Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Jan, 2018 11:07 AM
मनोविज्ञान का पीरियड था। उस दिन क्लास में नई टीचर आई थीं। आपसी परिचय के बाद टीचर ने बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। बच्चे भी ध्यान लगाकर उनके द्वारा पढ़ाई जाने वाली बातों को सुन रहे थे।
मनोविज्ञान का पीरियड था। उस दिन क्लास में नई टीचर आई थीं। आपसी परिचय के बाद टीचर ने बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। बच्चे भी ध्यान लगाकर उनके द्वारा पढ़ाई जाने वाली बातों को सुन रहे थे। तभी पढ़ाते-पढ़ाते अचानक टीचर ने वहीं टेबल पर रखा पानी का गिलास उठाया। बच्चे सोचने लगे कि अब शायद टीचर उन्हें आधा गिलास भरा और आधा खाली वाला सबक ही पढ़ाएंगी।
मगर इसकी बजाए टीचर ने उनसे पूछा, ‘‘बच्चो, क्या तुम बता सकते हो कि मेरे हाथ में जो गिलास है, उसका वजन कितना होगा?’’ बच्चे अपने-अपने आकलन के हिसाब से जवाब देने लगे। किसी ने उसका वजन 50 ग्राम बताया, तो किसी ने सौ-सवा सौ ग्राम। बच्चों के जवाब सुनने के बाद टीचर बोलीं, ‘‘खैर, इस गिलास का वजन जो भी हो, वह ज्यादा मायने नहीं रखता। मायने यह रखता है कि मैं इसे कितनी देर उठाए रख सकती हूं। अगर मैं इसे 5-10 मिनट तक उठाकर रखूं तो मुझे इससे खास फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन यदि मैं इसे लगातार एक घंटे तक उठाकर रखूं तो मेरा हाथ दुखने लगेगा। इसी तरह यदि मैं इसे दिनभर इसी तरह उठाए रहूं तो यकीनन मेरा हाथ सुन्न पड़ जाएगा, जिससे मुझे काफी तकलीफ झेलना पड़ेगी।’’
यह सुनकर बच्चों ने भी टीचर की इस बात से सहमति जताई। टीचर ने आगे कहा, ‘‘बच्चो, इसी तरह समस्याएं भी होती हैं। अगर मैं किसी छोटी-सी समस्या के बारे में कुछ देर के लिए चिंता करूं तो इससे मेरे मन पर ज्यादा बोझ नहीं पड़ेगा, पर यदि मैं उसी के बारे में लगातार सोचती रहूं, उसको लेकर परेशान रहूं तो यकीनन मेरा तनाव बढ़ जाएगा। इस तरह छोटी-सी समस्या भी लगातार चिंतित रहने की वजह से मुझे बड़ी तकलीफ दे सकती है।
हो सकता है कि मैं अवसाद की शिकार भी हो जाऊं। लिहाजा बेहतर यही है कि समस्याओं को बेवजह महत्व न दिया जाए। जैसी समस्या हो, उसी के मुताबिक उस पर विचार-मंथन कर उसका जल्द से जल्द निदान तलाशना उचित है। अपनी परेशानियों को मन में घर न करने दें, न ही उन्हें लेकर ज्यादा तनाव लें। इससे स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ सकता है।’’ बच्चों ने टीचर द्वारा सिखाई गई यह बात गांठ बांध ली।