‘बीमार’ हैं दिल्ली के सरकारी अस्पताल

Edited By ,Updated: 23 Aug, 2015 11:49 PM

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दिल्ली के अस्पतालों में मरीजों को अक्सर अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अस्पतालों में साफ-सफाई की कमी तो है ही, वहां मरीजों को जीवनरक्षक दवाइयां तक उपलब्ध नहीं हैं।

दिल्ली के अस्पतालों में मरीजों को अक्सर अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अस्पतालों में साफ-सफाई की कमी तो है ही, वहां मरीजों को जीवनरक्षक दवाइयां तक उपलब्ध नहीं हैं। कहीं जांच के लिए कई दिनों की प्रतीक्षा मिलती है तो कहीं ऑप्रेशन के लिए लम्बा समय दिया जाता है। 

गौरतलब है कि कई सालों से डाक्टरों एवं टैक्नीशियनों की कमी है पर अभी तक कोई ठोस कदम न उठाया जाना ङ्क्षचता का कारण बना हुआ है। नियम तो यही कहते हैं कि देश के गरीब आदमी को सरकारी अस्पताल में दवाइयां, जिनमें जीवन रक्षक दवाएं भी शामिल होती हैं, मुफ्त मिलनी चाहिएं परंतु वास्तविकता कुछ और ही है।
 
दिल्ली में अनेक सरकारी अस्पताल हैं जहां रोजाना इलाज के लिए आने वाले हजारों मरीजों को हर हाल में दवाई मुफ्त मिलनी चाहिए, चाहे वे साधारण बीमारी के इलाज के लिए हों या जीवन रक्षक दवाई हो। मरीज सरकारी अस्पतालों में मुफ्त दवा पाने को घंटों लंबी लाइन लगाते हैं लेकिन अधिकतर अस्पतालों में उन्हें यह मिलती ही नहीं है।
 
पांच दशक पुराने दिल्ली के गोविंद बल्लभ पंत अस्पताल में रोजाना करीब 5 हजार मरीज इलाज कराने आते हैं। गत दिनों एक खबरिया चैनल की पड़ताल में पाया गया कि कई मरीजों को जरूरी दवाएं वहां मिल ही नहीं रही हैं। एक महिला नीलम कौर अपने पति की जिंदगी के लिए जिस दवा हेतु हर हफ्ते चक्कर लगाती हैं वह दवा उन्हें वहां मिलती ही नहीं। 135 रुपए का पत्ता है और महीने में पांच पत्ते लगते हैं। पांच साल चलने वाले इलाज में करीब चालीस हजार रुपए की दवा उसे खुद खरीदनी होगी।
 
नीलम अकेली मजबूर नहीं हैं। उनके जैसे सैंकड़ों मरीज यूं ही दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में रोज खाली हाथ लौटाए जाते हैं। गोविंद बल्लभ पंत अस्पताल में कई दवाएं मरीजों को नहीं दी जा रही हैं। 
 
दवा के नाम पर लोगों को टरकाया जाता है। जो दवाएं नहीं दी जा रही हैं, उनमें जीवन रक्षक दवाएं भी शामिल हैं। लेकोसेट 200 नामक दवाई तो तीन साल से नहीं मिल रही बताई जाती है। दवा के बारे में जब जनता पूछती है तो स्टाफ झिड़क देता है।
 
लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल में भी दवा या तो पूरी नहीं मिलती या मिलती ही नहीं। दिल्ली सरकार के लोकनायक अस्पताल में भी रोजाना हजारों रोगी आते हैं पर वहां भी इन दवाओं को हासिल करना कठिन है। 
 
लोकनायक अस्पताल की डिप्टी सुपरिंटैंडैंट डॉ. अनीता बंगोत्रा ने स्वीकार किया था कि दिल्ली सरकार द्वारा जीवन रक्षक दवाओं के टैंडर निकालने में देरी कर देने के कारण 60 में से 58 जीवन रक्षक दवाएं मौजूद नहीं हैं । 
 
जीवन रक्षक दवाएं और सामान रखने के लिए दिल्ली सरकार के पास गोदाम ही नहीं हैं। अस्पताल के लिए 73 जीवन रक्षक सामानों के लिए किसी कम्पनी ने बोली ही नहीं लगाई और दवाओं का टैंडर निकालने में करीब 4 हफ्तों की देरी हो चुकी है। अस्पतालों में दवाई की मांग और सप्लाई का सिस्टम बेहद खराब है। दवाइयों के गोदाम के लिए सरसपुर में 5 एकड़ जगह तय हुई लेकिन इसके बनने में अभी वक्त लगेगा। 
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर में स्वच्छ भारत अभियान की जोर-शोर से शुरूआत की परंतु स्वच्छता की सबसे अधिक जरूरत वाले सरकारी अस्पतालों में चारों ओर गंदगी की भरमार दिखाई देती है। दिल्ली में इनका तो हाल और भी खराब है। वहां मैडीकल वेस्ट के साथ-साथ आम कूड़े की भरमार है। टूटी सड़कें, गंदे शौचालय, गंदगी से भरे बरामदे, अस्पताल के प्रांगण में अतिक्रमण तक  की समस्या वहां साफ दिखाई देती है।  
 
हाल ही में अस्पतालों में तरल तथा ठोस कूड़ा प्रबंधन एवं स्वच्छता की स्थिति जांचने हेतु दिल्ली प्रदूषण समिति के वरिष्ठ अधिकारियों की 7 टीमों का गठन किया गया था। इन टीमों ने जिन अस्पतालों का दौरा किया उनमें एम्स, सफदरजंग अस्पताल, बाबू जगजीवन राम अस्पताल, डा. भीम राव अम्बेदकर, राजा हरिश्चंद्र अस्पताल, लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल, मैक्स अस्पताल तथा उत्तर रेलवे अस्पताल शामिल थे। 
 
इन टीमों ने लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल तथा उत्तर रेलवे अस्पताल में कुछ मामलों में कमी पाई जबकि आम स्वच्छता की स्थिति महज संतोषजनक थी। अन्य अस्पताल भी बमुश्किल स्वच्छता मापदंड पूरे करते पाए गए। 
 
कई अस्पतालों के बाहर कूड़ा फैंकने के  लिए चिन्हित स्थान अपने आप में एक बड़ी समस्या बन गए हैं। वहां कूड़ा कई-कई दिन बिखरा रहता है।  अस्पताल का तरल अपशिष्ट गड्ढों में जमा होकर डेंगू जैसी कई बीमारियों के साथ-साथ चूहों के फैलने का भी कारण बनता है। लोकनायक अस्पताल, गुरु नानक आई सैंटर तथा मौलाना आजाद मैडीकल कॉलेज आदि इस समस्या से लम्बे समय से जूझ रहे हैं।
 

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