हर विषय पर उपदेश क्यों देते हैं जनरल रावत

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Jan, 2018 04:58 AM

why do you preach on every subject general rawat

प्राचीन सलीके और संस्कारों का अनुपालन करने का आडम्बर तक भी जिस तरह उद्दंडता और घटिया आचरण के सार्वजनिक प्रदर्शन के आगे परास्त हो रहा है ऐसी स्थिति में यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि इस देश का क्या बनेगा। लम्बे जमाने से चली आ रही मर्यादाओं और सद्गुणों...

प्राचीन सलीके और संस्कारों का अनुपालन करने का आडम्बर तक भी जिस तरह उद्दंडता और घटिया आचरण के सार्वजनिक प्रदर्शन के आगे परास्त हो रहा है ऐसी स्थिति में यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि इस देश का क्या बनेगा। लम्बे जमाने से चली आ रही मर्यादाओं और सद्गुणों की कोई परवाह नहीं करता। 

राजनीतिक अखाड़े का घटियापन स्पष्ट रूप में सरकारी और गैर सरकारी गतिविधियों के अन्य क्षेत्रों को भी प्रदूषित कर रहा है। यहां तक कि उच्च संवैधानिक पदों पर सुशोभित लोगों ने भी वाहवाही बटोरने के लिए संयम एवं मर्यादा को ताक पर रख दिया है। यहां तक कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के 4 न्यायाधीशों ने संवाददाता सम्मेलन बुलाकर सार्वजनिक रूप में अपना गुबार निकाला। कायम-मुकाम सेना प्रमुख भी कौन-सा पीछे रह गए हैं? वह तो लगभग हर रोज सार्वजनिक मंचों से दुनिया भर के विषयों पर अपना ज्ञान बघार रहे हैं। जब कुछ जुनूनी तत्व सत्तासीनों के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों का दावा करते हुए बकवास किस्म की बयानबाजी करते हैं तो सत्तारूढ़ राजनीतिज्ञों द्वारा उन्हें  न सुनने या न देखने की बहानेबाजी की जाती है। 

हालांकि ऐसे जुनूनी तत्वों द्वारा पार्टी के वफादारों की संख्या में भी कोई बढ़ौतरी नहीं होती बल्कि आलोचकों को इस पर प्रहार करने के लिए मसाला मिल जाता है। लेकिन जब सेना प्रमुख ही बयानबाजी की बीमारी से खतरनाक हद तक पीड़ित हों तो अधिकारियों के लिए बिल्कुल ही अलग स्थिति पैदा हो जाती है। वर्दीधारी बलों के जवान किसी भी पद पर क्यों न हों, उनसे सार्वजनिक बयानबाजी की उम्मीद नहीं की जाती लेकिन भारतीय सेना के इतिहास के सबसे अधिक बातूनी जनरल बिपिन रावत लगभग हर रोज बिना नागा किसी न किसी विषय पर उपदेश देते दिखाई देते हैं, हालांकि वह जानते हैं कि उनका रैंक और वर्दी उन्हें सार्वजनिक जीवन में मुंह पूरी तरह बंद रखने के लिए बाध्य करते हैं। यदि उन्होंने सार्वजनिक रूप पर बोलना भी है तो बहुत कम मौकों पर ऐसा होना चाहिए और इसके लिए स्पष्ट रूप में कोई कारण भी होना चाहिए। 

सेना प्रमुख केवल अपने जवानों से बातें करता है और सरकार के साथ उसका आदान-प्रदान पर्दे के पीछे ही होता है, मीडिया के माध्यम से तो कदापि ही नहीं। यहां तक कि जनरल रावत के पाकिस्तानी और चीनी समकक्षों ने भी उनके द्वारा शुरू किए गए शाब्दिक युद्ध के बारे में सार्वजनिक रूप में अपना मुंह बंद रखा है। यह कहना तो मुश्किल है कि जनरल रावत द्वारा कोड आफ कंडक्ट का यह उल्लंघन वर्तमान सत्ता व्यवस्था के साथ उनकी घनिष्ठता के अहंकार का परिणाम है या वह किसी भी कीमत पर सुर्खियों में बने रहने का मोह नहीं त्याग सकते।  वैसे रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण या जनरल रावत के अपने ही प्रदेश से संंबंधित उत्तराखंडी भाई एन.एस.ए. अजीत डोभाल बहुत सलीके भरे ढंग से उन्हें ऐसी बयानबाजी से दूर रहने को कह सकते हैं। वैसे जनरल रावत को स्वयं अजीत डोभाल से सीखना चाहिए कि वह ऐसे पद पर आसीन हैं जहां उन्हें मीडिया से अक्सर आदान-प्रदान करना होता है, फिर भी वह मीडिया को खुद से दूर ही रखते हैं। 

सुप्रीम कोर्ट के 4 बागी जज भी शायद इस तथ्य से अवगत नहीं हैं कि जिस संस्था से वे संबद्ध हैं उसकी मर्यादाएं व उनके संवैधानिक कत्र्तव्य उन्हें किसी लक्ष्मण रेखा के दायरे में रहने का पाबंद बनाते हैं। वैसे जो लोग इन बागी जजों की पीठ थपथपा रहे हैं, वही जनरल रावत की बयानबाजी पर लाल-पीले हो रहे हैं और उन्हें संस्थागत मर्यादाओं व सैन्य परम्पराओं का अनुपालन करने का पाठ पढ़ा रहे हैं। क्या परम्पराओं, मर्यादाओं, संवैधानिक सीमाओं का उल्लंघन केवल तभी आलोचना योग्य बनता है जब ऐसा करने वाला व्यक्ति सत्ता व्यवस्था का चहेता हो और आलोचक खुद सत्ता में न हो।-वीरेन्द्र कपूर

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