Edited By ,Updated: 11 Dec, 2016 03:05 PM
सोशल मीडिया पर एक्टिव ब्रिटिश टीनएजर्स न सिर्फ खुद को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि उनकी हताशा ब्रिटेन को दुनिया के सबसे ‘बेहद नाखुश’ देश में बदल रही है...
लंदनः सोशल मीडिया पर एक्टिव ब्रिटिश टीनएजर्स न सिर्फ खुद को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि उनकी हताशा ब्रिटेन को दुनिया के सबसे ‘बेहद नाखुश’ देश में बदल रही है। देश में इस साल 18,778 टीनएजर्स खुद को नुकसान पहुंचाने के बाद अस्पताल में भर्ती किए गए। खास बात यह है कि अवसाद के ऐसे मामलों में एक साल में 14% इजाफा हुआ है। पिछले साल ऐसे 16,416 मामले सामने आए थे।
नैशनल सोसाइटी फॉर द प्रिवेंशन ऑफ क्रुअलिटी टू चिल्ड्रेन (N.S.P.C.C.) ने इंग्लैंड और वेल्स के टीनएजर्स से जुड़े ये आंकड़े जारी किए हैं। इसके मुताबिक टीनएजर्स फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे साइट्स का 'शिकार' हो रहे हैं। लोगों को इसकी इतनी आदत हो जाती है कि वे दुनिया से कट जाते हैं। फिर हताशा के शिकार होने लगते हैं। कई बार वे इससे उबरने के लिए खुद को नुकसान पहुंचा लेते हैं, जैसे जरूरत से ज्यादा नींद की टैबलेट ले लेना, नसें काट लेना और खुद को आग लगा लेना। रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ लोगों ने सुसाइड की कोशिश भी की।
N.S.P.C.C. के चीफ एग्जीक्यूटिव पीटर वैनलेस ने बताया कि कि उनकी संस्था ऐसे लोगों की मदद के लिए कैंपेन चलाती है। पिछले एक साल में 18,471 लोगों ने उनके हेल्पलाइन नंबर पर फोन कर मदद मांगी। यानी रोजाना 50 लोगों ने मदद मांगी। चाइल्ड केयर से जुड़े डॉ. मैक्स डेवी ने कहा, "अवसाद के ऐसे मामलों की पहचान शुरू में ही जरूरी है। देर हो जाने पर इलाज भी मुश्किल हो जाता है।"
डॉ. मैक्स डेवी का कहना है कि आज जब हर बच्चे के हाथ में मोबाइल-टैब पहुंच चुका है, तो इसकी शुरुआत भी स्कूल से करनी होगी। सरकार को चाहिए कि वह सभी स्कूलों में इसकी पहचान के लिए कैम्प लगाए। बच्चों को अवसाद से निपटने की शिक्षा भी दी जाए। स्वास्थ्य विभाग के प्रवक्ता ने कहा कि सरकार सोशल मीडिया से उपजी इस चुनौती से वाकिफ है। हमने मानसिक रूप से बीमार या हताश लोगों की मदद के लिए अस्पतालों को करीब 119 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं। एनएसपीसीसी ने सरकार से यह राशि बढ़ाने की मांग की है।