मोदी का स्वच्छता अभियान विदेशों में हो गया हिट

Edited By Punjab Kesari,Updated: 04 Feb, 2018 02:59 PM

cleanliness trends in sweden like narendra modis clean india campaign

भारत में स्वच्छता अभियान कितना सफल हुआ और लोग इसको लेकर कितने जागरूक हुए यह तो बहस का विषय हो सकता है लेकिन स्वच्छ बना है, इस पर बहस हो सकती है, लेकिन भारत के स्वच्छता अभियान का विदेशों में असर जरूर हो रहा है। पूरी दुनिया के लोगों में सफाई के...

सिडनी: भारत में  स्वच्छता अभियान कितना सफल हुआ और  लोग इसको लेकर कितने जागरूक हुए यह तो बहस का विषय हो सकता है लेकिन  स्वच्छ बना है, इस पर बहस हो सकती है, लेकिन भारत के  स्वच्छता अभियान का विदेशों में असर जरूर हो रहा है। पूरी दुनिया के लोगों में  सफाई के प्रति जागरुकता बढ़ी है। यहां यूरोप में एक नए तरह का सफाई अभियान आजकल काफी सुर्खियों में है, जिसे “प्लॉगिंग” कहा जा रहा है।

जॉगिंग करने वाले दलों द्वारा कचरा उठाना यानि पिक एंड जॉग। उससे बना नया ट्रेंड प्लॉगिंग। स्वीडन में शुरू हुआ ये ट्रेंड लोगों को खूब भा रहा है क्योंकि यहां मामला “आम के आम, गुठलियों के दाम” वाला है। प्लॉगिंग से एक तरफ शहर चकाचक रहता है तो दूसरा आपकी सेहत भी फिटफाट रहती है। जी हां, प्लॉगिंग दरअसल जॉगिंग करते हुए कूड़ा कचरा जमा करने को कहते हैं। बस आपको इतना करना है कि दौड़ते समय अपने हाथ में एक बैग लेकर चलना है और रास्ते में जो भी कचरा या प्लास्टिक आपको नजर आए, उसे इस बैग में डालते जाना है। वैसे भी हेल्थ एक्सपर्ट कहते हैं कि अगर आप कुछ वजन लेकर जॉगिंग करते हैं तो इससे आपके शरीर को ज्यादा फायदा होता है।

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प्लॉगिंग की शुरुआत 2016 में हुई, लेकिन अब इससे ज्यादा लोग अपना रहे हैं। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि सागरों में प्लास्टिक के बढ़ते स्तर को लेकर लोग ज्यादा से ज्यादा जागरुक हो रहे हैं। वैसे यूरोप में प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल को लेकर आम लोगों के रुख में बदलाव आया है। डेनमार्क और लक्जमबर्ग जैसे देशों में इनके इस्तेमाल पर टैक्स लगाना शुरू कर दिया है। वहीं जर्मनी के सुपरमार्केट प्लास्टिक बैग को तेजी से खत्म करने की राह पर है। खरीदारी करते हुए आपको प्लास्टिक के थैले के लिए अलग से पैसे देने पड़ते हैं। जोर बार-बार इस्तेमाल किए जा सकने वाले थैलों को बढ़ावा देने पर है। इस बीच, इंडोनेशिया की एक कंपनी ने शॉपिंग के ऐसे थैले बना दिए हैं, जिन्हें आपको फेंकने की जरूरत नहीं पड़ेगी, बल्कि इस्तेमाल करने के बाद आप इन्हें पानी में घोल कर पी सकते हैं।

उधर, स्कॉटलैंड की सरकार ने कान साफ करने के लिए प्लास्टिक से बने ईयरबड के उत्पादन और बिक्री पर रोक लगाने की घोषणा की है। ये ईयरबड समंदर की गंदगी का एक बड़ा कारण है। ईयरबड्स को आमतौर पर टॉयलेट में फ्लश कर दिया जाता है जिसके चलते ये समंदर में पहुंच जाते हैं। हालांकि  वर्तमान में में प्लास्टिक से पूरी तरह छुटकारा पाना संभव नहीं लेकिन इस कचरे को अगर कायदे से ठिकाने लगा दिया जाए तो शायद समस्या से निटपने में मदद मिल सकती है। ऐसे में, प्लॉगिंग एक बढ़िया आइडिया है। स्वीडन में बहुत से लोगों ने प्लॉगिंग को अपने लाइफ स्टाइल का हिस्सा बना लिया है। इसका असर भी साफ दिख रहा है।

कहा जा रहा है कि स्वीडन की राजधानी स्टोकहोम कभी इतनी साफ सुथरी नहीं थी, जितनी आजकल है। अब यूरोप के दूसरे शहरों में भी यह ट्रेंड लोकप्रिय हो रहा है। पेरिस में कुछ लोगों ने मिलकर एक प्लॉगिंग कम्युनिटी बनाई है। खबर है कि थाईलैंड में भी इसकी शुरुआत हो चुकी है। आप अगर ट्विटर पर #plogging सर्च करेंगे तो आपको बहुत सी तस्वीर दिख जाएंगी। इन तस्वीरों में कहीं आपको कचरा जमा करते लोग नजर आते हैं तो कहीं प्लास्टिक बैगों में जमा किए गए कचरे के साथ खुशी में पोज दे रहे लोग हैं।

दुनिया के हर देश की तरह भारत के लोगों को भी साफ सफाई और फिटनेस की जरूरत है। इसलिए प्लॉगिंग का आइडिया बुरा नहीं है। हो सकता है कि शुरू में लोग आपको हैरत भरी निगाहों से देखें। लेकिन इरादा नेक है। एक बार लोगों को बात समझ में आ गई तो मामला वायरल हो सकता है। आसपास बिखरी पॉलीथीन और कचरा भला किसे अच्छे लगते है। वैसे कई लोग पहले से ऐसे कामों में जुटे हैं। मुंबई के अफरोज शाह की मिसाल हमारे सामने हैं। मुंबई के वरसोवा बीच को साफ करने की उनकी पहल को दुनिया भर में सराहा गया।

 

 

 

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