जब अमित शाह से मिलने को ‘तरस’ गए नीतीश

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Jan, 2018 05:15 AM

nitish went to crave when he met amit shah

अपने गठबंधन साथियों की चिंता भाजपा से ज्यादा और कौन कर सकता है। अब बात बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की करें तो खुफिया रिपोर्ट को आधार बनाकर केंद्र की भाजपा सरकार ने उन्हें आनन-फानन में जैड प्लस कैटेगरी की सुरक्षा मुहैया करा दी, पर भाजपा शीर्ष के...

अपने गठबंधन साथियों की चिंता भाजपा से ज्यादा और कौन कर सकता है। अब बात बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की करें तो खुफिया रिपोर्ट को आधार बनाकर केंद्र की भाजपा सरकार ने उन्हें आनन-फानन में जैड प्लस कैटेगरी की सुरक्षा मुहैया करा दी, पर भाजपा शीर्ष के पास उन्हें देने के लिए यकीनन वक्त की कमी है। 

विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि जब से लालू यादव जेल की सलाखों के पीछे गए हैं तब से नीतीश भगवा सिरमौर अमित शाह से मिलने का समय मांग रहे हैं ताकि आने वाले लोकसभा चुनाव की रणनीतियों को अंतिम रूप दिया जा सके और इस बात पर सहमति कायम की जा सके कि बिहार में भाजपा व जद (यू) के हिस्से कौन-कौन सी सीटें लोकसभा चुनाव लडऩे के लिए आएंगी, पर सियासत में वक्त का तकाजा देखिए कि भाजपा चाणक्य इतने व्यस्त रहे कि उनके ऑफिस से नीतीश को संदेशा मिला कि वे रामलाल जी से मिलकर उनसे बात कर लें। कहते हैं कि नीतीश के दफ्तर ने रामलाल को फोन लगाया तो रामलाल की ओर से बताया गया कि आने वाले दिनों में वे एक रोज के लिए पटना जरूर आ रहे हैं, पर उनका प्रोग्राम बहुत व्यस्त है। फिर नीतीश ने रामलाल से कहा कि वे क्यों नहीं भोजन पर सी.एम. हाऊस आ जाते हैं, वहीं सारी बातें हो जाएंगी। रामलाल तैयार नहीं हुए, उल्टे उन्होंने नीतीश से कहा कि अगर वे चाहें तो एयरपोर्ट पर मुलाकात हो सकती है। नीतीश ने कहा-नहीं इतनी भी जल्दी नहीं है, मैं दिल्ली आकर मिल लेता हूं। 

भाजपा के रामबाण, रामलाल
नीतीश के लिए दिल्ली दूर है, पर इतनी भी दूर नहीं। सो, वे अगले ही कुछ रोज में रामलाल से मिलने दिल्ली आ पहुंचे। फिर दोनों नेताओं के बीच सारगर्भित बातचीत के दौर शुरू हुए। नीतीश चाहते थे कि लोकसभा चुनाव में भाजपा व जद (यू) के बीच सीटों के तालमेल को लेकर एक साफ तस्वीर बन सके। नीतीश का कहना था कि इस वक्त बिहार में 40 में से 32 सीटें एन.डी.ए. गठबंधन के पास हैं, शेष बची 8 सीटें जद (यू), राजद व कांग्रेस में बंटी हैं। सूत्र बताते हैं कि रामलाल ने नीतीश के समक्ष स्थितियां स्पष्ट करते हुए कहा-जो सीटें हमारी हैं, उस पर हम चुनाव लड़ेंगे, जो सीटें पासवान जी की हैं वे तो उनकी सीटें हैं। उपेंद्र कुशवाहा जी भी हमारे साथ रहेंगे। बाकी बची 8 सीटें हम आपके लिए छोड़ सकते हैं। 

हैरान-परेशान नीतीश ने रामलाल से कहा कि जद (यू) हमेशा से भाजपा की बिग पार्टनर रही है, चुनांचे उनके लिए उतनी सीटें छोड़ी जाएं जो कम से कम एक सम्मानजनक संख्या हो और इन 8 सीटों में भी ज्यादातर मुस्लिम बाहुल्य सीटें हैं। रामलाल ने कहा कि अभी वक्त है आप उन सीटों को तैयार कर लें। अब नीतीश के पास कहने के लिए कुछ बचा नहीं था, वे अपना सा मुंह लेकर पटना लौट आए, यानी लौट के बुद्धू घर को आए। 

आनंद से हैं आनंदी
गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल से किया गया वायदा भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को निभाना ही पड़ा, अंतत: उन्हें मध्य प्रदेश का नया गवर्नर नियुक्त करने का ऐलान हो चुका है। इससे पहले आनंदी बेन और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के दरम्यान शह-मात का एक लम्बा दौर चालू था। गुजरात चुनाव में टिकट वितरण से लेकर सरकार के गठन व मंत्रालय के बंटवारे तक में आनंदी बेन की नाराजगी सिर चढ़कर बोलती रही। पटेल समुदाय से ताल्लुक रखने वाले और आनंदी बेन के करीबियों में शुमार होने वाले नितिन पटेल ने जब खुद को एक कम महत्व वाला मंत्रालय दिए जाने पर बगावत का झंडा बुलंद कर दिया तो उन्हें जाहिर तौर पर आनंदी बेन की सरपरस्ती हासिल हुई। 

सबसे पहले हार्दिक पटेल का फोन नितिन पटेल के पास पहुंचा तो नितिन ने कथित तौर पर व्हाटसएप कॉल करने को कहा, इस पर हार्दिक ने कहा कि इसमें छिपाने वाली कोई बात नहीं। दुनिया (मोदी-शाह) को जानना चाहिए कि इतनी विपरीत परिस्थितियों के बाद भी हम पटेल एक हैं। सूत्र बताते हैं कि इसके बाद आनंदी बेन के घर पटेल विधायकों की एक अहम बैठक हुई, जिस बैठक में 17 पटेल विधायकों की मौजूदगी बताई जाती है। कहते हैं इसके बाद शाह का आनंदी बेन को फोन गया कि-आप ऐसा क्यों कर रही हैं? सूत्र बताते हैं कि इस पर आनंदी ने कहा-आप अपने वायदे पर टिके नहीं रहे, आप पटेल विरोधी हैं। आपने मेरे बेटे को टिकट नहीं दी, मेरी सीट पर मेरे विरोधी को टिकट दिया। कहते हैं इसके बाद कमान स्वयं मोदी को संभालनी पड़ी, तब जाकर आनंदी बेन ने हथियार डाले, जिसका ईनाम अब जाकर उन्हें मिला है। 

सचिन व भंवर अधर में
राजस्थान के 2 लोकसभा उपचुनाव अजमेर और अलवर के लिए कांग्रेस अपनी पूरी ताकत झोंक देना चाहती है। अपनी नई ताजपोशी से उत्साहित राहुल गांधी भी इन दोनों उपचुनावों को लेकर खासे सक्रिय हैं। शुरूआत से ही राहुल चाहते थे कि अजमेर से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट मैदान में उतरें जहां उनकी टक्कर अजमेर के दिवंगत सांसद सांवर लाल जाट के पुत्र से होनी थी, पर मामले की नाजुकता को भांपते हुए सचिन ने मैदान से हट जाना ही बेहतर समझा, उन्हें कहीं न कहीं ऐसा लग रहा था कि यह पूरा उपचुनाव सहानुभूति की लहर पर जीता-हारा जाएगा। 

सचिन ने यह कहते हुए किनारा कर लिया कि वे अजमेर और अलवर दोनों ही जगह कांग्रेस को जिताने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाएंगे, वहीं सचिन के करीबी खुलासा करते हैं कि उन्हें डर लग रहा था कि वे यहां यानी अजमेर से चुनाव हार जाएंगे और ऐसा हुआ तो फिर राजस्थान का अगला सी.एम. बनने के उनके मंसूबे पर ग्रहण लग सकता है। वहीं दूसरी ओर राहुल करीबी भंवर जितेंद्र सिंह ने भी चुनावी जंग में उतरने से मना कर दिया क्योंकि अलवर से भाजपा ने यहां के निवर्तमान विधायक और वसुंधरा सरकार में मंत्री जसवंत यादव को मैदान में उतारा है, एक यादव बाहुल्य सीट होने की वजह से भंवर जितेंद्र सिंह को लगा कि उन्हें इस उपचुनाव में मुश्किल हो सकती है तो उन्होंने 71 वर्षीय करण सिंह यादव का नाम आगे कर दिया और खुद पीछे हो गए। 

तोगडिय़ा का मंगल दोष 
मीडिया के समक्ष हैरान-परेशान व खस्ताहाल दिख रहे विहिप नेता प्रवीण तोगडिय़ा पिछले दो-अढ़ाई वर्षों से लगातार अपने मंगल दोष निवारण के उपायों में जुटे दिखे। दिल्ली के वसंत विहार इलाके के लोगों ने पिछले दो-अढ़ाई वर्षों से लगातार तोगडिय़ा को सुबह साढ़े पांच बजे नियम से हर मंगलवार व शनिवार मलाई मंदिर में उन्हें काॢतकेय जी के दर्शन को जाते देखा है। पहले वे सीढिय़ां चढ़ कर मुख्य मंदिर में कार्तिकेय जी के दर्शन करते और उसके बाद सीढिय़ां उतरकर नवग्रह की 9 बार नियम से परिक्रमा करते थे। तोगडिय़ा जब भी मंदिर आते थे तो उनके पास सुरक्षा का पूरा तामझाम होता था, पर दिसम्बर के आखिरी सप्ताह से तोगडिय़ा अचानक से राडार से गायब हो गए। सबसे पहले मलाई मंदिर पहुंचने वाले तोगडिय़ा की लगातार अनुपस्थिति कई सवालों को जन्म दे रही थी। इसके बाद जो कुछ हुआ उससे देश वाकिफ है और कहा यह जा रहा है कि तोगडिय़ा व संजय जोशी जैसे जिन लोगों ने इस गुजरात चुनाव में भाजपा का अहित किया है, उन्हें सबक सिखाने की पूरी तैयारी है। 

तोगडिय़ा की विहिप से छुट्टी?
सूत्र बताते हैं कि पिछले पखवाड़े विहिप कार्यकारिणी की एक अहम बैठक आहूत थी, जिसमें संघ के पर्यवेक्षक के तौर पर संघ के नम्बर दो भैय्याजी जोशी भी मौजूद थे। सूत्र बताते हैं कि इस बैठक में तय हुआ कि अब जरूरी हो गया है कि विहिप को एक नया चेहरा-मोहरा दिया जाए, चुनांचे विहिप के अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष राघव रेड्डी और इसके ओवरसीज मामलों के कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण तोगडिय़ा जो लम्बे समय से संगठन में कुंडली मारे बैठे हैं, उनकी जगह नए लोगों को संगठन में लाया जाए। कहते हैं कि इस प्रस्ताव का तोगडिय़ा की ओर से तीव्र विरोध सामने आया, तोगडिय़ा का कहना था कि ऐसे मनमाने तरीके से किसी को हटाया नहीं जा सकता, अगर ऐसा है तो फिर संगठन के चुनाव करवाने चाहिएं। कहते हैं कि इस बात का संघ ने बहुत बुरा माना और जब इन दिनों इलाहाबाद में विश्व हिन्दू परिषद का संत सम्मेलन आहूत है, उसमें विहिप के वरिष्ठ सदस्य स्वामी चिन्मयानंद की ओर से पत्रकारों को यह संकेत मिल गए हैं कि प्रवीण तोगडिय़ा समेत कुछ अन्य नेताओं की विहिप से छुट्टी कर दी गई है। मुमकिन है कि आने वाले दिनों में आपको विहिप 2 खेमों में बंटा हुआ दिखाई दे। 

शीला की आत्मकथा का सिला
इस 27 जनवरी को जयपुर के लिटरेरी फैस्टीवल में दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की आत्मकथा सिटीजन दिल्ली: माई टाइम, माई लाइफ रिलीज होने जा रही है। इस पुस्तक को ब्लूम्सबेरी ने प्रकाशित किया है। अभी इस आत्मकथा का विमोचन नहीं हुआ है और अभी से इस पुस्तक को लेकर गांधी परिवार की घिग्गी बंध गई है। सूत्र बताते हैं कि इस आत्मकथा में शीला दीक्षित ने कई बड़े रहस्यों से पर्दा उठाया है, खासकर कॉमनवैल्थ घोटाला को लेकर भी बड़े विस्तार से बताया है और जानने वाले जानते हैं कि कॉमनवैल्थ घोटाले के तार कथित तौर पर रॉबर्ट वाड्रा यानी गांधी परिवार से जुड़े बताए जाते हैं। कांग्रेस अभी से डैमेज कंट्रोल के प्रयासों में जुट गई है। पार्टी के कम्युनिकेशन विभाग के प्रमुख रणदीप सुर्जेवाला ने दिल्ली के कई सीनियर कांग्रेसी नेताओं को अपने घर भोजन पर बुलाया और इस पुस्तक के रहस्यों से पर्दा उठने के बाद की स्थिति को हैंडल करने के सुझाव मांगे। एक सुझाव तो यह भी आया कि श्रीमती दीक्षित से फिलहाल पुस्तक का विमोचन रोकने को कहा जाए, पर इतना तो सब जानते हैं कि अब पानी सिर से ऊपर निकल चुका है। 

...और अंत में
71 वर्षीय रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी में बगावत के सुर सुनाई देने लगे हैं, पार्टी के एक तबके का आरोप है कि लोक जनशक्ति पासवान परिवार पार्टी बनकर रह गई है। पासवान केंद्र में मंत्री हैं उनके छोटे भाई पशुपति कुमार पारस बिहार की नीतीश सरकार में मंत्री हैं। रामविलास के पुत्र चिराग पासवान बिहार के जमुई से पार्टी सांसद हैं और अब रामविलास ने अपने एक और भाई रामचंद्र पासवान जो लोजपा के सांसद भी हैं, उनके पुत्र पिं्रस राज को लोजपा की छात्र इकाई का प्रैजीडैंट बना दिया है। इससे पूर्व पिं्रस राज 2015 में बिहार विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं, जहां उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था।-त्रिदीब रमण              

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