राज की बात: खुशहाल परिवार बहू के आते ही क्यों बन जाता है महाभारत का अखाड़ा

Edited By ,Updated: 15 Sep, 2015 04:18 PM

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संसार का अस्तित्व सामाजिक संबंधों पर टिका है। सामाजिक संबंधों की मूल इकाई है परिवार। इन्हीं छोटी सी ईकाईयों से समाज का निर्माण होता है।

संसार का अस्तित्व सामाजिक संबंधों पर टिका है। सामाजिक संबंधों की मूल इकाई है परिवार। इन्हीं छोटी सी ईकाईयों से समाज का निर्माण होता है। परिवार सामूहिक रूप से एकसाथ रहकर जीवन यापन करने वाली संस्था है। सृष्टि के विकास हेतु सामाजिक बुद्धि जीवियों ने वैवाहिक संबंधों का उन्मूलन किया। रिश्तों की डोर बहुत नाजुक होती है, फिर चाहे वह पति-पत्नी हों, सास-बहू हों या फिर पिता-पुत्र हों इनके बीच कभी न कभी आपस में टकराव होते ही हैं। यदि बात नोक-झोंक तक सीमित रहे तो ठीक परंतु कलह रूप ले ले तो पारिवारिक वातावरण तनावपूर्ण हो जाता है। कई बार न चाहते हुए भी घर में कलह का वातावरण पैदा हो जाता है। 
 

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ऐसा अशुभ व पापी ग्रहों के प्रभाव के कारण होता है। एक बहुत पुरानी लोकोक्ति है की जहां चार बर्तन होंगे वह आपस में टकराएंगे ही लेकिन सुखी घर में कई बार बहू आने से भी क्लेश होने लगते हैं। इस लेख के माध्यम से हम पाठकों को बताते हैं की एक खुशहाल परिवार बहू के आते ही क्यों बन जाता है महाभारत का अखाड़ा।
 
पति-पत्नी के तनाव का मुख्य कारण उनके घरवालों को लेकर उत्पन्न कलह होती है। कई बार दांपत्य में तनाव इतना बढ़ जाता है कि तलाक की नौबत आ जाती है। इससे बचाव का एक सरल सा रास्ता यह है कि जब लड़के या लड़की के गुणों का मिलान किया जाता है तो गुणों के साथ पत्री पर भी ध्यान देना चाहिए। जन्मकुंडली में सप्तम भाव, सप्तमेश, सप्तम भाव में स्थित ग्रह, सप्तम भाव पर दृष्टि डालने वाले ग्रह व सप्तम भाव के कारक ग्रह से व्यक्ति के दांपत्य के बारे में विचार किया जाता है। यदि जातक का सप्तम भाव निर्बल हो, सप्तम भाव पर पापी ग्रह शनि, मंगल, सूर्य या राहु-केतु का प्रभाव हो, गुरु व शुक्र अस्त हो या पापाक्रांत हों तो दांपत्य सुख में बाधा आती है। कुंडली में सूर्य का प्रथम या सप्तम भावों पर प्रभाव होने पर व निर्बल व नीच के सूर्य के सप्तम भाव में होने पर जातक अहंकारी होता है। जीवनसाथी से स्वाभिमान का टकराव होता है, जिससे विवाद की स्थिति बनती है। 
 
जातक की पत्री में सप्तम भाव में शनि का होना या गोचर करना। किसी पाप ग्रह की सप्तम या अष्टम भाव पर दृष्टि होना या राहु, केतु या सूर्य का वहां बैठना। पति-पत्नी की एक सी दशा या शनि की साढ़े साती का चलना भी कलह का कारण होता है। शुक्र की गुरु में दशा का चलना या गुरु में शुक्र की दशा का चलना भी एक कारण है। शनि का प्रभाव सप्तम भाव पर होने पर दांपत्य जीवन नीरस होता है। विवाह के पश्चात पार्टनर के प्रति उमंग की भावना क्षीण होने लगती है। परस्पर आकर्षण में कमी आ जाती है। पति-पत्नी साथ रहते हुए भी पृथक रहने के समान जीवन व्यतीत करते हैं। पति-पत्नी के आपस में चिड़चिड़ापन, स्वभाव में कड़वाहट आ जाती है जिसके फलस्वरुप पति-पत्नी में छोटी बातों पर विवाद पैदा हो जाते हैं। झगड़े होने से परिवार के वातावरण में कलह के बादल छा जाते हैं। 
 
 
मंगल पापी ग्रह माना जाता है। जातक की कुंडली में मंगल जन्म लग्न से पहले, चौथे, सातवें, आठवें या बारहवें भाव में स्थित होने पर जातक मांगलिक माना जाता है। मंगल जातक के स्वभाव में अधिक उग्रता पैदा करता है। यदि लग्न या सप्तम भाव पर मंगल स्थित हो या सप्तम भाव पर मंगल का प्रभाव हो तथा किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो जातक क्रोधी, स्वाभिमानी एवं अहंकारी होता है। स्वभाव में उग्रता, हठीलापन होने से परिवार में उठने वाली छोटी-छोटी बातों पर पति-पत्नी के मध्य विवाद या झगड़े उत्पन्न हो जाते हैं जो अंत में गृह-कलह पैदा करते हैं। लग्न एवं सप्तम भाव में राहु के दुष्प्रभाव के कारण दांपत्य में विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। अन्य परिवार के सदस्यों के दखल के कारण पति-पत्नी के मध्य विवाद, लड़ाई-झगड़े खड़े होते हैं जिससे उनके दांपत्य में सुख की कमी आती है।
 
कई बार देखने में आता है कि न तो ग्रहों की परेशानी है, न ही पत्री में दशा व गोचर की स्थिति खराब है। फिर भी गृहक्लेश है जिसके कारण घर महाभारत का अखाड़ा बन जाता है । ऐसे में यह धारणा होती है कि किसी ने कुछ जादू टोना या तांत्रिक प्रयोग तो नहीं किया गया है। तांत्रिक प्रयोग जैसे विद्वेषन या वैरोचन के माध्यम से घर-परिवार में क्लेश करवाए जाते हैं। इसके साथ-साथ बहू के आते ही घर में लड़ाई- झगड़ों का सबसे बड़ा कारण पितृदोष है। पितृदोष दो कारणों से विद्यमान होता है। पहला कारण कुंडली में जनित ग्रहदोष के कारण दूसरा जब पूर्वजों की अंतिष्ठि अर्थात अंतिम क्रिया, तर्पण व श्राद्ध कर्म शास्त्रानुसार न किया जाए।
 
आचार्य कमल नंदलाल
 

ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com 

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