इनकी हिम्मत को सलाम- लड़कियों के लिए रोल मॉडल बनी ये महिला

Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Mar, 2018 03:13 PM

his courage to salute  role for girls

नारी साहस और समर्पण का दूसरा नाम है। इस बात की उदाहरण देश की असंख्य महिलाएं हैं जिन्होंने इनके...

नेशनल डेस्क : नारी साहस और समर्पण का दूसरा नाम है। इस बात की उदाहरण देश की असंख्य महिलाएं हैं जिन्होंने इनके बल पर ऐसी अनुकरणीय और प्रेरणादायक मिसालें पेश की हैं कि उन्हें नमन करने को जी चाहता है। कोलकाता के शांतिपुर इलाके की सूफिया बीवी ऐसी ही एक महिला हैं। वह अपने अपाहिज पति की देखभाल और घर चलाने हेतु प्रतिदिन एक रेहड़ी पर सब्जियां लाद कर बेचती हैं। इसके लिए रोजाना उन्हें 30 किलोमीटर का सफर करना पड़ता है लेकिन उनके साहस के आगे यह दूरी कुछ भी नहीं।

51 वर्षीय सूफिया बीवी कहती हैं, ‘‘शुरू में साड़ी पहन कर रेहड़ी चलाना बहुत मुश्किल लगता था परन्तु अपना अस्तित्व बचाए रखने हेतु इसे सीखना जरूरी था। आज मैं महीने में लगभग 5 हजार रुपए कमा लेती हूं।’’ सूफिया के बड़े बेटे उनसे अलग रहते हैं और अपने माता-पिता की देखभाल नहीं करते। सूफिया का संघर्ष रोजाना सुबह चार बजे शुरू हो जाता है जब वह दुगली के गुप्तीपारा से सब्जियां खरीद कर लाती हैं और फिर इन्हें शांतिपुरा के घर-घर जाकर बेचती हैं।

सूफिया की पड़ोसन प्रवीण बीवी कहती हैं, ‘‘वह हमारी बेटियों की रोल मॉडल बन चुकी हैं।’’ सूफिया एक वर्ष पहले तक सिर पर टोकरी उठा कर सब्जियां बेचा करती थीं। फिर कुछ समाज सेवियों ने पैसा इकट्ठा करके उन्हें रेहड़ी ले दी। सूफिया के पति मोतियार रहमान को 2012 में सैरेब्रल अटैक आया था। उससे पहले वह जुलाहे का काम करते थे। वह कहते हैं, ‘‘जब मैं उन्हें खुद को जिंदा रखने के लिए संघर्ष करते देखता हूं तो मुझे बहुत दुख होता है।’’दोनों का एक 13 वर्षीय बेटा ही उनके साथ रहता है। सूफिया ने पहले जुलाहे का काम करने की कोशिश की थी परन्तु उसमें कमाई अधिक नहीं थी इसीलिए उन्होंने सब्जी बेचने का निर्णय लिया था । कोलकाता के मुर्शिदाबाद के शमशेरगंज इलाके की झुमा खातून सिर्फ 16 वर्ष की है और बीड़िया बनाने का काम करती है। वह हाल ही में अपनी माध्यमिक परीक्षा की तैयारी करके हटी है। झुमा के कंधों पर मानसिक तौर पर अस्थिर एक बहन तथा स्कूल जाते दो छोटे भाइयों की जिम्मेदारी है।

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झुमा की मां सितारा बीवी की मृत्यु 7 वर्ष पहले हो गई थी और 2 वर्ष पहले उसके पिता लुत्फल हक भी चल बसे थे। वह कहती हैं, ‘‘पिता की मृत्यु के बाद मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। मुझे बीड़ी बनानी आती थी क्योंकि मैंने अपने माता-पिता को यह करते देखा था। अब मैं रोजाना 225 रुपए कमा लेती हूं। मेरा छोटा भाई जो पांचवीं कक्षा में पढ़ता है बीड़ी बनाने में मेरी सहायता करता है।’’ झुमा की चार बड़ी बहनों की शादी हो चुकी है और वे अपने परिवारों के साथ रहती हैं। झुमा का बड़ा भाई शेताब शेख विवाह के बाद उनसे अलग रहने लगा था। जिस हाई स्कूल में झुमा पढ़ती है उसका हैडमास्टर मिजाइर रहमान उसकी बहुत तारीफ करता है। वह कहता है, ‘‘चूंकि उसे बहुत मेहनत करनी पड़ती है इसलिए मैंने उससे कहा है कि यदि वह हफ्ते में दो-तीन दिन ही स्कूल आए तो भी चलेगा। वह पढ़ाई में बहुत अच्छी है।’’

 

 

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