Edited By Punjab Kesari,Updated: 04 Aug, 2017 12:51 PM
कश्मीर में आतंकवाद की समस्या प्रदेश अथवा केन्द्र सरकारों की नीतियों एवं सुरक्षा बलों की व्यवस्था के बावजूद पहले से बढ़ती चली जा रही है। हालांकि इसके कारणों में राजनीतिक समस्या, व्यवस्था, पाकिस्तान का हस्तक्षेप, जेहादी मानसिकता अथवा स्वतंत्रता की...
श्रीनगर: कश्मीर में आतंकवाद की समस्या प्रदेश अथवा केन्द्र सरकारों की नीतियों एवं सुरक्षा बलों की व्यवस्था के बावजूद पहले से बढ़ती चली जा रही है। हालांकि इसके कारणों में राजनीतिक समस्या, व्यवस्था, पाकिस्तान का हस्तक्षेप, जेहादी मानसिकता अथवा स्वतंत्रता की उत्कंठा से उत्पन्न हुई मांग शामिल है, साथ ही कश्मीर की समस्या में कुछ तकनीकी कारण भी हैं जिनमें इस क्षेत्र की घाटियों का अत्यन्त बर्फीला मौसम व प्रति व्यक्ति औसतन स्थान का अधिक होना है। कश्मीर घाटी के जिक्र में सबसे बड़ी बात इसके विशाल क्षेत्र की है जो 2.25 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जबकि उसके सामने जम्मू-कश्मीर की जनसंख्या 1.42 करोड़ है। जो औसतन 16 हजार वर्ग गज प्रति व्यक्ति के हिस्से आती है। दूसरी ओर अन्य प्रदेशों में प्रति व्यक्ति को बहुत कम स्थान मिलता है। यदि पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड, दिल्ली कुल 5 प्रदेशों को मिला लिया जाए तो अकेले जम्मू-कश्मीर का क्षेत्रफल इन प्रदेशों से भी अधिक है। यही करण है कि घाटी के क्षेत्रों में बहुत अधिक स्थान होने के कारण उपद्रवियों को छिपने का भरपूर मौका मिल जाता है और सुरक्षा बलों के लिए यह भारी मुश्किल पैदा करते हैं।
जिक्रयोग्य है कि पिछले समय में मध्य प्रदेश और राजस्थान में डकैतों की समस्या बराबर चली आ रही है उसका कारण भी इन प्रदेशों का क्षेत्रीय तौर पर वृहद आकार है जो अंग्रेजों के लिए भी सिरदर्द बना हुआ था। कश्मीर समस्या के मामले में देखा जा रहा है कि कश्मीर का विशाल आकार और अस्तित्व ही इसकी बर्बादी का कारण बन रहा है।
छिपने के अधिक हैं ठिकाने
जम्मू-कश्मीर के विशाल क्षेत्र में आतंकवादियों को छिपने के लिए बहुत अधिक ठिकाने हैं। पंजाब जैसे क्षेत्र में आतंकवाद पर सफलतापूर्वक काबू पाए जाने का एक बड़ा कारण यह भी था कि आतंकवादियों के पास छिपने के लिए अधिक ठिकाने नहीं थे। किंतु इसके विपरीत जम्मू-कश्मीर की घाटी के क्षेत्रों में जिनमें प्रमुख तौर पर बाल्टित, गिलगित की पहाडिय़ां के अतिरिक्त बड़ी संख्या में ऐसे क्षेत्र हैं जहां तापमान माईनस 20 डिग्री से भी नीचे पहुंच जाता है। पर्वतों की बर्फीली और हरी पहाडिय़ों के बीच कई ऐसे ठंडे क्षेत्र हैं जो हिल्ली डैजर्ट्स (पहाड़ी रेगिस्तान) बन चुके हैं। इन क्षेत्रों में खुश्क सर्दी पड़ती है और वनस्पति नाम की चीज नहीं होती और पानी भी नाममात्र ही होता है। इन स्थानों पर वही लोग रह सकते हैं जो इन क्षेत्रों में रहने के आदी होते हैं जबकि गर्म प्रदेशों से गए सुरक्षा बलों के जवान भी ऐसे स्थानों पर व्यवस्था को कारगर करने में अधिक सफल नहीं होते।
समाधान
इस संबंध में बुद्धिजीवी वर्ग का मानना है कि जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में दूसरे प्रदेशों से आने वाले लोगों को बसने के लिए रोकने वाले कानून इस क्षेत्र में अलगाववाद और आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। यदि दूसरे क्षेत्रों में जहां आबादी अधिक है, के लोग यहां बसने शुरू हो जाएं तो इससे आबादी और क्षेत्रीय अनुपात की समानता के साथ-साथ प्रति वर्ग मीटर स्थान भी अन्य प्रदेशों के स्तर पर आ जाएगा। क्योंकि कश्मीर में कई ऐसे क्षेत्र भी हैं जहां पर 100-100 किलोमीटर तक न तो कोई वाहन दिखाई देता है और न आदमी। अन्य प्रदेशों के लोग बसने से जहां इस क्षेत्र में चहल-पहल बढ़ेगी, वहीं उपद्रवियों को छिपने के मौके भी नहीं मिलेंगे।
बढ़ेगा व्यापार
यदि दूसरे प्रदेशों से लोगों को जम्मू-कश्मीर में बसने की आज्ञा दी जाए तो इससे जम्मू-कश्मीर का व्यापार बढ़ेगा, वहां पर अन्य प्रदेशों के लोग इन खाली पड़े स्थानों पर इंड्रस्टीयल हब बना सकते हैं जिस प्रकार उत्तराखंड, हिमाचल और झारखंड में है। उद्योगपति वर्ग का कहना है कि पहाड़ी क्षेत्रों में बिजली सस्ती होने के साथ-साथ ठंडे मौसम की राहत के कारण एंयर कंडीशनंड की आवश्यकता नहीं रहती, दूसरी ओर कश्मीर घाटी में बेरोजगार कश्मीरी लोग जिन्हें मेहनती माना जाता है और पूरे देश में इनकी मांग भी है उनको अपने ही प्रदेश में अच्छी-खासी नौकरियां मिल जाएंगी। पूरे देश में हजारों की संख्या में ऐसे कारखानेदार हैं जिनके करोड़ों रुपए जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के कारण डूब चुके हैं और कारखाने बंद हो चुके हैं, इन्हें भी राहत मिलेगी और बंद उद्योग पुनर्जीवित होंगे।
शुरू होगा पर्यटन
पूरे विश्व में स्विट्जरलैंड के उपरांत दूसरे स्थान पर माने जाने वाला कश्मीर जहां कभी देश-विदेश से पर्यटक आते थे, पिछले 3 दशकों से इस क्षेत्र से पर्यटक बिल्कुल नदारद हो चुके हैं। इसमें जहां पहाड़ी क्षेत्रों में वीरानी आई है वहीं पर हजारों की संख्या में होटल, रैस्टोरैंट, गैस्ट हाऊस और झीलों में तैरने वाले परंपरागत शिकारे भी डूब चुके हैं। यदि इस स्थान पर शांति की व्यवस्था के साथ अन्य प्रदेशों की आबादी आ जाती है तो जम्मू-कश्मीर एक बड़ा टूरिज्म हब बन जाएगा और इसमें मिलने वाली अरबों की कमाई इस क्षेत्र को स्वर्ग बना देगी।
देश के कुछ प्रमुख प्रदेशों के औसतन प्रति व्यक्ति क्षेत्र का वर्णन
प्रदेश |
जनसंख्या (करोड़ में) |
क्षेत्र (वर्ग कि. में) |
प्रति व्यक्ति भूमि का अनुपात (वर्ग गज में) |
जम्मू-कश्मीर |
1.42 |
223360 |
15748 |
पंजाब |
2.80 |
50342 |
1845 |
हिमाचल प्रदेश |
0.68 |
55673 |
8196 |
दिल्ली |
1.90 |
1484 |
78 |
हरियाणा |
2.77 |
44212 |
1626 |
उत्तराखंड |
1.32 |
53483 |
4048 |
उत्तर प्रदेश |
20.4 |
223290 |
896 |
महाराष्ट्र |
12.08 |
223290 |
1050 |
राजस्थान |
6.96 |
342239 |
4901 |
मध्य प्रदेश |
7.9 |
308252 |
2857 |
बिहार |
10.0 |
99200 |
993 |
तमिलनाडु |
8.0 |
130060 |
1626 |
वैस्ट बंगाल |
9.5 |
88752 |
925 |
विश्व के इन देशों से बड़ा है जम्मू-कश्मीर
देश |
कितना बड़ा |
आस्ट्रिया |
2.75 गुना |
बुल्गारिया |
2 गुना |
कोरिया |
5 गुना |
डेनमार्क |
5 गुना |
हंगरी |
2.5 गुना |
आयरलैंड |
3 गुना |
कुवैत |
12 गुणा |
बहरीन |
375 गुना |
जॉर्डन |
2.5 गुना |
लेबनान |
22 गुना |
श्रीलंका |
4 गुना |
स्विट्जरलैंड |
4.5 गुना |
नेपाल |
1.5 गुना |
पोलैंड |
7 गुना |
बंगलादेश |
1.5 गुना |
भूटान |
7 गुणा |