Edited By Punjab Kesari,Updated: 10 Aug, 2017 01:31 PM
खगोल वैज्ञानिक गणनाओं के आधार पर 11-12 और 12-13 अगस्त 2017 की मध्यरात्रि पेर्सेइड उल्कापात के विहंगम दृश्य का अवलोकन किया जा सकता है।
सिडनीः खगोल वैज्ञानिक गणनाओं के आधार पर 11-12 और 12-13 अगस्त 2017 की मध्यरात्रि पेर्सेइड उल्कापात के विहंगम दृश्य का अवलोकन किया जा सकता है। यानि अब से कुछ ही समय के बाद हम इस मौसम के श्रेष्ठ और रंगीन उल्कापात - पेर्सेइड मेटेओर शावर का आनंद लेने जा रहे हैं। आसमानी आतिशबाज़ी की यह घटना 12-13 अगस्त की मध्यरात्रि से भोर तक अपने चरम पर होगी।
उल्कापात एक खगोलीय घटना है जिसमें रात्रि आकाश में कई उल्काएं एक बिंदु से निकलती नज़र आती हैं। ये उल्काएं या मेटिअरॉइट (सामान्य भाषा में टूटते तारे) धूमकेतु या पुच्छल तारों के पीछे घिसटते धूल के कण, पत्थर आदि होते हैं जो पृथ्वी के वातावरण में बहुत तीव्र गति से प्रवेश करते हैं और हमें आसमानी आतिशबाज़ी का नज़ारा दिखाई देता है। अधिकांश उल्काएँ आकार में धूल के कण से भी छोटी होती हैं जो विघटित हो जाती हैं और सामान्यतः पृथ्वी की सतह से नहीं टकरातीं।
यदि उल्कापात के दौरान उल्काओं का कुछ अंश वायुमंडल में जलने से बच जाता है और पृथ्वी तक पहुँचता है तो उसे उल्कापिंड या मेटिअरॉइट कहते हैं। हर वर्ष 17 जुलाई से 24 अगस्त के दौरान हमारी पृथ्वी स्विफ़्ट टटल धूमकेतु के पास से गुज़रती है। स्विफ़्ट टटल धूमकेतु ही पेर्सेइड उल्कापात या पेर्सेइड मेटेओर शावर का सूत्रधार है।
धूमकेतु पत्थर, धूल, बर्फ़ और गैस के बने हुए छोटे-छोटे खण्ड जो ग्रहों के समान सूर्य की परिक्रमा करते हैं।
स्विफ्ट टटल धूमकेतु का मलबा इसकी कक्षा में बिखरा रहता है जो हमें स्पष्ट रूप से अगस्त के पहले हफ्ते के बाद पृथ्वी से दिखाई देता है। नासा इंस्टाग्रामः धरती और
स्विफ्ट टटल धूमकेतु के छोटे अंश तेज़ी से घूमते पेर्सेइड उल्का के रूप में पृथ्वी के ऊपरी वातावरण में 2 लाख, 10 हज़ार किलोमीटर प्रति घंटे की गति से घूमते हैं जो रात्रि आकाश में तीव्र चमक के साथ बौछार करते नज़र आते हैं।