परिवार से अलग होने की जिम्मेदारी क्या सिर्फ औरत है?

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Jan, 2018 11:02 AM

is the only woman responsible for the separation from the family

अनीता गर्भवती है..पर उसकी किसीको कोई परवाह नहीं है. सुबहउठ के सबके लिए नाश्ता बनाती है. इस हालत में भी बाल्टी भर के सारे घर के कपड़ेधोती है. उसकी ननद एक महीने के लिये रहनेआयी हुई है. घर थोड़ा छोटा है, इसलिए सबके सोने की जगह नहीं है, अब किसी न किसी...

अनीता गर्भवती है..पर उसकी किसीको कोई परवाह नहीं है. सुबहउठ के सबके लिए नाश्ता बनाती है. इस हालत में भी बाल्टी भर के सारे घर के कपड़ेधोती है. उसकी ननद एक महीने के लिये रहनेआयी हुई है. घर थोड़ा छोटा है, इसलिए सबके सोने की जगह नहीं है, अब किसी न किसी को नीचे तो सोना पड़ेगा. उसकी ननद को नीचे नींद नहीं आती, बाकी सब भी अपने आराम से समझौता नहीं कर सकते, इसलिए अनीता को ही इस हालत में नीचे सोना पड़ता है. अगर उसका पति सके काम में उसका हाथ बंटाने की कोशिश करता है तो उसकी माँ की नज़रों में वो जोरू का गुलाम है. उसका बच्चा सातवें महीने में ही पैदा हो गया, जिसको बहुत मुश्किल से बचाया जा सका, फिर इसमें दोष भी तो उसी का ही था, क्योंकि उसकी सास के मुताबिक उसने अपना ध्यान ठीक से नहीं रखा!

 

हम किसी बस या ट्रेन में सफर करते है, और किसी गर्भवती स्त्री को कोई सीट नहीं देता तो हम उसे जी भरके कोसते हैं, कहते हैं, आजकल लोग कितने अमानवीय हो गए हैं. और अपने ही घर में एक गर्भवती औरत, जो अपने ही परिवार का हिस्सा है, के साथ इससे भी ज्यादा अमानवीय व्यवहार करते हैं. आप ही बताइये ये कैसा इन्साफ है अनीता के साथ, कहाँ की इंसानियत है? अब कहिये ये तो होता ही है हर जगह, औरत है तो काम तो करना ही पड़ेगा. क्या इंसानियत अपने घर की औरतों के लिए लागू नहीं होती? ये रिवाज़ किसने बनाया कि औरत ही सारे घर का काम करेगी? हमारे समाज ने, हमारे पूर्वजों ने? जब ये नियम बना था तब औरत नौकरी नहीं करती थी.

 

आज की औरत घर से बाहर निकल के, मीलों का सफर तय करके आदमी की तरह नौकरी भी करने जाती है,आदमी की बराबर वक़्त भी देती है अपनी नौकरी में, उसका बॉस तो ये सोच के उसे कम काम नहीं देता की बेचारी घर में भी कितना काम करती होगी..!! तो फिर सारी अपेक्षाएं उससे ही क्यों हैं, कि वो सुबह जल्दी उठ के सारे घर के लिए खाना बनाएगी, बच्चों को तैयार करेगी, फिर ऑफिस से आके रात का खाना बनाएगी, फिर बच्चों का ध्यान भी तो उसीको ही रखना है, और भी ना जाने क्या क्या करना पड़ताहै उसे. और क्या बाकी लोगों की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है? वो भी तो उसी घर का हिस्सा हैं, और शायद ज़्यादा बड़ा हिस्सा हैं, क्योंकि उस घर के लिए इतना कुछ करने के बाद भी अगर थोड़ा अपने बारे में सोच लिया तो सुननेको मिलता है, कि अपनी मर्ज़ी अपने घर में चलाना, क्योंकि उसे तो पराया ही समझा जाता है, वो दूसरे घर से जो आई है, इस घर का हिस्सा ही नहीं है. पर जब घर का काम करने की बारी आती है, तो कहा जाता है, इसे अपना घर समझो, अब यही तुम्हारा घर है, वो घर तो पराया हो गया है जहाँ से तुम आई हो. फिर पति भी यही कहता है, तुम अब तक इस घर को अपना नहीं पायी हो, मेरे माँ बाप को अपने माँ बाप समझो, अब यही तुम्हारे सब कुछ हैं

 

. ये दौहरे सिद्धांत औरत के लिये ही क्यों हैं? कैसे वो उस घर कोअपना ले, जहाँ उसे हर मोड़ पर यही एहसास दिलाया जाता है कि वो इस घर की है ही नहीं. जब अपने मायके जाती है, तो सोचती है कि ‘शायद यहाँ तो अपनी मर्ज़ी से रह सकती हूँकुछ दिन, जो मन में आये कर सकती हूँ’. वहाँ भी यही एहसास होता है, कि यहाँ तो सब कुछ बदल चुका है, पहले जैसा कुछ भी नहीं रहा, सब कुछ अलग अलग सा लगता है, अपना सा तो कुछ भी नहीं लगता! उसपर भी कभी कभी यही जताया जाता है कि ये अब उसका घर नहीं..अपने पति के घर जा के अपनी मर्ज़ी चलाये..यहाँ अपना हक ना जताये, और ना ही इस घर के मामले में दखल दे. आखिर कौन सा घर है एक औरत का…जिसे वो अपना कह सके..? जहाँ अपनी मर्ज़ी से रह सके, खा सके, हस सके, बोल सके, खुश रह सके, जहाँ उसे हर मोड़ पर ये एहसास ना दिलाया जाए कि उसकी मर्ज़ी यहाँ नहीं चलेगी. आखिर कहाँ जा के वो अपनी भी मर्ज़ी चलाये?और अगर उसका पति उसका साथ दे तो उससे भी कहा जाता है, कि अपना अलग इंतज़ाम कर लो,यहाँ अब साथ में नहीं निभेगी हमारी तुम लोगों से!

 

अब आप ही बताइये कि क्या हमेशा बहु ही ज़िम्मेदार होती हैपरिवार से अलग होने में. अब सोचिये उस बेटे पर भी क्या बीतती होगी जिससे कभी तो प्यार के दावे किए जाते थे, और अगर उसने अपनी पत्नी का थोड़ा सा साथ दिया और उसके हित में कुछ कहा, जो सबके लिये इतना करने के बाद भी प्रताड़ित ही होती है, तो उसे घर से जाने के लिये कह दिया गया. मैं मानती हूँ कि माँ बाप ने उसे पाल पोस के बड़ा किया है, और बहुत कुछ किया है उसके लिये, जो वो आज है सिर्फ अपने माँ बाप की बदौलत है, और बुढ़ापे में अब उनकी सेवा करना उस बेटे का फर्ज़ है. अब उस बहु के नज़रिये से सोचिये. वो लड़की ख़ुशी-ख़ुशी अपना घर, अपनी पहचान, अपने माँ बाप, जिन्होंने उसे भी पाल पोस के बड़ा किया है, और बहुत कुछ किया उसके लिए, अपना आराम जो उसे शादी से पहले मिलता था अपने घर में, और नाजाने क्या क्या छोड़कर एक इंसान पर अपनी पूरी ज़िन्दगी का भरोसा कर के आई है, कि वो उसे उस नए घर में हर तरह से खुश, मेहफ़ूज़, और ठीक रखेगा. और इस आस में वो जी जान लगा देती है अपना, अपने पति और पूरे परिवार का दिल जीतने में, पर आखिर में हार जाती है, क्योंकि वो देखती है कि वो जितना भी करे सबको कम ही लगता है, और अपेक्षाएँ बढ़ती ही जाती हैं, बदले में प्यार की बजाय नफरत, ताने और उपेक्षा ही मिलती है. ज़रा सोचिये क्या बीतती होगी उस लड़की पे,? रोज़ उसका विश्वास थोड़ा-थोड़ा टूटता होगा, जो उसने उस परिवार पे और अपने पति पे किया था, रोज़ किसी ना किसी तरह ठेस पहुँचती होगी उसके दिल को, रोज़ नाजाने कितने आँसू बहाती होगी, रोज़ थोड़ा-थोड़ा मरती होगी! अगर उसके पति के माँ बाप ने उसे राजकुमार की तरह पाला है तो वो भी तो कभी अपने पापा की राजकुमारी थी. 

 

अगर उस बेटे पर उसके माँ बाप ने अपना अतीत कुर्बान किया है तो वो पत्नी अपने पति के भरोसे पर अपना आज और अपना भविष्य कुर्बान करने आई है. इसलिए क्या उस बेटे और पति की दोनों के लिये बराबर की ज़िम्मेदारी नहीं बनती? क्या ऐसे में जो सही है, उसका साथ नहीं देना चहिये उसे? अगर वो अपनी पत्नी का साथ देता है तो उसे परिवार से अलग होने को कह दिया जाता है, या वो और उसकी पत्नी मिलकर खुद ये फ़ैसला लेते है अगर उन्हें लगता है की वो उन्हें नहीं समझा पा रहे कि वो गलत कर रहे हैं. हमेशा एक बहु, एक पत्नी ही गलत नहीं होती और बेटे को एक संयुक्त परिवार से अलग करने की ज़िम्मेदार नहीं होती!! अगर लड़की के सास ससुर उसे थोड़ा सा प्यार दे, उसे भी एक इंसान समझें कि उसे भी भूख प्यास वैसे ही लगती है जैसे बाकी सबको लगती है, वो भी थकती है काम करके, उसे आज़ादी दें कुछ फैंसले खुद से लेने की, परिवार के फैसलों में उसकी भी सहमति लें और उसे ये एहसास दिलाएं कि ये उसका भी घर है, उसे थोड़ा सा महत्व दें तो शायद वो कभी परिवार से अलग होने के बारे में सोचेगी भी नहीं और ना ही अपने पति को सोचने देगी. एक बहु की अपेक्षाएँ ज़्यादा नहीं होती, अगर उसे समझा जाए तो शायद एक संयुक्त परिवार कभी टूटेगा नहीं!!

 

प्रज्ञा मोहन

9650433334
 

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