ब्रज मंदिरों में चंदन यात्रा की तैयारियां आरंभ, ठाकुर जी की गर्मी ऐसे होती है दूर

Edited By ,Updated: 27 Apr, 2016 11:42 AM

akshay tritiya thakur ji

कान्हा की नगरी मथुरा में अक्षय तृतीया पर आयोजित होने वाली चंदन यात्रा के लिए ब्रज के मंदिरों में चंदन का लेप तैयार करने की होड़ लग गई है।

कान्हा की नगरी मथुरा में अक्षय तृतीया पर आयोजित होने वाली चंदन यात्रा के लिए ब्रज के मंदिरों में चंदन का लेप तैयार करने की होड़ लग गई है। इस दिन ठाकुर के चरण दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।  बांके बिहारी मंदिर के शयनभोग सेवा आचार्य अनन्त गोस्वामी ने बताया कि इस बार नौ मई को अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाएगा। बिहारी जी मंदिर, राधा बल्लभ, राधारमण, पूंछरी के लौठा का श्रीनाथ मंदिर, श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर स्थित मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर, गरूड़ गोविन्द मंदिर समेत सभी मंदिरों में इस दिन उपयोग के लिए बहुत अधिक चंदन के लेप की आवश्यकता होती है।  

 

ठाकुर जी को गर्मी से निजात दिलाने के लिए इस दिन ठाकुर के सर्वांग में न केवल चंदन का लेप किया जाता है बल्कि चंदन के लेप से तैयार किए गए बगलबंदी, धोती आदि वस्त्र भी ठाकुर को इस दिन ही धारण कराए जाते हैं। कुल मिला कर कई किलो चंदन के लेप की आवश्यकता पड़ती है। चूंकि इतना लेप एक दिन में तैयार नही किया जा सकता इसलिए लेप को तैयार करके उसके तरल गोले बनाकर शीतल वातावरण में रख देते हैं तथा चंदन यात्रा के दिन इसमें जल मिलाकर इसका प्रयोग कर लेते हैं। 

 

कान्हा को गर्मी से निजात दिलाने के लिए अधिकांश मंदिरों में फूल बंगला बनना शुरू हो गया है मगर ठाकुर को गर्मी से बचाने के लिए ही चंदन यात्रा बड़े धूमधाम से आयोजित होती है। बांके बिहारी मंदिर, दानघाटी मंदिर गोवर्धन, गिर्राज मुखारबिन्द मंदिर जतीपुरा, गिर्राज मुकुट मुखारबिन्द मंदिर में फूल बंगला बनना जहां प्रारंभ हो गया है वहीं वृन्दावन के प्राचीन सप्त देवालयों में अक्षय तृतीया से फूल बंगला बनना शुरू हो जाता है। 

 

मदनमोहन मंदिर वृन्दावन के सेवायत अजय किशोर गोस्वामी ने बताया कि रासलीला के दौरान ठाकुर को तपिश लगने पर राधारानी ने उनसे शरीर में चन्दन लेपने को कहा था। इसी परंपरा के अन्तर्गत चन्दन यात्रा होती है।  बांके बिहारी मंदिर के सेवायत आचार्य प्रहलाद बल्लभ गोस्वामी के अनुसार इस दिन बांके बिहारी महाराज को रजत पायल धारण कराकर उनके श्री चरणों में सृष्टि का प्रतीक चन्दन का गोला रखा जाता है तथा सत्तू , खरबूजे, ककड़ी और शर्बत का भोग लगता है।  

 

राधादामोदर मंदिर के सेवायत आचार्य कृष्णा गोस्वामी के अनुसार ठाकुर जी के अंग में चंदन लेपन की शुरुआत श्रील जीव गोस्वामी ने की थी। राधारमण मंदिर के सेवायत आचार्य पद्मनाभ गोस्वामी गोस्वामी के अनुसार मंदिर में चंदन यात्रा की शुरूआत गोपाल भट्ट गोस्वामी ने की थी तथा वर्ष में एक बार इसी दिन ठाकुर की आरती केवल फूलों से होती है।  

 

बांके बिहारी मंदिर में चंदन यात्रा के संबंध में मंदिर के शयनभोग सेवायत आचार्य शशांक गोस्वामी ने बताया कि एक बार स्वामी हरिदास से उनके एक शिष्य ने बद्रीनाथ धाम जाने की जिद की तो उन्होंने उससे कहा कि वह एक बार बिहारी जी के चरण दर्शन कर ले बाद में वे चलेंगे।  अगली अक्षय तृतीया को जब उसने बिहारी जी महाराज के चरण दर्शन किए तो उसे कुछ भी नया नही लगा किंतु उसी रात जब वह सो गया तो उसे सपने में बद्रीनाथ के दर्शन हो गए। इसके बाद उसने स्वामी हरिदास के पैर पकड़कर क्षमा याचना की। 

 

चरण दर्शन के क्रम में छटीकरा स्थित गरुड़ गोविन्द मंदिर में चरण दर्शन का इसलिए विशेष महत्व है कि इस मंदिर के श्री विगृह में गरुड़ के ऊपर गोविन्द विराजमान हैं। इस दिन ब्रज के सभी मंदिरों में सतुआ, खरबूजा, शरबत आदि का भोग इसलिए लगता है कि लाला को किसी प्रकार की गर्मी का अहसास नहीं होना चाहिए। कई मंदिरों में इस दिन फूल बंगला बनाया जाता है। 

 

चूंकि अक्षय तृतीया पर किया गया धार्मिक कार्य अक्षय रहता है इसलिए जहां ब्रज के सभी मंदिरों में तीर्थयात्रियों का हजूम जुड़ जाता है वहीं इसी दिन गिरि गोवर्धन की सप्तकोसी परिक्रमा करने की होड़ लग जाती है। कुल मिलाकर इस दिन व्रज का कोना कोना कृष्णभक्ति से भर जाता है और राधे राधे श्याम मिला दे की प्रतिध्वनि से समूचा ब्रजमंडल गूंज उठता है।

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