्वापरयुग में जन्मे अश्वत्थामा की गिनती उस युग के श्रेष्ठ योद्धाओं में होती थी। वे गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र व कुरु वंश के राजगुरु कृपाचार्य के भानजे थे। महाभारत युद्ध से पूर्व गुरु द्रोणाचार्य और उनकी पत्नी कृपि ने ऋषिकेश तपोवन में तमसा नदी के किनारे तपेश्वर स्वय्मभू शिवलिंग पर शिव तपस्या की थी। जिस पर भगवान शंकर ने इन्हे पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था। इसी के फलस्वरूप माता कृपि ने एक सुन्दर तेजश्वी अश्वत्थामा को जन्म दिया। जन्म से ही अश्वत्थामा के मस्तक में एक अमूल्य मणि विद्यमान थी। जो कि उन्हें दैत्य, दानव, शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से निर्भय रखती थी।

महाभारत युद्ध में जब युधिष्ठिर ने द्रोणाचार्य को अश्वत्थामा की मृत्यु की जानकारी दी तो यह सुनकर द्रोणाचार्य हतप्रश रह गए उसी अवसर का लाभ उठाकर पांचाल नरेश द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न ने उनका वध कर दिया। पिता की मृत्यु ने अश्वत्थामा को विचलित कर दिया। महाभारत युद्ध के पश्चात जब अश्वत्थामा ने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए पांडव पुत्रों का वध कर दिया तथा पांडव वंश के समूल नाश के लिए उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया, तब भगवान श्री कृष्ण ने परीक्षित की रक्षा कर दंड स्वरुप अश्वत्थामा के माथे पर लगी मणि निकालकर उन्हें तेजहीन कर दिया और युगों-युगों तक भटकते रहने का शाप दिया था।

लोकमान्यता के अनुसार खोदरा महादेव कि पहाड़ी पर स्थित गुफा में शिवलिंग के पास एक गुफा और है जिसमें नागमणि सर्प भी रहते हैं। इस पहाड़ी के आसपास कुछ गांव हैं, लेकिन वहां लोगों की बस्ती नाममात्र की है। ‍हिमालय पर रहने वाले साधु-तपस्वी इस स्थान पर तप के लिए आते हैं। आसपास के वृक्षों पर लगने वाले फलों और पत्तियों का भोजन कर वे इस स्थान पर तप करते हैं।

आचार्य कमल नंदलाल

ईमेल kamal.nandlal@gmail.com 

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