Edited By ,Updated: 02 Feb, 2016 07:42 PM
दिल छू लेने वाली कश्मीरियत की मिसाल कायम करते हुए दक्षिण कश्मीर में कुलगाम जिले के एक गांव के मुसलमानों ने एक कश्मीरी पंडित का अंतिम संस्कार किया।
श्रीनगर: दिल छू लेने वाली कश्मीरियत की मिसाल कायम करते हुए दक्षिण कश्मीर में कुलगाम जिले के एक गांव के मुसलमानों ने एक कश्मीरी पंडित का अंतिम संस्कार किया। यह कश्मीरी पंडित अपनी जड़ों से चिपका रहा और घाटी छोडऩे का प्रस्ताव ठुकरा दिया, जबकि उसके परिजन आतंकवादियों के खतरे के कारण घाटी से पलायन कर गए।
कुलगाम में मावलान के निवासी जानकी नाथ 84 की मृत्यु शनिवार को हुई थी। कश्मीरी पंडितों अथवा परिजनों की उपस्थिति के बगैर स्थानीय मुसलमानों ने मृतक के अंतिम संस्कार का बंदोबस्त किया और किसी अपने की मौत की तरह दुख प्रकट किया। उल्लेखनीय है कि मालवान की करीब 5000 मुस्लिम आबादी के बीच नाथ अपने समुदाय के अकेले व्यक्ति थे। उन्होंने 1990 में उस समय यहीं रहने का निर्णय किया, जब अन्य कश्मीरी पंडित घाटी से पलायन कर गये थे। वह 1990 में सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हुये थे, जब आतंकवाद राज्य में अपना सिर उठा रहा था। वह पिछले पांच साल से अस्वस्थ चल रहे थे। इस दौरान उनके पड़ोसी मुसलमानों ने उनकी देखभाल की। जैसे ही उनके मृत्यु का समाचार मिला स्थानीय लोग गमगीन हो गए।
स्थानीय नागरिक गुल मोहम्मद अलई ने कहा,‘‘हमें लगता है जैसे हमने किसी अपने को खो दिया है। वह बिल्कुल मेरे बड़े भाई की तरह थे और मैं कोई भी कदम उठाने से पहले उनसे सलाह लिया करता था।’’ एक अन्य स्थानीय नागरिक गुलाम हसन ने कहा,‘‘धर्म के ख्याल के बगैर अपने पड़ोसियों की सहायता करना हमारा कर्तव्य है, जिसे हमने बखूबी पूरा किया। हमने एक प्यारा दोस्त खो दिया, जो हमेशा, बुरेे से बुरे और अच्छे से अच्छे वक्त में हमारे साथ खड़ा रहा।’’ अंतिम संस्कार के लिए उनके पड़ोसियों ने लकड़ी और चिता का इंतजाम किया। स्थानीय नागरिकों ने बताया कि घाटी नहीं छोडऩे के निर्णय के लिए जानकी नाथ के मन में कोई पछतावा नहीं था।