डॉक्टरों को छोटी लड़कियों का खतना करने के नहीं दे सकते निर्देश- सुप्रीम कोर्ट

Edited By Yaspal,Updated: 31 Jul, 2018 09:33 PM

doctors can not give instructions to circumcise small girls supreme court

उच्चतम न्यायालय ने आज साफ कर दिया कि वह डॉक्टरों को दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की नाबालिग लड़कियों का खतना करने के निर्देश नहीं दे सकता।

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने आज साफ कर दिया कि वह डॉक्टरों को दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की नाबालिग लड़कियों का खतना करने के निर्देश नहीं दे सकता। न्यायालय ने इस प्रक्रिया के पीछे के ‘‘वैज्ञानिक तर्क’’ पर भी सवाल उठाए। खतने को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई कर रही प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसके पीछे शायद ही कोई तर्क है, क्योंकि गैर-मेडिकल कारणों से बच्ची को खतने के लिए मजबूर किया जाता है।

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अदालत ने खतना संगठन के वकील से किया सवाल
न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़़ की सदस्यता वाली पीठ ने खतना संगठन का समर्थन करने वाले वकील अभिषेक मनु सिंघवी से कहा कि आप चाहते हैं कि हम संविधान के अनुच्छेद 142 (न्याय के हित में उच्चतम न्यायालय को कोई भी आदेश पारित करने की शक्ति प्रदान करने का प्रावधान) के तहत आदेश पारित करें और डॉक्टरों से कहें कि वे अस्पताल में इस प्रक्रिया को अंजाम दें? यह कैसे किया जा सकता है?’’

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पीठ ने खतने का समर्थन करने वाले एक मुस्लिम संगठन के वकील सिंघवी से कहा, ‘‘इस प्रक्रिया को अंजाम देने के लिए डॉक्टरों को निर्देश देने को लेकर क्या वैज्ञानिक तर्क हैं?’’ न्यायालय ने यह भी कहा कि डॉक्टरों को इस तरह की प्रक्रिया को अंजाम देने का निर्देश देना मेडिकल नैतिक मूल्यों का उल्लंघन होगा। सिंघवी ने कहा कि दाऊदी बोहरा समुदाय मुस्लिमों में सबसे प्रगतिशील और शिक्षित वर्ग है और यह प्रक्रिया इतनी भी गंभीर नहीं है, जैसा इसका विरोध करने वालों की तरफ से बताया जा रहा है। पीठ ने छोटी बच्चियों के खतने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के बारे में पूछा।

छोटी बच्ची रोती होगी, ऐतराज करती होगी
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘आपका एसओपी क्या है? मैं उस बच्ची की तकलीफ के बारे में सोच रहा हूं जो रोती होगी और इस पर ऐतराज करती होगी। किसी को बच्चे को पकड़ कर रखना होता होगा, क्योंकि बेहोशी की भी कोई दवा नहीं होती है....कोई अस्पताल नहीं होता है!’’ वरिष्ठ वकील ने कहा कि जब किसी बच्चे का टीकाकरण होता है तो ऐसी ही चीज होती है। उन्होंने कहा कि खतने के दौरान ज्यादा सावधानी बरती जाती है और यह प्रक्रिया मां की निगरानी में अंजाम दी जाती है।

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केंद्र की तरफ से पेश हुए अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने सरकार का रुख दोहराया कि वह खतने के विरोध में है और अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया एवं करीब 27 अफ्रीकी देशों सहित कई अन्य ने इस प्रक्रिया को प्रतिबंधित कर दिया है। वकील सुनीता तिवारी की ओर से दायर इस जनहित याचिका पर अब नौ और 10 अगस्त को सुनवाई होगी।    

 

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