Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Nov, 2017 10:03 AM
एक बार खलीफा हारून-अल-रशीद बगदाद शहर का मुआयना करने निकले।
एक बार खलीफा हारून-अल-रशीद बगदाद शहर का मुआयना करने निकले। रास्ते में उन्हें एक आलीशान इमारत दिखाई दी, जिस पर मदरसा अब्बासिया की तख्ती लगी हुई थी। बादशाह ने मंत्री से पूछा, ‘‘हमारे शहजादे अमीन और मामून इसी मदरसे में तालीम पाते हैं न?’’ मंत्री ने कहा, ‘‘जी हां।’’
खलीफा घोड़े से उतरे और मदरसे में प्रवेश किया। तब उन्हें सफेद दाढ़ीवाला एक बुजुर्ग हाथ-मुंह धोता दिखाई दिया। वह उस मदरसे का उस्ताद था। हाथ-मुंह धोने के बाद उसने बादशाह को सलाम किया। सलामी का जवाब देकर खलीफा बोले, ‘‘हम आपके मदरसे का मुआयना करने आए थे लेकिन हमें यह देखकर बड़ा अफसोस हुआ कि यहां पूरी तालीम नहीं दी जाती।’’
उस्ताद डरते हुए बोला, ‘‘गुस्ताखी माफ हो हुजूर, मुझसे क्या गलती हो गई?’’
खलीफा ने कहा, ‘‘जब आप मुंह-हाथ धो रहे थे, तब हमारे शहजादे चुपचाप खड़े थे। दरअसल उस्ताद की जगह बहुत ऊंची होती है और उसकी खिदमत करना हर शागिर्द का फर्ज है लेकिन हम देखते हैं कि शहजादे चुपचाप खड़े थे। उनको चाहिए था कि वे आपको पानी लाकर दें और आपके पैरों पर डालें। मालूम होता है आपने उनको यह शिक्षा नहीं दी है?’’
यह सुनकर उस्ताद हैरान हो गए और शहजादे अमीन और मामून शर्म से पानी-पानी हो गए।