Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Sep, 2017 06:12 PM
कहते है कि किसी व्यक्ति के जीवन में टीचर वह व्यक्ति होता है जो उसकाे गलत ...
नई दिल्ली : कहते है कि किसी व्यक्ति के जीवन में टीचर वह व्यक्ति होता है जो उसकाे गलत रास्ते पर जाने से रोकता है और उसके जीवन को नई राह देता है और उसी राह पर चल कर व्यक्ति अपने जीवन में नई ऊचाईयों को छूता है। आइए जानते है टीचर डे के अवसर पर एक एेसे व्यक्ति के बारे में जो अपने पिता को ही अपना शिक्षक मानते है वो आज जो भी है अपने पिता की बदौलत है । फतेहपुर जिले के सुजानपुर गांव में जन्मे महेंद्र बहादुर सिंह बांदा में डीएम का पद संभाल रहे हैं। जनसुनवाई और उसके निस्तारण में उनका काम इतना बेहतरीन रहा कि उन्हें यूपी सरकार ने सम्मानित किया। महेंद्र बताते है कि उनकी इस सक्सेस के पीछे उनके पिता की मेहनत है। वो उन्हें ही अपनी लाइफ का टीचर मानते हैं।
2010 बैच के आईएएस अफसर महेंद्र बताते हैं, "हमारा गांव फतेहपुर जिले के अंदर पड़ता है। मेरे पिता राम सिंह चकबंदी विभाग में क्लर्क थे। मैं चार भाइयों में सबसे छोटा था, इसलिए परिवार में सबसे प्यारा भी था।" मैं जब थर्ड क्लास में था, तब एक दिन गांव के टीचर ने पिताजी को स्कूल बुलवाया। पिताजी को लगा कि मैंने कोई शरारत की है, जिसकी वजह से उन्हें बुलाया गया है। जब वे स्कूल पहुंचे तो टीचर ने कहा- आपका बेटा पढ़ने में कुछ ज्यादा ही तेज है। आप इसका एडमिशन शहर के किसी स्कूल में करवाइए। इसका करियर बन जाएगा।"महेंद्र के पिता को यह बात इतनी अच्छी लगी कि वे फतेहपुर शिफ्ट होने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने मिड टर्म में ही बेटे का एडमिशन फतेहपुर के एक प्राइवेट स्कूल में करवाया।
एकसाथ 5 सब्जेक्ट में हो गए फेल
महेंद्र सिंह बताते हैं, "मेरा एडमिशन तो हो गया, लेकिन दो महीने बाद हुए हाफ ईयरली एग्जाम में मेरा रिजल्ट बेहद खराब रहा। मैं 6 में से 5 सब्जेक्ट्स में फेल हो गया। मैं घर आकर बहुत रोया तब पापा ने मुझे समझाया कि तुम मेहनत करो, सब अच्छा होगा।" महेंद्र ने पिता की बात का मान रखा और उसी साल फाइनल एग्जाम में क्लास में सेकंड पोजिशन हासिल की। उसके बाद हर एग्जाम में वे टॉपर बनने लगे।
पिता खुद बनाते थे खाना, तैयार करते थे नोट्स
आईएएस महेंद्र अपने पिता को लाइफ का सबसे बड़ा टीचर मानते हैं। उन्होंने बताया, "शहर में एडमिशन के बाद हम लोग गांव नहीं जा पाते थे। शहर से हमारा गांव बहुत दूर था। पिताजी मेरे साथ किराए का कमरा लेकर रहने लगे। पिताजी सुबह ड्यूटी पर जाने से पहले मेरा खाना बना लेते थे। वो ही मुझे तैयार करके स्कूल भेजते थे। मां तीन भाइयों के साथ गांव में थीं। यही नहीं, जूनियर क्लासेस तक तो वो मेरे नोट्स भी तैयार करवाते थे।" मेरे पिताजी लगातार मेरे लिए मेहनत करते रहे। वो खाना बनाने से लेकर कपड़े धोने और साफ-सफाई का काम तक खुद ही करते थे। मुझे पढ़ाई में डिस्टर्ब न हो, इसके लिए उन्होंने कभी मुझसे कभी काम में हाथ बंटाने के लिए नहीं कहा।
IIT में हुए थे फेल, ऐसे बने आईएएस
महेंद्र ने 12वीं के बाद आईआईटी एंट्रेंस एग्जाम दिया था, लेकिन वे उसमें फेल हुए। उनका सिलेक्शन यूपीटीयू में हुआ था, जहां से उन्होंने बीटेक की डिग्री हासिल की।
"मैं इंजीनियरिंग खत्म होते ही सिविल सर्विसेज की तैयारी में लग गया था। इस दौरान मेरी कई कंपनियों में जॉब भी लगी, लेकिन मेरा फोकस IAS ही था।" इन्होंने 2010 में यूपीएससी एग्जाम दिया और पहले ही अटैम्प्ट में क्लीयर कर गए। यही इनकी पिता का सपना भी था, जो कि उन्होंने पूरा किया। महेंद्र बांदा जिले के डीएम हैं।