पाक पर ट्रंप की कृपा से दुनिया हैरान, अमरीका के दोहरे रवैये पर उठने लगे सवाल

Edited By Punjab Kesari,Updated: 17 Feb, 2018 03:43 PM

us double standard on pakistan

गत महीने अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने  पाकिस्तान को  2 टूक चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर वह नहीं सुधरा तो उसे बहुत कुछ खोने के लिए तैयार रहना होगा और तब अपनी धमकी को सच साबित करते अमरीका ने पाकिस्तान को 2 अरब डॉलर की सहायता यह कहकर रोकी थी कि...

वॉशिंगटनः गत महीने अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने  पाकिस्तान को  2 टूक चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर वह नहीं सुधरा तो उसे बहुत कुछ खोने के लिए तैयार रहना होगा और तब अपनी धमकी को सच साबित करते अमरीका ने पाकिस्तान को 2 अरब डॉलर की सहायता यह कहकर रोकी थी कि पाकिस्तान अपनी जमीन पर आतंकी ठिकानों को खत्म करने में रुचि नहीं दिखा रहा है।  लेकिन अब आश्चर्य यह है कि इस दरम्यान ऐसा क्या हुआ कि अमरीका को पाकिस्तान के आचरण में बदलाव दिखने लगा और वह उसे करोड़ों डॉलर की मदद को तैयार हो गया। 

आतंकवाद के अड्डे के रूप में तब्दील हो चुके पाकिस्तान पर टंप प्रशासन की इस कृपा से एक बार फिर स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान को लेकर अमरीका की साढ़े छह दशक पुरानी नीति जस की तस बरकरार है। बेशक अमरीका को अधिकार है कि वह भारत और पाकिस्तान से भिन्न-भिन्न आयामों से अपने रिश्ते परिभाषित करे, लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं कि वह उस पाकिस्तान को आर्थिक मदद पहुंचाए, जिसकी पहचान पूरी दुनिया में आतंकवाद के प्रश्रयदाता के रूप में है। एक तरफ अमरीका बार-बार पाकिस्तान को आतंकवाद का अड्डा बताते नहीं थकता है और दूसरी तरफ  वह उसे आर्थिक मदद की पेशकश के लिए इतना बेचैन है जबकि वह अच्छी तरह जानता है कि पाकिस्तान अमरीका एवं वैश्विक संस्थाओं से मिल रही आर्थिक मदद का इस्तेमाल अपने विकास कार्यो पर खर्च करने के बजाय भारत के खिलाफ कर रहा है। 

अमरीका को यह भी पता है कि अफगानिस्तान स्थित आतंकी संगठन हक्कानी नैटवर्क आइएसआइ का सबसे बड़ा मोहरा है, जिसके जरिये वह अफगानिस्तान में अराजकता फैलाए हुए है। हक्कानी नैटवर्क आईएसआई के इशारे पर अफगानिस्तान के कई बड़े नेताओं की हत्या भी कर चुका है। अफगानी राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी की हत्या इसी संगठन ने की थी।  गौरतलब है कि रब्बानी शांति परिषद के अध्यक्ष थे और वह अफगान सरकार और तालिबान उदारवादी तत्वों के बीच शांति बहाली के लिए प्रयासरत थे। अमेरिका को यह याद रखना होगा कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो सेना को हक्कानी समूह के जरिये ही लोहे के चने चबवा दिए हैं। बावजूद इसके अमेरिका को लग रहा है कि अफगानिस्तान में उसके हितों की सुरक्षा के लिए पाकिस्तान को आर्थिक और सैन्य मदद करना आवश्यक है तो वह भ्रम में है। इसलिए कि उसकी अफ-पाक नीति की विफलता उजागर हो चुकी है।

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