Edited By ,Updated: 16 Apr, 2017 06:04 PM
श्रीनगर उपचुनाव के नतीजे से पूर्व मुख्यमंत्री डा. फारुख अब्दुल्ला के डूबते सियासी कॅरियर को तो सहारा मिल गया, लेकिन इस दौरान उपद्रवियों ने अपनी गतिविधियों को जीत कर मजबूत पकड़ बनाने पर जोर दे दिया।
जम्मू और कश्मीर : श्रीनगर उपचुनाव के नतीजे से पूर्व मुख्यमंत्री डा. फारुख अब्दुल्ला के डूबते सियासी करियर को तो सहारा मिल गया, लेकिन इस दौरान उपद्रवियों ने अपनी गतिविधियों को जीत कर मजबूत पकड़ बनाने पर काफी जोर दिया। वोटों की गिनती में फारुख की जीत तो हो गई, लेकिन नतीजे ने बताया कि यह न तो नेशनल कांफ्रेंस की जीत है और न ही पीडीपी की हार। पत्थरबाजों और पाकिस्तान के प्रति नरमी दिखाकर फारुख ने जो समर्थन हासिल किया है, वह उनके लिए भी गलत साबित हो सकता है। चुनावों के परिणाम सही अर्थों में अलगाववादियों और उपद्रवियों की मजबूत पकड़ को दर्शा रहे हैं।
सात फीसदी ही पड़े वोट
उल्लेखनीय है कि श्रीनगर उपचुनाव में महज सात फीसदी ही वोट पड़े हैं जिससे यह जाहिर होता है कि लोगों ने हिंसा के कारण वोट देने में रूचि ही नहीं दिखाई और लगभग 93 प्रतिशत लोगों ने खुद को चुनाव से दूर रखा। यह आंकड़ा अलगाववादियों के हौसले भी बुलंद कर रहा है।
कश्मीर की अवाम को यह महसूस होने लगा था कि मतदान ही वह रास्ता है जो उनके सुनहरे भविष्य पथ से जुड़ा है। यही कारण है कि 2014 के लोकसभा चुनाव और बाद में हुए विधानसभा चुनाव में कश्मीर के मतदान केंद्रों पर वोटरों का हुजूम पहुंचा था, लेकिन यह जज्बा इस बार कायम नहीं रह सका।