पृथ्वी के सभी तीर्थों की परिक्रमा का फल प्राप्त करने के लिए करें इस धाम की यात्रा

Edited By ,Updated: 29 Jun, 2016 10:46 AM

vrindavan parikrama

ब्रजभूमि इस भूतल पर पूर्ण परात्पर परब्रह्म भगवान श्री कृष्ण की अवतार और लीला भूमि है। ‘ब्रज’ शब्द ब्रह्म की जन्मस्थली (ब्रृब्रह्म, जृजन्म) का बोध कराता है-

ब्रजभूमि इस भूतल पर पूर्ण परात्पर परब्रह्म भगवान श्री कृष्ण की अवतार और लीला भूमि है। ‘ब्रज’ शब्द ब्रह्म की जन्मस्थली (ब्रृब्रह्म, जृजन्म) का बोध कराता है-

ब्रजनं व्याप्तिरित्युत्त्या व्यापनाद् ब्रज उच्यते।

गुणातीतं परं ब्रह्य व्यापकं ब्रज उच्यते।।

सम्पूर्ण जगत में व्याप्त ब्रह्य की भांति यह ब्रज-भूमि भी व्यापक है। ‘वराह-पुराण’ के अनुसार हरिशयनी एकादशी के बाद चार महीने तक पृथ्वी के सभी तीर्थ ब्रज-मंडल में वास करते हैं, अत: ब्रज-मंडल अर्थात वृंदावन की परिक्रमा से पृथ्वी के सभी तीर्थों की परिक्रमा का फल प्राप्त होता है। यही कारण है कि ब्रजभूमि में विद्यमान स्थलों की अधिकांश परिक्रमाएं इन्हीं चार महीनों में सम्पन्न होती हैं।

वृंदावन की परिक्रमा का वर्णन

वृंदावन परिक्रमा, श्री कृष्ण के भक्तों द्वारा की गई एक धार्मिक यात्रा है। हालांकि इस यात्रा के आरंभ और अंत का कोई विशिष्ट स्थान नहीं है लेकिन यदि आप जहां से यात्रा शुरू करते हैं, अगर वहीं खत्म करें तभी आपकी यात्रा पूरी मानी जाती है। हालांकि इस्कॉन मंदिर को यात्रा के आरंभ करने का मुख्य स्थल मान कर यात्रा प्रारंभ की जाती है। भक्त अपनी हर कामना पूरी करने के लिए एकादशी के दिन वृंदावन परिक्रमा करते हैं। इस परिक्रमा की लंबाई 10 किलोमीटर है।

 

भविष्य पुराण में वृंदावन की परिक्रमा पांच कोस की बताई गई है।  वराह संहिता में रास स्थली वृंदावन की परिधि एक योजन बताई गई है किंतु वृंदावन की वर्तमान परिक्रमा साढ़े तीन कोस की है। वृंदावन की वर्तमान परिक्रमा प्राय: सूर्यघाट से प्रारंभ होती है।

 

यदि आप परिक्रमा को इस्कॉन मंदिर में कृष्ण-बलराम के मंदिर के सामने से शुरू करते हैं तो लगभग आधा किलोमीटर चलने पर कृष्ण-बलराम वृक्ष आता है। इस वृक्ष की परिक्रमा करना  शुभ माना जाता है। इससे थोड़ी दूरी पर गौतम ऋषि का आश्रम और वराह घाट के दर्शन आप कर सकते हैं। इससे आगे थोड़ा दूर कच्चे रास्ते को पार करके इस्कॉन गौशाला और पार्क हैं। गौशाला को पार करके लगभग आधा किलोमीटर चलने पर आपको लाल पत्थरों से बने मदन मोहन जी के मंदिर के दर्शन होंगे। इस मंदिर को देखने के बाद कुछ ही दूरी पर आपको कालिया घाट के दर्शन होंगे।

 

इससे आगे एक लकड़ी का पुल पार करते हुए लगभग डेढ़ किलोमीटर चल कर आप इमली तला पहुंचकर इमली तला वृक्ष के दर्शन कर सकते हैं। इसके बाद आप केसी घाट को पार करते हुए टेकरी रानी के मंदिर पहुंच जाते हैं। टेकरी रानी के मंदिर के दर्शन के बाद आप विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में पहुंच कर भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियों के दर्शन कर सकते हैं। कुछ ही दूरी पर आप चैतन्य महाप्रभु के मंदिर के दर्शन भी कर सकते हैं। इसके बाद आप मथुरा-वृंदावन सड़क के साथ चलते हुए परिक्रमा स्थल के शुरूआत के स्थान पर पहुंच जाते हैं। यह परिक्रमा नंगे पांव करना अनिवार्य है।

 

इसके मार्ग में क्रमश: मदनेश्वर महादेव, जुगलकिशोर, इमलीतला, शृंगार वट, चीरघाट, केशीघाट, धीर समीर, सुदामा कुटी, मालाधारी अखाड़ा, टटिया स्थान, चेतनकुटि, नरहरिदास, आदि बद्री, श्याम कुटी, बीजभुजी, हनुमान, गोपालखार, देवी राजपुर, वृंदावनेश्वरी, नीमकरोरी, संकट-मोचन हनुमान, गोर दाऊजी, अटलबिहारी, वाराह घाट, गौतम ऋषि, मदनटेर, गऊघाट, रामगिलोला, कालीदह एवं मदनमोहन मंदिर आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।

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