आशुतोष की कृपा से समृद्ध होते हैं धनु राशि के जातक

Edited By ,Updated: 25 Nov, 2015 12:23 PM

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ज्योतिष शास्त्र का कथन है कि अपनी राशि के अनुसार ही देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करते रहने से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। अनुमान से हम किसी भी देव-देवी की पूजा शुरू कर देते हैं किंतु

ज्योतिष शास्त्र का कथन है कि अपनी राशि के अनुसार ही देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करते रहने से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। अनुमान से हम किसी भी देव-देवी की पूजा शुरू कर देते हैं किंतु लगातार साधना करते रहने पर भी जब हमें सुख-शांति की प्राप्ति नहीं होती तो हमारे विश्वास में कमी आने लगती है और जीवन में निराशा छाने लगती है।

प्रत्येक जन्म लगन के तीस अंश होते हैं जिन्हें दस-दस के भागों में बांट कर तीन रूप दे दिया जाता है। ये, यो, भा, भ, भू, घ, फ, ढ, में नौ वर्णों में योग से धनु राशि का निर्माण होता है। इन वर्णों में से ‘ये, यो, भा’ को प्रथम दश अंश में, ‘भी, भू, घ’ को द्वितीय अंश में तथा ‘फ, ढ़, भे,’ को तृतीय अंश में रख कर सभी वर्णाक्षरों के जातकों के अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करने की सलाह दी जाती है।

21 नवम्बर से 20 दिसम्बर के मध्य जन्म लेने वाले जातक धनु राशि के माने जाते हैं। इस अवधि को तीन भागों में बांटने से 21 नवम्बर से 30 नवम्बर के जातक प्रथम दशांश के, 01 दिसम्बर से 10 दिसम्बर के मध्य जन्म लेने वाले जातक द्वितीय दशांश के तथा 11 दिसम्बर से 20 दिसम्बर के मध्य जन्म लेने वाले जातक तृतीय दशांश के जातक कहलाते हैं।

प्रथम दशांश अर्थात जिनका जन्म 21 नवम्बर से 30 नवम्बर के बीच हुआ हो और उनका नाम ये, यो, भा वर्णों से शुरू होता हो, ऐसे सभी जातकों के इष्ट भगवान विष्णु माने जाते हैं। इन्हें विष्णु से संबंधित पूजा, पाठ, स्तोत्र मंत्रादि के जप से अभीष्ट की प्राप्ति शीघ्रातिशीघ्र हो सकती है।

धनु राशि के प्रथम दशांश के सभी जातकों (स्त्री-पुरुषों) को विष्णुसहस्त्रनाम, भगवद्गीता, क्षीरशयिनी स्तोत्र आदि में से किसी भी एक का पाठ नियमित रूप से करते रहना चाहिए।  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का नियमित जाप लाभकारी है।  ॐ वासुदेवाय नम:,  ॐ कृष्णाय् नम:,  ॐ माधवाय नम: में से किसी भी एक मंत्र का जाप किया जा सकता है।

धनु राशि के द्वितीय दशांश में जन्म लेने वाले जातक अर्थात 01 दिसम्बर से 10 दिसम्बर के बीच जन्म लेने वाले जातक जिनका नाम ‘भी, भू, घ’ वर्णों से शुरू होता हो तो उन्हें ‘भैरव’ की उपासना करनी चाहिए। भगवान शंकर के प्रिय भैरवनाथ की पूजा आराधना से उन्हें यथेष्ट लाभ मिल सकता है।

ॐ बं बहुकाय नम:’ मंत्र का जाप, भैरवाष्टक, भैरवस्तोत्र, भैरव चालीसा आदि में से किसी भी एक का नियमित रूप से पाठ करने पर आशुफल की प्राप्ति होती है। इन जातकों को ‘भैरव यंत्र’ धारण कर लेने से सभी प्रकार के कष्ट लुप्त हो जाते हैं।

धनु राशि के तृतीय दशांश के जातक जिनका जन्म 11 दिसम्बर से 20 दिसम्बर के मध्य हुआ हो तथा जिनके नाम ‘क, ढ़़ भि, आदि वर्णों से प्रारंभ हुआ हो उनके इष्ट भगवान आशुतोष को माना जाता है। भगवान आशुतोष की पूजा-अर्चना के माध्यम से अभीष्ट की प्राप्ति की जा सकती है।

 ॐ आशुतोषाय नम: मंत्र का नियमित जाप करते रहने से तथा शिवमहिम्मनस्तोत्र, रुद्राष्टाध्यायी, पञ्चाक्षरी मंत्र आदि का नियमित पाठ करते रहने से आशुतोष प्रसन्न होते हैं। शिव कवच, शिवकृपा यंत्र आदि को धारण करने से इष्ट प्रसन्न होते हैं। शिव कवच, शिवकृपा यंत्र आदि को धारण करने से इष्ट प्रसन्न होते हैं। सोमवार का व्रत करना लाभकारी होता है।

धनु राशि के प्रथम दशांश में जन्म लेने वाले पुरुष-स्त्री का स्वभाव चंचल किंतु मृदुल होता है। ये सहज ही दूसरों पर विश्वास कर लेते हैं अत: इनकी भावनाओं को छला जाता है। इस जातक के स्त्रियों को सोमवार तथा शनिवार एवं पुरुषों को रविवार एवं शुक्रवार को संभोग करना वर्जित बताया गया है।

द्वितीय दशांश में जन्म लेने वाले जातकों को बृहस्पतिवार के दिन संभोग करना वर्जित बताया गया है। इसी प्रकार तृतीय दशांश के जातकों को बुधवार को संभोग से वर्जित रहना चाहिए। तृतीय दशांश में जन्म लेने वाले जातकों का चरित्र अत्यंत ही पवित्र होता है। इनमें त्याग की भावना भी कूट-कूट कर भरी रहती है।

धनु राशि वाले जातक यदि मिट्टी के कलश में पीला चावल बांध कर वीरवार के दिन चंदन का लेप लगाकर नदी में कलश को प्रवाहित कर देते हैं तो अत्यंत लाभ मिलता है।

—आनंद कुमार अनंत

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