साइन लैंग्वेज में बनाएं करियर, विदेशों में भी मिलेंगे रोजगार के अवसर

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Sep, 2017 12:21 PM

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एक साइन लैंग्वेज इंटरप्रेटर का काम सुनने और बोलने में अक्षम लोगों की...

नई दिल्ली : एक साइन लैंग्वेज इंटरप्रेटर का काम सुनने और बोलने में अक्षम लोगों की भावनाओं, आइडियाज और शब्दों को समझकर इशारों में उनसे बातचीत करना होता है। इंटरप्रेटर होठों से भी बिना बोले उनसे बात कर सकता है। इस कला को सीखने के लिए ही साइन लैंग्वेज का कोर्स किया जाता है । साइन लैंग्वेज यानी मूक-बधिरों की भाषा सीखना आपके कॅरियर के नए रास्ते खोल सकता है। किसी भी भाषा में साइन लैंग्वेज सीख लेने पर आप शिक्षा, समाज सेवा, सरकारी क्षेत्र और बिजनेस से लेकर परफॉर्मिंग आर्ट, मेंटल हेल्थ सरीखे बहुत-से क्षेत्रों में नौकरी पा सकते हैं। इतना ही नहीं संकेतों को समझने और समझाने में माहिर होना, विदेशों में भी रोजगार दिला सकता है।

साइन लैंग्वेज की अहमियत
साइन लैंग्वेज इंटरप्रेटर सामने वाले की बातों को सुनकर, उसके शब्दों को तय संकेतों में ढालकर दूसरे को बताता है। भाषा संकेत अंग्रेजी में सबसे ज्यादा प्रचलित माने जाते हैं। स्कूल-कॉलेजों में मूक-बधिर छात्रों के साथ-साथ सामान्य छात्र भी सांकेतिक भाषा सीख जाते हैं। इस विषय में स्नातक करने वाले छात्र शिक्षा के क्षेत्र में अपना कॅरियर बना सकते हैं। 

बढ़ रही शिक्षकों की मांग
भारत में मूक-बधिर लोगों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है। सांकेतिक भाषा उनकी प्राकृतिक भाषा है। इन्हें शिक्षा और रोजगार के अवसरों से जोड़ने के लिए साइन लैंग्वेज सिखाने वाले शिक्षकों की मांग बढ़ रही है। 

आमदनी का अच्छा स्रोत
इस क्षेत्र में कॅरियर बनाने वालों के पास अच्छी आमदनी का भी मौका होता है। खासकर यदि आप विदेशी एनजीओ या मेडिकल क्षेत्र से जुड़ते हैं तो शुरुआती स्तर पर बीस से पच्चीस हजार रुपये तक आसानी से कमा पा सकते हैं। कुछ सालों के अनुभव के बाद  वेतन भी बढ़ता जाता है। 

रोजगार के ढेरों अवसर
साइन लैंग्वेज सीखने के बाद आपको शिक्षा, समाज सेवा क्षेत्र, सरकारी संस्थानों और बिजनेस से लेकर परफॉर्मिंग आर्ट्स, मेंटल हेल्थ, मेडिकल और कानून सहित बहुत से क्षेत्रों में काम मिल सकता है। स्वयंसेवी संस्थाओं में भी काम करने के काफी अवसर हैं। 

कैसे होती है पढ़ाई
देश के मूक-बधिरों को पढ़ाने के दो तरीके हैं। पहला मौखिक संवाद और दूसरा है इंडियन साइन लैंग्वेज। देश के लगभग 500 स्कूलों में दूसरे तरीके से सिखाने की सुविधा है लेकिन प्रशिक्षित शिक्षकों के अभाव में देश में बड़ी संख्या में जन्म से बधिर बच्चों को शिक्षा नहीं मिल पा रही है। साइन लैंग्वेज में तीन से चार महीने के कोर्स के अलावा शारीरिक अशक्तता से ग्रस्त बच्चों के शिक्षण के लिए कई अन्य कोर्स भी हैं, जिन्हें पूरा करने के बाद अच्छे रोजगार प्राप्त किए जा सकते हैं

कम्यूनिकेटिव इंग्लिश 
यह कोर्स विकलांग छात्रों को इंग्लिश बोलने की कला और उसके लिए आवश्यक गुण सिखाता है। ऐसे छात्रों को ही ध्यान में रखकर यह कोर्स तैयार किया गया है

आईसीटी
इसका मतलब है इंफॉर्मेशन एंड कम्यूनिकेशन टेक्नोलॉजी। इसके तहत दृष्टिहीन छात्रों को चार से पांच महीने में कंप्यूटर पर अपना सॉफ्टवेयर इस्तेमाल में कैसे लाना है, इसकी लैब में ट्रेनिंग दी जाती है। 

ह्ययूमन राइट फॉर डिसएबिलिटीज
यह कोर्स ज्ञान पर आधारित है। इसमें विकलांग छात्रों को आज के समय में उनके अधिकारों से अवगत कराया जाता है। उनके सामाजिक, कानूनी और राजनीतिक अधिकार क्या हैं, इसके बारे में इस कोर्स के माध्यम से जानकारी दी जाती है। 

मास मीडिया
यह कोर्स दिल्ली विश्वविद्यालय में चलने वाले अन्य कॉलेजों के कोर्सों से इस मायने में अलग है क्योंकि इसमें विकलांग छात्रों को न्यूज रीडिंग और एंकरिंग सिखाई जाती है। 

ब्रेल रीडिंग एंड राइटिंग
यह कोर्स ऐसे छात्रों के लिए है, जो ब्रेल लिपि सीखने या सिखाने में रुचि रखते हैं। इस पाठ्यक्रम में दृष्टि संबंधी अक्षमता से ग्रस्त व्यक्तियों के अलावा सामान्य व्यक्ति भी दाखिला ले सकते हैं।

संबंधित संस्थान
इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी, दिल्ली
अली यावर जंग नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर द हियरिंग हैंडीकैप्ट, मुंबई
रामकृष्ण मिशन विवेकानंद यूनिवर्सिटी,कोयंबटूर

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