9 साल से चल रही कानूनी जंग में विस्थापितों की जीत

Edited By Punjab Kesari,Updated: 17 Dec, 2017 12:47 PM

disinvestment victory in 9 year legal battle

कस्टोडियन सम्पत्ति (इवैक्यू प्रापर्टी) पर मालिकाना हक को लेकर चल रही कानूनी जंग में आखिरकार विस्थापितों को इंसाफ मिला है। 1965 व 71 के विस्थापितों को उच्च न्यायालय ने बड़ी राहत देते हुए साफ किया है कि कस्टोडियन जमीनों पर 1965 व 71 के विस्थापितों को...

जम्मू/साम्बा : कस्टोडियन सम्पत्ति (इवैक्यू प्रापर्टी) पर मालिकाना हक को लेकर चल रही कानूनी जंग में आखिरकार विस्थापितों को इंसाफ मिला है। 1965 व 71 के विस्थापितों को उच्च न्यायालय ने बड़ी राहत देते हुए साफ किया है कि कस्टोडियन जमीनों पर 1965 व 71 के विस्थापितों को भी ठीक उसी प्रकार हक दिया जाए, जिस प्रकार 1947 के विस्थापितों को दिया गया है। माननीय हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद राज्य के एग्रेरियन रिफाम्र्स एक्ट-1976 की धारा 3-ए, जिसे दफा 3 अल्फ भी कहा जाता है, के तहत 1965 व 1971 के विस्थापितों को भी अलॉट की गई कस्टोडियन जमीनों का मालिकाना अधिकार मिल पाएंगे। 

सनद रहे कि 26 सितम्बर, 2008 में एक्शन कमेटी ऑफ डिस्प्लेस्ड पर्सन्स (1965-71) के तत्वावधान में प्रधान बलवंत सिंह (विजयपुर), सचिव यशपाल चौधरी (रंगूर कैम्प), प्रेमपाल (बरोटा कैम्प), नानक चंद चौधरी (थलोड़ी कैम्प) व मेहर सिंह (रैपुर कैम्प) द्वारा हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी व अलॉट की गई जमीनों पर मालिकाना हक को लेकर किए जा रहे भेदभाव का आधार पूछा गया था। कमेटी ने इस दौरान डिवकॉम व रैवेन्यू सैक्रेटरी कार्यालय में आर.टी.आई. दाखिल कर जानकारी ली, जिसके जवाब में साफ कहा गया कि राज्य भूमि सुधार कानून-1976 की धारा 3-ए के तहत विस्थापितों को अलॉट की गई जमीन का पूरा स्वामित्व प्राप्त है और विस्थापन के वर्ष के  आधार पर कोई भेदभाव नहीं हो सकता है।
 

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