Edited By Punjab Kesari,Updated: 25 Nov, 2017 12:20 PM
जनहित याचिकाओं (पीआईएल)के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि इस व्यवस्था पर अब पुनर्विचार का समय आ गया है ताकि लोगों की भलाई के नाम पर शुरू हुई चीज का पब्लिसिटी और राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल ना हो सके। 2015 में छत्तीसगढ़ के रायपुर...
नेशनल डेस्क: जनहित याचिकाओं (पीआईएल)के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि इस व्यवस्था पर अब पुनर्विचार का समय आ गया है ताकि लोगों की भलाई के नाम पर शुरू हुई चीज का पब्लिसिटी और राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल ना हो सके। 2015 में छत्तीसगढ़ के रायपुर में पीएम मोदी का मंच गिरने के मामले में एनआईए और सीबीआई जांच की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एके सीकरी और अशोक भूषण की बेंच ने यह बात कही।
दरअसल 2015 में छत्तीसगढ़ के रायपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक जनसभा होनी थी, उसके लिए जो स्टेज तैयार किया गया था वह गिर गया था। छत्तीसगढ़ समाज पार्टी ने इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कहा कि बड़े खर्च के साथ पीएम मोदी के मंच को जिस तरह से तैयार किया गया, उसकी गुणवत्ता बेहद खराब थी। राज्य सरकार के अधिकारियों की ओर से इसमें भ्रष्टाचार और अवैध तरीके अपनाए गए। यह पीएम की सुरक्षा का मसला था और इस मामले की जांच का आदेश दिया जाना चाहिए।
SC ने पार्टी को लगाया एक लाख रुपए का जुर्माना
इस पर जज ने फटकार लगाते हुए पार्टी पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने राजनीतिक लाभ लेने के लिए यह याचिका दाखिल की है। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है समय आ गया है जब कोर्ट को पीआईएल के कंसेप्ट पर सोचना चाहिए। कैसे कोई राजनीतिक दल घटना के दो साल बाद याचिका दाखिल कर सकता है। राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए यह पीआईएल का गलत इस्तेमाल है। यह पहला मौका नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने किसी पीआईएल को गैरजरूरी बताते हुए सख्त रुख अपनाया है, इससे पहले भी कई दफा सुप्रीम कोर्ट ने पीआईएल के बेजा और निजी फायदे के लिए इस्तेमाल पर नाराजगी जाहिर की है।