जैम्स- लैंगिक समानता  के लिए स्कूलों में एक अनूठी पहल

Edited By Punjab Kesari,Updated: 25 Sep, 2017 11:33 AM

james   a unique initiative in schools for gender equality

झारखंड के खुंती जिले के कई स्कूलों की कक्षाएं खाली दिखाई देती हैं जब स्कूल में...

नई दिल्ली :  झारखंड के खुंती जिले के कई स्कूलों की कक्षाएं खाली दिखाई देती हैं जब स्कूल में ‘जैम्स’ क्लास ली जा रही हो। इस कक्षा में हिस्सा लेने के लिए छात्र एक जगह जमा हो जाते हैं। ‘जैम्स’ से तात्पर्य जैंडर इक्विटी मूवमैंट इन स्कूल्स (स्कूलों में लैंगिक समानता आंदोलन) है। यह कार्यक्रम ‘इंटरनैशनल सैंटर फॉर रिसर्च ऑन वूमन’ (आई.सी.आर.डब्ल्यू.), ‘कमेटी ऑफ रिसोर्स ऑर्गेनाइजेशन्स फॉर लिट्रेसी’ (सी.ओ.आर.ओ.) तथा टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस्स) की विशेष पहल है। 

सोच में बदलाव लाना है 
इसका उद्देश्य लैंगिक समानता तथा ङ्क्षलग के आधार पर ङ्क्षहसा को लेकर छात्रों मुख्यत: किशोरों की सोच में बदलाव लाना है। सबसे पहले इस कार्यक्रम को महाराष्ट्र के 45 स्कूलों में शुरू किया गया था जिनमें छठी से आठवीं कक्षा के 2400 छात्र थे। वहां इसकी सफलता को देखते हुए इसे झारखंड के खुंती तथा रांची जिलों के स्कूलों में शुरू किया गया है।  खुंती जिले के शिक्षकों के अनुसार छात्रों में किसी अन्य विषय की कक्षा के लिए इतना उत्साह दिखाई नहीं देता है जितना कि जैम्स कक्षा के लिए। जब भी यह कक्षा लगती है तो अधिकतर छात्रों की कोशिश होती है कि वे उसका हिस्सा बनें। छात्रों को लड़के-लड़कियों में समानता के महत्व के बारे में समझाया  जाता है तथा हिंसा के विरुद्ध आवाज उठाने को भी प्रोत्साहित किया जाता है। कक्षा में उन्हें अपने घरों तथा आस-पास होने वाली हिंसा  के बारे में बात करने को कहा जाता है ताकि ऐसे मुद्दों पर बात करने की उनकी झिझक खत्म हो सके। गत दो वर्ष के दौरान इन स्कूलों में जै्म्स की कई कक्षाएं आयोजित की जा चुकी हैं। इनका असर हुआ है कि अब बच्चों को पता है कि यह किस तरह की हिंसा है। वे अपने साथ होने वाली हिंसा की शिकायत कर सकते हैं। ऐसा पहले नहीं था।

बच्चों के साथ हिंसा
यूनिसैफ के आंकड़ों के अनुसार हिंसा को बचपन का एक सामान्य हिस्सा समझा जाता है और आधे भारतीय बच्चे यौन शोषण का सामना करते हैं। दुनिया भर में 60 प्रतिशत बच्चों को नियमित रूप से शारीरिक सजा दी जाती है। आई.सी.आर.डब्ल्यू के अध्ययन के अनुसार देश में 84 प्रतिशत लड़कियां तथा लड़के हिंसा का सामना करते हैं। इस प्रकार की हिंसा का सामना करने वाले लड़के बड़े होकर स्वयं हिंसक गतिविधियों में लिप्त रहते हैं। ‘जैम्स’ कक्षाओं में विभिन्न रोचक विधियों से बच्चों को हिंसा तथा लैंगिक समानता के विषय में समझाया जाता है। इससे लड़कों के इस नजरिए में बदलाव आया है कि घर का काम करने की सारी जिम्मेदारी उनकी मां या उनकी बहनों की नहीं है अब वे घरों के कामकाज में मां और बहनों का खुशी-खुशी हाथ बंटा रहे हैं। पारम्परिक सोच के बीच यह एक बहुत बड़ा बदलाव है। इन कक्षाओं की बदौलत आज छात्रों में आत्मविश्वास पैदा हुआ है और वे अपने अधिकारों के प्रति पहले से कहीं ज्यादा सजग हैं। इतना ही नहीं, वे अपने तथा दूसरों के साथ होने वाली हिंसा को रोकने के लिए तत्पर रहते हैं और इसके लिए अहिंसक  तरीकों का ही प्रयोग करते हैं। 
इन कक्षाओं में उन्हें शारीरिक तथा यौन बदलावों के बारे में भी मूल जानकारी प्रदान की जाती है। 

दोगुना लाभ
‘जैम्स’ के प्रतिनिधि कार्यक्रम के बारे में पहले स्कूल शिक्षकों को प्रशिक्षित करते हैं जो बाद में छात्रों की कक्षाएं लेते हैं। इस तरह से ‘जैम्स’ का लाभ केवल छात्रों ही नहीं, शिक्षकों की सोच बदलने में भी हुआ है। शिक्षकों के अलावा अभिभावकों में भी बड़े बदलाव दिखाई दिए हैं। शिक्षकों ने बच्चों से संवाद बढ़ा दिया है और अब वे उन्हें सजा नहीं देते हैं। स्कूल में काम देने के मामलों में भी अब लड़के-लड़कियों में भेदभाव नहीं होता है और दोनों को सभी कामों में समान अवसर दिए जा रहे हैं। जैसे कि पहले स्कूलों में साफ-सफाई का काम लड़कियों को दिया जाता था और बाहर के काम लड़कों को। अब ऐसा नहीं है। शिक्षकों के अनुसार अब वे स्वयं भी घर के कामों में अपनी पत्नियों  का हाथ बंटाने लगे हैं। 

आसान नहीं थी चुनौती 
हालांकि, स्कूलों में यह कार्यक्रम शुरू करना कम चुनौतीपूर्ण नहीं था। सबसे कठिन काम शिक्षकों तथा अभिभावकों को राजी करना था। शिक्षकों को भय था कि वे छात्रों के साथ ज्यादा खुल गए तो वे उनका आदर करना बंद कर देंगे। जब यौन संबंधी मुद्दों पर बात करने की बात उठी तो कई पुरुष शिक्षकों ने सिरे से इसे नकार दिया। हैरान करने वाली बात है कि अधिकतर महिला शिक्षक इसके ‘खासकर माहवारी के ’ बारे में लड़कियों को समझाने के लिए तैयार थीं। एक बार शिक्षकों को राजी करने के बाद अभिभावक अगली रुकावट थे क्योंकि उनकी नजरों में भारतीय समाज में लैंगिक भेदभाव एक आम बात थी। हालांकि, इस कार्यक्रम से जुड़े लोगों ने बड़ी मेहनत से उन्हें इस कार्यक्रम के लाभों के बारे में समझाने में कामयाबी पा ली और इसके नतीजे आज सभी के सामने हैं।  झारखंड शिक्षा विभाग ने भी अब छठी कक्षा की पुस्तक में ‘जैम्स’ के बारे में एक पाठ शुरू किया है।

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!