Edited By Punjab Kesari,Updated: 04 Jan, 2018 02:22 AM
साल 2013 में जब राष्ट्रपति हसन रूहानी की जीत हुई थी तो लोगों में उम्मीद जगी कि ईरान में इंटरनैट सुविधाओं का विस्तार होगा, लोगों की इस तक पहुंच बढ़ेगी, इंटरनैट पर सैंसरशिप कम होगी लेकिन हसन रूहानी को सत्ता में आए 5 साल बीत चुके हैं लेकिन इंटरनैट पर...
तेहरान: साल 2013 में जब राष्ट्रपति हसन रूहानी की जीत हुई थी तो लोगों में उम्मीद जगी कि ईरान में इंटरनैट सुविधाओं का विस्तार होगा, लोगों की इस तक पहुंच बढ़ेगी, इंटरनैट पर सैंसरशिप कम होगी लेकिन हसन रूहानी को सत्ता में आए 5 साल बीत चुके हैं लेकिन इंटरनैट पर पाबंदियां कम होने की बात तो दूर, हसन रूहानी के दूसरे कार्यकाल में यह सैंसरशिप बढ़ी ही है। इसका ताजा उदाहरण है टैलीग्राम और इंस्टाग्राम पर नई पाबंदी।
ईरान की सरकार टैलीकॉम सर्विस मुहैया करवाने वाली कंपनियों के साथ मिलकर इंटर्नल सर्विसेज (आंतरिक सेवाओं) का कुछ इस तरह का ढांचा तैयार करने की कोशिश कर रही है जिससे इंटरनैट यूजर्स केवल ईरानी वैबसाइटों पर जाना पसंद करें। इसके लिए उन्हें इंटरनैट बैंडविथ बचाने का प्रलोभन दिया जा रहा है। इसका मॉडल चीन पर आधारित है। सरकार चाहती है कि सूचनाओं के प्रवाह पर उनका नियंत्रण बना रहे। चीन अपने यहां इसे कामयाबी से लागू कर चुका है।
ईरान चीन की दिखाई राह पर ही आगे बढऩे की कोशिश कर रहा है। इस सिलसिले में 2 उदाहरण लिए जा सकते हैं। ईरान ने यू-ट्यूब के देसी वर्जन की शुरूआत की है और टैलीग्राम की जगह पर मोबाग्राम लाया गया है। फारसी भाषा वाले चैटिंग एप मोबोग्राम में ईरान की सरकार का दखल कुछ ऐसा है कि वह अपनी सुविधा और पसंद के हिसाब से इसके कंटैंट को हटा सकती है या इसे ब्लॉक कर सकती है। इसी कड़ी में ईरान के नैशनल इन्फॉर्मेशन नैटवर्क का नाम लिया जाता है। इसे नैशनल इंटरनैट के नाम से भी जाना जाता है। सरकार का साइबर क्राइम मैनेजमैंट इसी का हिस्सा है और बीते वर्षों में इसे ‘हलाल इंटरनैट’ या ‘इंटरनैट क्लीनर’ के तौर पर पेश किया गया है।
हकीकत तो यह है कि अतीत की किसी भी सरकार के मुकाबले रूहानी सरकार इंटरनैट से सबसे ज्यादा खतरा महसूस कर रही है। इसकी वजहें साफ हैं। सरकार यूजर्स का बर्ताव बदलना चाहती है और इंटरनैट की दुनिया के बारे में उनकी सोच भी।