ट्रंप के फैसले से खतरे में दुनिया, बुलाई गई आपात बैठक

Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Dec, 2017 11:54 AM

arab league to hold emergency meeting on trump  s jerusalem decision

अमरीका भले ही यरुशलम को ईस्राइल की राजधानी के तौर पर आधिकारिक मान्यता देने वाला  पहला देश बन गया है, लेकिन उसके इस कदम से दुनिया भर में तनाव की स्थिति पैदा हो गई है। अमरीका के फैसले को शांति प्रयासों को दरकिनार करने वाला कदम माना जा रहा है...

वॉशिंगटनः अमरीका भले ही यरुशलम को ईस्राइल की राजधानी के तौर पर आधिकारिक मान्यता देने वाला  पहला देश बन गया है, लेकिन उसके इस कदम से दुनिया भर में तनाव की स्थिति पैदा हो गई है। अमरीका के फैसले को शांति प्रयासों को दरकिनार करने वाला कदम माना जा रहा है। अमकारी के फैसले के खिलाफ कई देशों में विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। अमरीका के फैसले पर भारत ने कहा, ‘हमारा नजरिया फिलीस्तीन पर स्थिर और स्वतंत्र है। फिलीस्तीन पर हमारा नजरिया और विचार किसी तीसरे देश द्वारा तय नहीं हो सकते।’

भारत दुनिया का ऐसा पहला गैर अरब देश है, जिसने फिलीस्तीन को मान्यता दी है। इस वर्ष भी फिलीस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास भारत की यात्रा पर आए थे। गौरतलब है कि भारत के फिलीस्तीन और ईस्राइल दोनों से घनिष्ठ संबंध हैं। मध्य पूर्व में जब भी तनाव फैलता है तो वहां के विभिन्न देशों में काम करने वाले 80 लाख भारतीयों के जीवन पर असर पड़ने का खतरा हो जाता है। ये भारतीय हर वर्ष 40 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा भेजते हैं, जो भारत की अर्थव्यवस्था में काफी मददगार है।  ऐसे में अरब-ईस्राइल अशांति का भारत पर केवल कूटनीतिक दबाव ही नहीं, बल्कि आर्थिक दबाव भी बढ़ेगा।

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बढ़ते तनाव का असर कच्चा तेल पर पहले ही दिखने लगा है। भारतीय अर्थव्यवस्था की दिशा बहुत हद तक कच्चे तेल से तय होती है, क्योंकि हम अपनी आवश्यकता का 82 प्रतिशत तेल आयात करते हैं। ऐसे में मध्य पूर्व में थोड़ी भी अशांति भारत सहित विश्व के लिए खतरनाक हो सकती है। अमरीका के फैसले से हमास एवं इस्लामिक स्टेटस जैसे आतंकी संगठनों को पुनर्जीवित होने का अवसर मिलेगा, जो विश्व के लिए और भी खतरनाक होगा। इसलिए आवश्यक है कि विश्व समुदाय फिलीस्तीन और इजरायल के तनाव को सूझबूझ के साथ कम करने की कोशिश करे अन्यथा नया अरब-ईस्राइल विवाद भी अतीत की तरह गंभीर दुष्परिणाम दे सकता है।
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अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा  यरुशलम को ईस्राइल की राजधानी के रूप में मान्यता देने  के बाद अमरीकी दूतावास  तेलअवीव से यरुशलम स्थानांतरित करने की तैयारी की जा रही है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की तमाम चेतावनियों को दरकिनार कर अमरीका द्वारा उठाए इस अप्रत्याशित कदम को उसकी पुरानी विदेशी नीति के विपरीत देखा जा रहा है। हर मोर्चे पर अमरीका के साथ खड़े रहने वाले ब्रिटेन ने भी ट्रंप के फैसले को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। अमरीका की  पुरानी विदेश नीति के अनुसार यरुशलम का भविष्य ईस्राइल और फिलीस्तीन के बीच बातचीत के जरिए तय किया जाना था।

1995 में अमरीकी कांग्रेस में प्रस्ताव पास किया गया था, जिसमें दूतावास को यरुशलम में स्थानांतरित करने की बात कही गई थी। हालांकि बाद में जो भी अमरीकी सत्ता में आया उसने यथास्थिति बनाए रखी। इसके लिए वे प्रत्येक 6 महीने में एक अधित्याग पत्र पारित करते थे। मगर ट्रंप ने यथास्थिति को तोड़ते हुए यरुशलम को ईस्राइल की राजधानी के तौर पर मान्यता देकर अरब जगत को भड़का दिया है । ट्रंप के इस फैसले खिलाफ  अरब लीग ने शनिवार को  आपात बैठक बुलाई है। मुस्लिम देश ही नहीं, बल्कि पश्चिमी देश भी ट्रंप के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं।

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