जियोस्पेशल टेक्नोलॉजी: आकाशीय तकनीक के ज्ञान से पाएं रोजगार

Edited By ,Updated: 22 Feb, 2017 06:36 PM

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जियोइंफॉर्मेटिक्स के बढ़ते महत्व का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अब यह सरकारी ...

नई दिल्ली : जियोइंफॉर्मेटिक्स के बढ़ते महत्व का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अब यह सरकारी और निजी क्षेत्र के संगठनों में बड़े निर्णयों का आधार बनने लगा है। इसकी मदद से मिलिट्री, ट्रांसपोर्ट नेटवर्क प्लानिंग, एग्रीकल्चर, मीटिअरोलॉजी, ओशियनोग्राफी और मैरीटाइम ट्रांसपोर्ट से संबंधित काम पहले से काफी आसान हो गए है।

बात आपके शहर, घर और पसंदीदा जगहों की सेटेलाइट तस्वीरों की हो या फिर उस जीपीएस तकनीक की, जिसकी मदद से आप कोई पता तलाशते हैं, किसी अनजाने क्षेत्र में जाने के लिए आसान रास्ता ढूंढ़ते हैं या कोई नजदीकी होटल खोजते हैं। कुछ साल पहले तक कोरी कल्पना लगने वाली ये तकनीकें अब हमारी जिंदगी का हिस्सा बन चुकी हैं। यह सब संभव हुआ है जियोस्पेशल टेक्नोलॉजी के कारण।

क्या है यह तकनीक
जीआईएस या जियोमेटिक्स एक नई वैज्ञानिक अवधारणा है, जिसका इस्तेमाल जियोग्राफिकल इंफॉर्मेशन साइंस या जियोस्पेशल इंफॉर्मेशन स्टडीज में होता है। अकादमिक रूप से यह जियोइंफॉर्मेटिक्स विषय की एक शाखा है। इस विषय के सिद्धांतों को आधार बनाकर तैयार की गई तकनीकों को जियोस्पेशल टेक्नोलॉजी कहा जाता है। इस तकनीक की मदद से सभी तरह की भौगोलिक सूचनाओं को इकट्ठा करके उनका संग्रहण, विश्लेषण और प्रबंधन किया जा सकता है। इस कार्य में जियोग्राफिक इंफॉर्मेशन सिस्टम (जीआईएस), ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) और रिमोट सेंसिंग का प्रयोग किया जाता है।

भारत में जियोमेटिक्स का क्षेत्र अभी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है, लेकिन एक उद्योग के रूप में यह तेजी से विस्तार कर रहा है। इसको अपने कामकाज के लिए बड़े पैमाने पर स्पेशल डाटा (आकाशीय आंकड़ों) की जरूरत होती है। मगर शुरुआती दौर में होने की वजह से इस उद्योग में कुशल पेशेवरों की कमी बनी हुई है। इस कारण यहां रोजगार और तरक्की की दृष्टि से काफी संभावनाएं हैं।

जियोइंफॉर्मेटिक्स शब्द जियोग्राफी और इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी से मिलकर बना है। इस तकनीक का लाभ परिवहन, रक्षा, विनिर्माण और संचार सहित सैकडमें क्षेत्रों में लिया जा रहा है। अर्बन प्लानिंग, लैंड यूज मैनेजमेंट, इन-कार नेविगेशन सिस्टम, वर्चुअल ग्लोब, पब्लिक हेल्थ, इंवायरन्मेंटल मॉडलिंग एंड एनालिसिस, मिलिट्री, ट्रांसपोर्ट नेटवर्क प्लानिंग एंड मैनेजमेंट, एग्रीकल्चर, मीटिअरोलॉजी, ओशियनोग्राफी एंड एटमॉस्फेयर मॉडलिंग, बिजनेस लोकेशन प्लानिंग, आर्किटेक्चर, आर्कियोलॉजिकल रिकंस्ट्रक्शन, टेलीकम्यूनिकेशंस, क्रिमिनोलॉजी एंड क्राइम सिमुलेशन, एविएशन और मैरीटाइम ट्रांसपोर्ट आदि से संबंधित कार्यो में जियोइंफॉर्मेटिक्स काफी मददगार साबित हो रहा है।

क्लाइमेट चेंज स्टडीज, टेलीकम्यूनिकेशंस, डिजास्टर मैनेजमेंट और उसकी तैयारियों में इस तकनीक से विशेष मदद मिलती है। इसी तरह बिजनेस लोकेशन प्लानिंग, आर्किटेक्चर और आर्कियोलॉजिकल रिकंस्ट्रक्शन में इस तकनीक को अपनाए जाने के बाद काम की गुणवत्ता में काफी सुधार आया है। जियोग्राफी और अर्थ साइंस के विशेषज्ञों और शोधार्थियों को भी इस तकनीक से सटीक अध्ययन में काफी मदद मिली है।

जियोइंफॉर्मेटिक्स के बढ़ते महत्व का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अब यह सरकारी और निजी क्षेत्र के संगठनों में बड़े निर्णयों का आधार भी बनने लगा है। व्यावसायिक प्रतिष्ठान, पर्यावरण एजेंसियां, सरकार, शोध-शिक्षण संस्थान, सर्वेक्षण और मानचित्रीकरण संगठन अपने कामकाजी फैसलों में इस तकनीक से प्राप्त आकंड़ों को वरीयता देते हैं। कई सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों ने अपने दैनिक कार्यों का प्रबंधन करने के लिए भी स्पेशल डाटा का उपयोग शुरू कर दिया है।

संभावनाएं
जियोस्पेशल टेक्नोलॉजी में कई तरह के रोजगार उपलब्ध हैं। साथ ही नए-नए अवसर भी इस क्षेत्र में पैदा हो रहे हैं। एनालिस्ट, काटरेग्राफर, सर्वेयर, प्लानर, एरियल फोटोग्राफर और मैपिंग टेक्निशियन आदि रोजगार के कुछ प्रमुख विकल्प हैं, जिन्हें जियोस्पेशल टेक्नोलॉजी की पढ़ाई कर रहे छात्र चुन सकते हैं।

प्रमुख रोजगार क्षेत्र और कार्य
आईटी: जीआईएस प्रोग्रामर और जीआईएस डेवलपर
इंवायरन्मेंट: इंवायरन्मेंटल प्लानिंग एंड मैनेजमेंट
गवर्नमेंट (स्टेट एंड सेंट्रल): को-ऑर्डिनेटर, साइंटिस्ट, रिसर्च एसोसिएट और जीआईएस एग्जिक्यूटिव
जियोलॉजी: जियोलॉजिकल एंड जियोमॉफरेलॉजिक मैपिंग, टरेन एंड कडैस्ट्रल मैपिंग और माइनिंग
डिजास्टर मैनेजमेंट: आकलन और राहत कार्यक्रमों में 
एग्रीकल्चर: फसलों का रकबा जानने और नुकसान का आकलन करने में
मिलिट्री: युद्ध की योजना बनाने और युद्ध के बाद के प्रभावों का अनुमान लगाने में
अर्बन: टाउन प्लानिंग, मॉनिटरिंग सर्फेस वाटर और टार्गेटिंग ग्राउंड वाटर
एजुकेशनल इंस्टीटय़ूट: लेक्चरर, रीडर, साइंटिफिक ऑफिसर और प्रोफेसर

जियोइंफॉर्मेटिक्स कंपनियों में मिलेंगे ये पद
जीआईएस मैनेजर
जीआईएस इंजीनियर
जीआईएस एनालिस्ट/ कंसल्टेंट
जीआईएस बिजनेस कंसल्टेंट
जीआईएस प्रोग्रामर
जीआईएस एग्जिक्यूटिव

योग्यता 
जियोइंफॉर्मेटिक्स एक खास क्षेत्र है, जो विषय की बेहतर समझ और गहरी जानकारी की अपेक्षा रखता है। इस क्षेत्र में बतौर छात्र प्रवेश करने के लिए विज्ञान पृष्ठभूमि का होना जरूरी है। जियोग्राफी, जियोलॉजी, एग्रीकल्चर, इंजीनियरिंग, आईटी और कंप्यूटर साइंस में से किसी एक विषय में बैचलर डिग्री प्राप्त करने वाले छात्र जियोइंफॉर्मेटिक्स एंड रिमोट सेंसिंग विषय के एमएससी या एमटेक पाठय़क्रम में दाखिला ले सकते हैं। इसके बाद पीएचडी करने का भी विकल्प रहता है। इन विषयों में शार्ट टर्म डिप्लोमा, सर्टिफिकेट और पीजी डिप्लोमा पाठय़क्रम भी उपलब्ध हैं। इस विषय के पाठय़क्रमों में प्रोजेक्शन सिस्टम से संबंधित तकनीकों, एनोटेशन डाइमेंशन एंड प्लॉटिंग, डाटाबेस मैनेजमेंट, 3 डी विजुअलाइजेशन, थिमेटिक मैपिंग, रिमोट सेंसिंग प्लेटफॉर्म, वेब मैपिंग, फोटोग्रामेट्री, काटरेग्राफी, जियोग्राफिक इंफॉर्मेशन सिस्टम्स और ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम के बारे में जानकारी दी जाती है।

प्रमुख शिक्षण संस्थान 
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ रिमोट सेंसिंग, देहरादून
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी, खड़गपुर, कानपुर और रुड़की
बिरला इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी, रांची, कोलकाता, जयपुर
नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी, हैदराबाद
इसरो, बेंगलुरु
जवाहरलाल नेहरू टेक्निनकल यूनिवर्सिटी, हैदराबाद
सिंबायोसिस इंस्टीटय़ूट ऑफ जियोइंफॉर्मेटिक्स

जरूरी गुण
जटिल मामलों को सुलझाने का कौशल
विश्लेषण करने का हुनर
समस्याओं को भांपने और उनका हल तलाशने की काबिलियत
अपने विषय से गहरा लगाव
नए उपायों को तलाशने का उत्साह
रचनात्मकता और सीखने की ललक
लिखित व मौखिक रूप में भाषा पर गहरी पकड़
नई चीजों को जानने और सीखने में रुचि
अपने विषय क्षेत्र की गहरी जानकारी और उसमें हो रहे बदलावों का ज्ञान
 

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