कुबेर देवी पार्वती पर हुए मोहित, गजानन ने रोका पापों का नग्र नृत्य

Edited By Punjab Kesari,Updated: 06 Dec, 2017 02:05 PM

religious legend of ganpati maharaj

​​​​​​​गजानन: स विज्ञेय: सांख्येभ्य: सिद्धिदायक:। लोभासुरप्रहर्ता वै आखुगश्च प्रर्वीतत:।। भगवान श्री गणेश का गजानन नामक अवतार सांख्य ब्रह्म का धारक है। उसको सांख्ययियोगियों के लिए सिद्धिदायक जानना चाहिए। उसे लोभासुर का संहारक तथा मूषक-वाहन पर चलने...

गजानन: स विज्ञेय: सांख्येभ्य: सिद्धिदायक:। लोभासुरप्रहर्ता वै आखुगश्च प्रर्वीतत:।।


भगवान श्री गणेश का गजानन नामक अवतार सांख्य ब्रह्म का धारक है। उसको सांख्ययियोगियों के लिए सिद्धिदायक जानना चाहिए। उसे लोभासुर का संहारक तथा मूषक-वाहन पर चलने वाला कहा गया है।


एक बार देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर कैलाश पहुंचे। वहां उन्होंने भगवान शिव-पार्वती का दर्शन किया। कुबेर भगवती उमा के अनुपम सौंदर्य को मुग्ध दृष्टि से एकटक निहारने लगे। भगवती पार्वती उन्हें अपनी ओर एकटक निहारते देखकर अत्यंत क्रुद्ध हो गईं। भगवती की कोप दृष्टि से कुबेर अत्यंत भयभीत हो गए। उसी समय भयभीत कुबेर से लोभासुर उत्पन्न हुआ। वह अत्यंत प्रतापी तथा बलवान था।


लोभासुर दैत्यगुरु शुक्राचार्य के पास गया। उसने शुक्राचार्य के चरणों में प्रणाम कर उनसे शिष्य बनाने का निवेदन किया। आचार्य ने उसे पञ्चाक्षरी मंत्र  (ॐ नम: शिवाय) की दीक्षा देकर तपस्या करने के लिए वन में भेज दिया।


निर्जन वन में जाकर उस प्रबल असुर ने स्नान किया। फिर भस्म धारण कर वह भगवान शिव का ध्यान करते हुए पंचाक्षरी मंत्र का जाप करने लगा। वह अन्न-जल का त्याग कर भगवान शंकर की प्रसन्नता के लिए घोर तप करने लगा। उसने दिव्य सहस्र वर्ष तक अखंड तप किया। उसकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए।


लोभासुर देवाधिदेव भगवान शिव के चरणों में प्रणाम कर उनकी स्तुति करने लगा। औघड़दानी भगवान शंकर ने वर देकर उसे तीनों लोकों में निर्भय कर दिया।


भगवान शिव के अमोघ वर से निर्भय लोभासुर ने दैत्यों की विशाल सेना एकत्र की। उन असुरों के सहयोग से लोभासुर ने पहले पृथ्वी के समस्त राजाओं को जीत लिया। फिर उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। इंद्र को पराजित कर उसने अमरावती पर अधिकार कर लिया। पराजित होकर इंद्र भगवान विष्णु के पास गए तथा उनसे अपनी व्यथा सुनाई। भगवान विष्णु असुरों का संहार करने के लिए अपने गरुड़ वाहन पर चढ़कर आए। भयानक संग्राम हुआ। भगवान शंकर के वर से अजेय लोभासुर के सामने उनको भी पराजय का मुंह देखना पड़ा।


विष्णु तथा अन्य देवताओं के रक्षक महादेव हैं- यह सोच कर लोभासुर ने अपना दूत शिव के पास भेजा। दूत ने उनसे कहा, ‘‘आप परम पराक्रमी लोभासुर से युद्ध कीजिए या पराजय स्वीकार कर कैलाश को खाली कर दीजिए। भगवान शंकर ने अपने द्वारा दिए वरदान को स्मरण कर कैलाश छोड़ दिया। लोभासुर के आनंद की सीमा न रही। उसके राज्य में समस्त धर्म-कर्म समाप्त हो गए, पापों का नग्र नृत्य होने लगा। ब्राह्मण और ऋषि-मुनि यातना सहने लगे।’’


रैभ्य मुनि के कहने पर देवताओं ने गणेश उपासना की। प्रसन्न होकर गजानन ने लोभासुर के अत्याचार से देवताओं को मुक्ति दिलाने का वचन दिया।


गजानन ने भगवान शिव को लोभासुर के समीप भेजा। वहां शिव ने लोभासुर से साफ शब्दों में गजानन का संदेश सुनाया, ‘‘तुम गजानन की शरण-ग्रहण कर शांतिपूर्ण जीवन बिताओ अन्यथा युद्ध के लिए तैयार हो जाओ।’’ 


उसके गुरु शुक्राचार्य ने भी भगवान गजानन की महिमा बताकर गजानन की शरण लेना कल्याणकारी बतलाया। लोभासुर ने गणेश तत्व को समझ लिया। फिर तो वह महाप्रभु के चरणों की वंदना करने लगा। शरणागत वत्सल गजानन ने उसे क्षमा कर पाताल भेज दिया। देवता और मुनि सुखी होकर गजानन का गुणगान करने लगे।

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