भारत-ईरान ने पाक को दिखाया ठेंगा, अब चीन की बारी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Feb, 2018 09:23 PM

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भारत और ईरान ने कनेक्टिविटी के मसले पर पाकिस्तान को ठेंगा दिखाने के बाद अब चीन का मुकाबला करने के लिए कमर कस ली है। भारत और ईरान चाबहार पोर्ट को एक बड़े कनेक्टिविटी प्रॉजेक्ट से जोड़ने पर जुट गए हैं। भारत की यात्रा पर आए  ईरान के राष्ट्रपति हसन...

नई दिल्लीः भारत और ईरान ने कनेक्टिविटी के मसले पर पाकिस्तान को ठेंगा दिखाने के बाद अब चीन का मुकाबला करने के लिए कमर कस ली है। भारत और ईरान चाबहार पोर्ट को एक बड़े कनेक्टिविटी प्रॉजेक्ट से जोड़ने पर जुट गए हैं। ईरान के राष्ट्रपति हसन भारत की यात्रा पर आए । 10 साल के बाद ईरान के किसी राष्ट्रपति की भारत यात्रा हो रही है। इससे पहले पीएम मोदी ने 2016 में ईरान की यात्रा की थी। शनिवार को दोनों नेताओं की बातचीत के बाद नौ समझौतों पर साइन किए गए।

 इन समझौतों मे शाहिद बेहेस्ती पोर्ट (चाबहार फेज 1) को 18 महीने के लिए अंतरिम तौर पर भारतीय कंपनी को सौंपने का लीज कॉन्ट्रैक्ट अहम है। चाबहार के पहले फेज को पिछले साल दिसंबर में शुरू किया जा चुका है। भारत, ईरान और अफगानिस्तान इस पोर्ट के जरिए ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर बनाने के लिए त्रिपक्षीय समझौता कर चुके हैं। इस रूट से अफगानिस्तान को गेहूं पहुंचाया जा चुका है। अफगानिस्तान को भारत से जमीनी रूट से गेहूं पहुंचाने में पाकिस्तान बाधा डाल रहा था, लेकिन इस पोर्ट के जरिए पाक को बाइपास कर दिया गया।
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भारत और ईरान ने अब चाबहार को इंटरनैशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर के फ्रेमवर्क से जोड़ने पर जोर दिया है, जिसे चीन के वन बेल्ट वन रोड के मुकाबले के तौर पर देखा जा रहा है। ईरान जल्द ही इस कॉरिडोर पर कोऑर्डिनेशन की खातिर मीटिंग करेगा। भारत, ईरान और रूस ने 2000 में इस बड़े कनेक्टिविटी कॉरिडोर प्रॉजेक्ट की शुरुआत की थी। इसका एक ड्राई रन 2014 में हो चुका है, लेकिन दूसरा ड्राई रन टलता आ रहा है। पीएम मोदी ने कनेक्टिविटी में प्रगति की बात करते हुए कहा कि चाबहार पोर्ट अफगानिस्तान और मध्य एशिया क्षेत्र के गोल्डन गेटवे के तौर पर काम करेगा।

पीएम मोदी ने कहा कि हम चाबहार-जहिदान रेल लाइन के विकास को सपॉर्ट करेंगे, ताकि चाबहार गेटवे की पूरी क्षमता का लाभ उठाया जा सके। लंबी अवधि के लिए एनर्जी पार्टनरशिप के लिए भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा के नजरिए से अहम फरजाद बी गैस फील्ड पर बातचीत की गति तेज करने पर सहमति हुई है। इस गैस फील्ड को भारतीय कंपनियों ने 2008 में खोजा था, लेकिन ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण इस दिशा में बात आगे नहीं बढ़ सकी थी। डबल टैक्सेशन से बचने के लिए संधि भी हुई, जिस पर करीब एक दशक से बातचीत चल रही थी। दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि पर 2008 में साइन हुए थे, लेकिन यह लागू नहीं हो पाया था। अब यह लागू हो गया है। 

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