परंपराओं के अनुसार मुहूर्त के बिना इस दिन कर सकते हैं शादी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Nov, 2017 08:04 AM

according to traditions marriages can do this day without muhurta

नवंबर महीने की 11 तारीख से शुरू हुए विवाह के मुहूर्त केवल 12 दिसम्बर तक ही रहेंगे अर्थात इस वर्ष का केवल एक मास रह गया जब अविवाहित घोड़ी या डोली चढऩे के अपने अरमान पूरे कर सकते हैं।  शुभ विवाह मुहूर्त :  नवम्बर- 23, 24, 25

नवंबर महीने की 11 तारीख से शुरू हुए विवाह के मुहूर्त केवल 12 दिसम्बर तक ही रहेंगे अर्थात इस वर्ष का केवल एक मास रह गया जब अविवाहित घोड़ी या डोली चढऩे के अपने अरमान पूरे कर सकते हैं। 


शुभ विवाह मुहूर्त : 
नवम्बर- 2
3, 24, 25, 28, 29, 30
दिसम्बर- 1, 3, 4, 10, 11, 12


शुक्र देव अस्त रहेंगे 
पहले तो 10 अक्तूबर से 10 नवम्बर तक गुरु अस्त रहा और अब 15 दिसम्बर से 2 फरवरी 2018 तक शुक्र देव अस्त रहेंगे जिसे आंचलिक भाषा में तारा डूबना कहते हैं। ज्योतिष शास्त्र में गुरु एवं शुक्र का आकाश में प्रबल स्थिति में होना ऐसे मांगलिक कार्यों में आवश्यक माना गया है।


मुहूर्त के बिना शादी के उपाय
हालांकि, आधुनिक युग की आपाधापी में कई लोगों को विवाह के शुभ मुहूर्त तक प्रतीक्षा करने की फुर्सत ही नहीं है विशेषत: अनिवासी भारतीय जो रहते तो विदेशों में हैं और शादियां भारत में ही करना चाहते हैं, वह भी परंपराओं के अनुसार। 


उनके लिए रविवार के दिन अभिजीत मुहूर्त होता है जो स्थानीय समय के ठीक 12 बजे से 24 मिनट पहले आरंभ होता है और 24 मिनट बाद तक रहता है अर्थात आप लगभग पौने 12 से सवा 12 बजे के मध्य अभिजीत मुहूर्त में विवाह कर सकते हैं। अभिजीत का अर्थ है जिसे कोई जीत नहीं सकता अर्थात सर्वश्रेष्ठ समय। इस अवधि में संपन्न किया गया कोई भी मांगलिक कार्य विजय प्राप्त करता है अर्थात शुभ रहता है। भगवान श्री राम एवं श्री कृष्ण का जन्म इसी मुहूर्त में हुआ है और यह दिन तथा रात्रि में इसी समय रहता है।   

 
कई समुदायों में विवाह संस्कार रविवार के दिन ही ठीक दोपहर या 12 बजे संपन्न किए जाते हैं। अक्सर जन साधारण को गलतफहमी है कि इस दिन विवाह अवकाश के कारण रखे जाते हैं ताकि सब फुर्सत के कारण शामिल हो सकें। 


इसलिए होती है संडे को छुट्टी
बहुत कम लोग जानते हैं कि अंग्रेजी शासनकाल में मजदूरों की हालत अधिक कार्य के कारण दयनीय थी और उन्हें आराम का समय नहीं मिलता था। पहले स्वतंत्रता संग्राम 1857  के दौरान एक मजदूर नेता नारायण मेघा जी लोहखंडे ने सरकार के आगे संडे की छुट्टी का प्रस्ताव रखा। यह आन्दोलन लंबा चला और अंतत: 1889 में रविवार को अवकाश देने का प्रस्ताव ब्रिटिश हकूमत ने मान लिया। इसके बाद कई अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने भी रविवार को सार्वजनिक अवकाश घोषित कर दिया।


ज्योतिष में रविवार का महत्व
इसके अलावा ज्योतिष में सूर्य को सबसे बड़ा ग्रह माना गया है जिसके प्रकाश से दुनिया चलती है। इस दिन का धार्मिक महत्व भी है। अंग्रेज रविवार को ‘सैबथ डे’ कहते हैं जिसका अर्थ है - पवित्र दिन! 


रविवार का अवकाश तो अंग्रेजों ने मात्र 100 साल पूर्व ही आरंभ किया था परंतु भारत में ऐसे समुदायों में 300 सालों से रविवार को ही ठीक मध्यान्ह के समय विवाह किया जाता रहा है। 


इसके पीछे अभिजीत मुहूर्त ही है जिसे कई कारणों से स्वीकार नहीं किया जाता वरन् केवल रविवार को ही ठीक 12 बजे लावां-फेरे न लिए जाते या तो सुबह 8 बजे हो जाते या सायं 7 बजे भी तो हो सकते हैं। मूल में ज्योतिषीय गणना एवं मुहूर्त ही इसका आधार रहा है।


जिन परिवारों को किसी कारणवश ज्योतिषीय दृष्टि से दिए गए मुहूर्तों में विवाह करने में दुविधा है तो वे रविवार के दिन स्थानीय समय के अनुसार ठीक 12 बजे दिन या ठीक 12 बजे रात्रि के समय पाणिग्रहण संस्कार अर्थात लावां-फेरे करके यह रस्म पूर्ण कर सकते हैं।    

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