तस्वीरों में देखिए, इस सरोवर में शक्तियां अर्जित करती हैं डायनें

Edited By ,Updated: 15 Jun, 2015 03:32 PM

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हिमाचल प्रदेश में कई ऐसे सरोवर और झीलें हैं जिनकी अपनी-अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताएं हैं।

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश में कई ऐसे सरोवर और झीलें हैं जिनकी अपनी-अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताएं हैं। इनसे जिला मुख्यालय कुल्लू से सटी लगघाटी भी अछूती नहीं है जिसमें माठासर, बड़ासर और डहणसर जिसे डायनासौर (सरोवर) भी कहा जाता है। इनमें से डायनासौर का अपना ही विशेष महत्व है। 


कुल्लू जिला की लगघाटी के उत्तर-पूर्व, मंडी की चौहार घाटी और कांगड़ा के बड़ा भंगाल के पीछे की ओर करीब 15 से 18 हजार फुट ऊंचाई पर स्थित डायनासौर का घेरा करीब 1 किलोमीटर तक फैला हुआ है। यहां पर हर साल 20 भादों को कुल्लू, कांगड़ा, और मंडी जिला के लोग पवित्र स्नान के लिए पहुंचते हैं। सरोवर के पास दक्षिण में शिव का छोटा सा मंदिर है। माना जाता है कि एक समय में शिव-पार्वती इस सरोवर से होकर मणिकर्ण तथा मणिमहेश के लिए यात्रा पर गए थे। शिव-पार्वती को इस स्थान पर पहुंचने पर रात हो गई।


आधी रात को एक डायन उनके सामने निकली और सरोवर पर अपना अधिकार जमाते हुए बोली कि यह सरोवर मेरा है तुम दोनों को यहां से जाना होगा। डायन ने उन्हें इस प्रकार तंग किया कि अंत में भगवान शिव को क्रोध आया उन्होंने और डायन को त्रिशूल से मार दिया। उसके खून की बूंदें सरोवर में बिखर गईं जोकि बदलकर कई दीपों के रूप में जलने लगीं। एक दिन गद्दी ने भेड़-बकरियां चराते समय उन जलते दीपों को देखा तो उनमें से एक को हाथ में पकड़ा। दीप पकड़ते ही जड़ी-बूटी के रूप में बदल गया।


माना जाता है कि जब गद्दी ने उस जड़ी-बूटी को विशाल शिला पर पीसना शुरू किया तो वह सोने के रूप में परिवर्तित हो गई। लालच में आकर उस गद्दी ने ज्यों ही सोना बन चुके इस पत्थर को तोडऩे की कोशिश की तो वह विशाल पत्थर के रूप में बदल गया। वर्तमान में भी यहां पर सोने के रंग का विशाल पत्थर मौजूद है। भगवान शिव द्वारा डायन का वध करने पर इस स्थान का नाम डायनासौर (सरोवर) पड़ा। मान्यता है कि जब-जब डायनों की शक्तियां क्षीण होने लगती हैं तो अमावस्या और पूर्णिमा के दिन दूर-दूर के इलाकों से डायनें यहां आकर शक्तियां प्राप्त करती हैं।


जब आधी रात को सरोवर में दीप जलते हैं तो डायनों द्वारा इन दीपों को हाथ से स्पर्श करने मात्र से ही उन्हें सिद्धियां मिलती हैं। दुर्भाग्यवश इस दौरान किसी भी व्यक्ति ने उन्हें ऐसा करते देख लिया तो उनकी सारी शक्तियां नष्ट हो जाती हैं। एक किलोमीटर में फैला सरोवर का पानी अमृत की तरह जीवनदान देने वाला माना जाता है। किंवदंती के अनुसार एक बार किसी नि:संतान गद्दी ने संतान की इच्छा से कानों की सोने की मुर्कियां निकाल कर सरोवर को अर्पित कीं और वरदान स्वरूप उसके घर में जुड़वा पुत्र उत्पन्न हुए। कुछ समय बाद उसने सोचा कि मुझे तो संतान की प्राप्ति भाग्यानुसार होनी थी, मैंने बेकार ही सोने की मुर्कियां सरोवर में फैंक दीं। 


ऐसा सोचते ही जब उसने पानी पीने की इच्छा से इस सरोवर में अपने हाथ डाले तो कानों की मुर्कियां हाथ में आ गईं। उसी क्षण उसके घर पर दोनों पुत्रों की मौत हो गई। इसी चमत्कार के कारण इस सरोवर का विशेष महत्व है। हर साल 20 भादों से एक दिन पूर्व सैंकड़ों लोग पवित्र स्नान के लिए डायनासौर पहुंचते हैं। कुल्लू से शालंग-कालंग तक बस द्वारा जा सकता है। उसके बाद की यात्रा 2 दिन में सरोवर तक पूरी की जा सकती है। दूसरा मार्ग ऊझी घाटी के फोजल होकर भी यहां पहुंचा जा सकता है और तीसरा रास्ता मंडी-कांगड़ा के श्रद्धालुओं को घटासनी-बरोट-लुहारड़ी तक बस द्वारा तथा उससे आगे की दूरी पैदल ही तय करनी पड़ती है।

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