नॉर्थ कोरिया-अमरीका युद्ध में झुलस सकता है चीन !

Edited By ,Updated: 16 May, 2017 03:51 PM

china will face the heat war between us and north korea occurs

नॉर्थ कोरिया और अमरीका के बीच लगातार तनाव जारी है जिसके चलते दोनों के बीच युद्ध की आशंका गहराती जा रही है...

वॉशिंगटन/बीजिंग: नॉर्थ कोरिया और अमरीका के बीच लगातार तनाव जारी है जिसके चलते दोनों के बीच युद्ध की आशंका गहराती जा रही है। हाल ही में नॉर्थ कोरिया ने फिर से एक और मिसाइल परीक्षण किया। यह मिसाइल 700 किमी दूर और 2 हजार फुट ऊंचाई तक गई। इसके बाद अमरीका की चिंता बढ़ा गई है। अगर इन दोनों देशों के बीच किसी भी परिस्थिति में युद्ध होता है तो इस युद्ध की आग में चीन भी झुलसेगा। हालांकि यहां पर यह साफकर देना भी सही होगा कि इस मिसाइल से सीधे तौर पर अमरीका को कम ही खतरा है।

इसकी वजह यह है कि अमरीका और उत्‍तर कोरिया के बीच करीब 10 हजार किमी की दूरी है। लेकिन यहां पर एक बात और अहम है और वह यह कि जिस मिसाइल का परीक्षण इस बार उत्‍तर कोरिया ने किया है वह अधिक दूरी तक ज्‍यादा परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है। उत्‍तर कोरिया की मंशा अधिक दूरी या फिर इंटरकोंटिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल बनाना है जिसकी दूरी कम से कम 7 हजार किमी की होनी चाहिए। इसको हासिल कर पाना फिलहाल उत्‍तर कोरिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। बहरहाल, इस तनाव के बीच अमरीका समेत सभी देशों को एक देश से ढेर सारी उम्‍मीदें लगी हुई हैं। इस देश का नाम है-चीन।

ऐसा इसलिए भी है क्‍योंकि चीन उत्‍तर कोरिया को खुलेआम अपना दोस्‍त बताता रहा है। उत्‍तर कोरिया के साथ चीन के 50 के दशक से ही व्‍यापारिक और राजनयिक संबंध हैं। इसके अलावा हाल के कुछ वर्षों में दोनों देशों के बीच व्‍यापार भी काफी बढ़ा है। यही वजह है कि चीन को लेकर अमरीका भी शायद कुछ हद तक आश्‍वस्‍त है कि वह उत्‍तर कोरिया को बातचीत की मेज तक लाने में सफल हो पाएगा। बातचीत के संकेत अमेरिका की ओर से मिले हैं। लेकिन ताजा मिसाइल परीक्षण की वजह से फिर संशय के बाद मंडरा रहे हैं।

वहीं सोमवार को इस बाबत कुछ और सकारात्‍मक संकेत उस वक्‍त मिले थे जब अमरीका ने बातचीत के लिए कुछ शतों को तय करने की बात कही थी। इसके बाद उत्‍तर कोरिया ने भी कहा था कि यदि शर्त तय होती हैं तो वह भी वार्ता के लिए अपने नेता को भेजने के लिए तैयार है। जाहिर सी बात है कि यहां पर चीन की भूमिका काफी अहम हो जाती है। ऐसा इसलिए भी है क्‍योंकि यदि युद्ध होता है तो उत्‍तर कोरिया की आग में चीन भी झुलस सकता है। इसका सीधा प्रभाव चीन पर भी देखने को मिलेगा। ऐसा इसलिए भी है कि चीन और उत्‍तर कोरिया की करीब 1500 किमी की सीमा एक दूसरे से मिलती है। यही वजह है कि चीन के लिए यह बेहद जरूरी है कि वह युद्ध की आशंकाओं को दरकिनार कर हर हाल में इसका हल निकाले और उत्‍तर कोरिया को बातचीत की मेज तक लेकर आए।

विदेश मामलों की जानकार अलका आचार्य का मत है कि चीन के लिए यह राजनीतिक चुनौती भी है कि वह इसको सफलतापूर्वक अंजाम दे। इसके लिए बेहद जरूरी होगा कि चीन उत्‍तर कोरिया को उसकी सुरक्षा के लिए अाश्‍वास्‍त करे। इसमें उसकी कूटनीतिक और राजनीतिक परीक्षा भी होगी।  उनका साफ कहना है कि यदि युद्ध होता है तो इसकी आग चीन को भी झुलसा सकती है। यह पूछे जाने पर कि युद्ध के हालात में क्‍या चीन उत्‍तर कोरिया से उस संधि को समाप्‍त कर लेगा जिसके तह‍त ऐसी स्थिति में एक दूसरे की मदद के लिए सेना भेजने का प्रवाधान है, उनका कहना था कि जिस वक्‍त यह हुई थी उस वक्‍त माहौल कुछ और था आज कुछ और है। आज यह संधि उतनी प्रासंगिक नहीं है जितनी उस वक्‍त थी, लिहाजा युद्ध की सूरत में चीन इससे पीछे भी हट सकता है। 

 

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