अब राम भरोसे अयोध्या का विकास!

Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Dec, 2017 02:07 PM

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देश में राम मंदिर मुद्दे को लेकर चल रही बहस के बीच अब 2019 के लोकसभा चुनाव में उठाए जाने वाले मुद्दे को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। 2014 का लोकसभा चुनाव भाजपा ने भ्रष्टाचार और विकास के मुद्दे को लेकर लड़ा था लेकिन 2019 आते-आते पार्टी के बड़े नेता अब...

नई दिल्ली: देश में राम मंदिर मुद्दे को लेकर चल रही बहस के बीच अब 2019 के लोकसभा चुनाव में उठाए जाने वाले मुद्दे को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। 2014 का लोकसभा चुनाव भाजपा ने भ्रष्टाचार और विकास के मुद्दे को लेकर लड़ा था लेकिन 2019 आते-आते पार्टी के बड़े नेता अब विकास की बजाय च्रामज् का सहारा ढूंढने लगे हैं। आने वाले चुनाव में राम मंदिर का मुद्दा विकास पर भारी पड़ सकता है।  सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई के बाद से ही भाजपा के नेताओं की तरफ से इस मुद्दे पर बयानबाजी शुरू हो गई है। 

इस बयानबाजी को आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी द्वारा जमीन तैयार किए जाने के तौर पर देखा जा रहा है।  पहले भी राम मंदिर का मुद्दा भाजपा के लिए सियासी तौर पर फायदे वाला रहा है लेकिन मामले के सुप्रीम कोर्ट में होने के कारण पार्टी के आला नेता इस मामले में ज्यादा बयानबाजी करने से बचते रहे हैं। 1996 के बाद भाजपा 10 साल सत्ता में रह चुकी है लेकिन अतीत में पार्टी का कोर मुद्दा रहा राम मंदिर उसके एजैंडे के अंत में आता रहा। पिछली बार के चुनाव के दौरान भी पार्टी ने विकास व भ्रष्टाचार के मुद्दे को  ज्यादा भुनाया जबकि अपने कोर मुद्दे राम मंदिर और जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाने को पूरे प्रचार की पृष्ठभूमि में ही रखा है। पार्टी के नेता यही बयान देते रहे कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय ही अंतिम और मान्य होगा। 

संघ प्रमुख ने कहा- मंदिर अयोध्या में बनेगा
बीते दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भी इस मुद्दे पर बयान दिया और कहा कि अयोध्या में राम मंदिर बनाना हिंदूओं की आस्था का प्रश्र है और मंदिर अयोध्या में ही बनाया जाएगा। हालांकि उन्होंने इस मामले में आपसी सहमति की भी बात की लेकिन 2019 के चुनाव से पहले इस तरह की बयानबाजी आने वाले दिनों की राजनीति की तरफ इशारा कर रही है। 

कांग्रेस को बैकफुट पर लाने की रणनीति
भाजपा इस मुद्दे पर देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को बैकफुट पर लाने की रणनीति पर काम कर रही है। पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने इस मामले में राहुल गांधी को अपनी स्थिति स्पष्ट करने की चुनौती दी। कांग्रेस के नेता और सुप्रीम कोर्ट में सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने अदालत में दलील दी कि मंदिर मामले में सुनवाई 2019 के लोकसभा चुनाव पूरे होने के बाद होनी चाहिए क्योंकि पहले सुनवाई होने की स्थिति में इसका राजनीतिक असर हो सकता है। हालांकि अदालत ने कपिल सिब्बल की इस दलील को नकार दिया लेकिन अदालत में दी गई इस दलील को भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने लपक कर कांग्रेस पार्टी के भावी अध्यक्ष राहुल गांधी पर हमला बोल दिया और उन्हें इस मामले पर स्थिति स्पष्ट करने को कहा। 

कांग्रेस के लिए क्यों मुश्किल
कांग्रेस अभी भी 6 राज्यों में भाजपा के मुकाबले प्रमुख विपक्षी पार्टी है। गुजरात के अलावा हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश में कांग्रेस के अलावा किसी सियासी पार्टी का अस्तित्व नहीं है तथा इन राज्यों की लोकसभा सीटों पर पार्टी का मुकाबला सीधा भाजपा से होता है। यदि कांग्रेस इस मुद्दे पर स्थिति स्पष्ट नहीं करती है तो हिंदू बहुल इन राज्यों में कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है। 

क्षेत्रीय पाॢटयों के लिए भी चुनौती
राम मंदिर का मुद्दा उठने के बाद क्षेत्रीय पार्टियों को भी इस मामले में अपनी स्थिति साफ करनी पड़ेगी। देश की राष्ट्रीय जनता दल, तृणमूल कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी, नैशनल कांफ्रैंस, जनता दल, सैकुलर और लैफ्ट जैसी पार्टियां सैकुलर राजनीति करती हैं क्योंकि इन पार्टियों के प्रभाव वाले राज्यों में अच्छी-खासी संख्या मुस्लिम वोटरों की है लेकिन जम्मू-कश्मीर को छोड़ कर जिन राज्यों में इन पाॢटयों का आधार है वहां पर भी हिंदू आबादी बहुसंख्यक है। लिहाजा राम मंदिर के मुद्दे पर स्थिति साफ न करना ऐसी पार्टियों के लिए भी सियासी तौर पर नुक्सानदायक हो सकता है।  

पूर्वोत्तर राज्यों में असर नहीं
2019 के चुनाव में यदि राम मंदिर का मुद्दा विकास के मुद्दे पर भारी पड़ता है तो मध्य व उत्तर भारत में तो इसका सियासी असर देखने को मिल सकता है लेकिन पूर्वोत्तर के राज्यों में इस मुद्दे पर ज्यादा सियासत न होने की संभावना है क्योंकि अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड जैसे राज्यों में ङ्क्षहदू आबादी अल्पसंख्यक है तथा इन राज्यों में क्रिश्चियन आबादी बहुसंख्यक है। इसके अलावा लक्षद्वीप व जम्मू-कश्मीर में भी मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक है। लिहाजा इन राज्यों में इस मुद्दे का सियासी असर बहुत कम हो सकता है। 

मंदिर मुद्दे से बड़े नेता बने ये चेहरे 
लाल कृष्ण अडवानी, उम्र 90 साल 
-कराची में पैदा हुए लाल कृष्ण अडवानी को राम मंदिर के लिए शुरू की गई मुहिम ने जनता में लोकप्रिय नेता बनाया। अडवानी द्वारा 1990 में शुरू की गई रथयात्रा के बाद भाजपा 1991 में लोकसभा में दूसरी बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी। 

-1993 में पार्टी का अध्यक्ष बनने के बाद अडवानी ने पार्टी में दूसरी कतार के नेता तैयार किए और 2002 में देश के उपप्रधानमंत्री बने। 2004 में भाजपा के चुनाव हारने के बाद भी पार्टी में उनकी तूती बोलती रही। 

-अडवानी के राजनीतिक करियर में गिरावट 2005 में उस वक्त आई जब उन्होंने पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की मजार पर जाकर उन्हें सैकुलर नेता बताया। अडवानी के इस बयान से संघ नाराज हो गया। 2009 के चुनाव के बाद भी अडवानी का राजनीतिक कद नहीं बढ़ सका। अब वह पार्टी के मार्गदर्शक मंडल में शामिल हैं लेकिन इस मार्गदर्शक मंडल की 2014 के बाद कोई बैठक नहीं हुई है। 

मुरली मनोहर जोशी, उम्र 83 साल
-भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष 6 दिसम्बर, 1992 को बाबरी मस्जिद को गिराए जाने के समय घटनास्थल से चंद मीटर की दूरी पर थे। अडवानी उस दौरान पूरी मुहिम का चेहरा थे तो जोशी अविभाजित उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण नेता होने के नाते इस पूरी मुहिम का अहम स्तम्भ थे।  नरेन्द्र मोदी मुरली मनोहर जोशी द्वारा दिसम्बर, 1991 और 1992 के मध्य कन्याकुमारी से कश्मीर तक शुरू की गई एकता यात्रा के लिए संसाधन जुटाने में अहम भूमिका में थे। जोशी के मंदिर मुहिम के लिए इस आक्रामक रुख ने उन्हें संघ के भीतर लोकप्रियता दिलाई। 

-जोशी भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण अडवानी के बाद तीसरे सबसे बड़े नेता के तौर पर उभरे लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने अपनी वाराणसी सीट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए खाली कर दी और राजनीतिक रूप से जोशी की अहमियत लगभग खत्म हो गई
। 
-जोशी अब पार्टी में बिल्कुल किनारे कर दिए गए हैं लेकिन वह मार्गदर्शक मंडल के सदस्य हैं। 

उमा भारती, उम्र 58 साल
-टीकमगढ़ में पैदा हुई साध्वी का शुरूआती दिनों में सियासत से कोई लेना-देना नहीं था लेकिन वह अपने धार्मिक भाषणों के लिए चर्चा में रहीं। 1984 में उमा भारती ने खुजराहो सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन हार गईं। 

-1989 में उन्होंने इसी सीट से चुनाव जीता और 1990 में लाल कृष्ण अडवानी की रथयात्रा में शामिल हो गईं। उमा भारती के आक्रामक भाषणों ने उन्हें जनता में लोकप्रिय बनाया। वह अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय मंत्री और 2003 में मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। 

-एक पुराने मामले में उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी होने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री की गद्दी छोडऩी पड़ी। 2004 में लाल कृष्ण अडवानी के साथ हुए झगड़े के कारण वह चर्चा में रहीं और 2005 में उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों व अनुशासन भंग करने के आरोप में पार्टी से निकाल दिया गया।
उमा भारती ने 2008 में अपनी पार्टी बनाई लेकिन मध्य प्रदेश के चुनाव में उनकी पार्टी की दुर्गति हो गई। 

-2011 में उमा ने भाजपा में वापसी की और उन्हें उत्तर प्रदेश की राजनीति में उतारा गया। अब वह झांसी से लोकसभा की सदस्य हैं।

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