भारतीय संस्कारों के आगे विज्ञान भी है नतमस्तक, जानें कुछ अनजाने राज

Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Nov, 2017 10:49 AM

there is a science ahead of indian rites

वैज्ञानिक परीक्षण के द्वारा प्रमाणित हो चुका है कि जन्म या गर्भ के बाल न छीले जाएं तो युवा होने पर बालक या बालिका का स्वभाव चिड़चिड़ा, अक्खड़ किस्म का हो जाता है। मुंडन क्यों? प्रत्येक बालक-बालिका के लिए जन्म मुंडन संस्कार बताया गया है। यह...

वैज्ञानिक परीक्षण के द्वारा प्रमाणित हो चुका है कि जन्म या गर्भ के बाल न छीले जाएं तो युवा होने पर बालक या बालिका का स्वभाव चिड़चिड़ा, अक्खड़ किस्म का हो जाता है।


मुंडन क्यों?
प्रत्येक बालक-बालिका के लिए जन्म मुंडन संस्कार बताया गया है। यह संस्कार प्रत्येक वर्ग के लिए अलग-अलग ढंग से बताया गया है, एक निश्चित अवधि के बाद मुंडन संस्कार आवश्यक है। जन्म के या गर्भ के बालों को छीलना ही मुंडन संस्कार कहलाता है। वैज्ञानिक परीक्षण के द्वारा प्रमाणित हो चुका है कि जन्म या गर्भ के बाल न छीले जाएं तो युवा होने पर बालक या बालिका का स्वभाव चिड़चिड़ा, अक्खड़ किस्म का हो जाता है।


कर्ण छेदन क्यों?
भारतीय समाज में बालक के दोनों कान और बालिका के कान के साथ-साथ नाक का भी छेदन प्रचलित है। एक प्रकार से यह ‘एक्यूपंक्चर’ प्रणाली है। शरीर के विभिन्न स्थानों पर छिद्र कर या सुइयां चुभोकर इलाज करने की अत्यंत अच्छी प्रणाली है। यह भी एक प्रकार की चिकित्सा है। कान के छिद्र पुरुषों की काम वासना का उद्दीपन करते हैं।


नारी के भी कान के छिद्र मन का उद्दीपन करते हैं और उसके यौवन का विकास करते हैं। नारी में स्थित काम-वासना का उबाल रोकने के लिए नाक में छिद्र आवश्यक है। नासिका के छोर पर किया गया छिद्र वासना को नियंत्रित करता है।


यज्ञोपवीत क्यों?
आज यज्ञोपवीत का महत्व लगभग समाप्त हो गया है। लोगों ने उसको पहनना ही छोड़ दिया है। भारतीय समाज में लड़कों का यज्ञोपवीत संस्कार होता है। यज्ञोपवीत को कान पर लपेटने में कान सिकुड़ जाता है और नसों पर हल्का सा दबाव पड़ता है। इस दबाव के कारण मल-मूत्र सरलता से निकल जाता है।


उसका कुछ भी अंश बाकी नहीं रहता। मल त्याग के उपरांत कुछ बूंदें रुक जाती हैं पर यज्ञोपवीत के दबाव के कारण वह रुकता नहीं है। कान की सूक्ष्म नसों का संबंध शरीर के सभी अवयवों से है। इस प्रकार यज्ञोपवीत का यह प्रयोग पूर्णत: वैज्ञानिक है।


गोबर का क्या महत्व है?
हमारे संस्कारों में गाय का बड़ा महत्व है। उसका मल-गोबर हमारे संस्कारों में घर-आंगन लीपने के काम में बताया गया है। विज्ञान मानता है कि ब्रह्मांड में अहर्निश उल्कापात हो रहा है। रेडियोधर्मी धूल प्रतिदिन टनों की मात्रा में गिर रही है और बड़ी हानिकारक है। गोबर के परीक्षण से पता चला है कि उसमें रेडियोधर्मी धूल के अवगुणों को सोखने की अद्भुत क्षमता है। इस कारण गोबर से लिपे-पुते घरों में निवास करने वाले प्राणी निरोग रहते हैं।

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