डा.अम्बेदकर जयंती आज: अंधकार से प्रकाश की ओर लेकर चलने वाले मसीहा

Edited By ,Updated: 14 Apr, 2017 10:11 AM

dr ambedkar birth anniversary

भारत में दलितों-गरीबों के सामाजिक, राजनीतिक व अन्य क्षेत्रों में हो रहे उत्थान संबंधी संघर्ष का सारा श्रेय दलितों के मसीहा युगपुरुष भारत रत्न डा. भीमराव अम्बेदकर को जाता है। उन्होंने करोड़ों दलितों को उनके मौलिक

भारत में दलितों-गरीबों के सामाजिक, राजनीतिक व अन्य क्षेत्रों में हो रहे उत्थान संबंधी संघर्ष का सारा श्रेय दलितों के मसीहा युगपुरुष भारत रत्न डा. भीमराव अम्बेदकर को जाता है। उन्होंने करोड़ों दलितों को उनके मौलिक अधिकार दिला कर उन्हें संघर्ष की राह पर चलने को तैयार ही नहीं किया बल्कि उनमें ऊर्जा का संचार भी किया। उन्हीं के जीवन दर्शन को आधार बनाकर समस्त दलितों का उत्थान संभव है।  जिस तरह गरीबी की हालत में उन्होंने शिक्षा ग्रहण की वह अपने आप में मिसाल है। स्कूल काल में उनसे हो रहा व्यवहार उनके मनोबल को मजबूत करता गया, तभी तो रात तक सड़कों पर लगे खंभों की रोशनी में पढ़़ कर उच्च शिक्षा प्राप्त की और अपना समस्त जीवन दलित समाज के उत्थान हेतु समर्पित कर दिया। 
 
उनका जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश के रत्नागिरी जिले के महू में हुआ। उनके पिता का नाम रामजी राव तथा माता का नाम भीमाबाई था। पिता सेना में सूबेदार थे। उन्होंने अत्यंत प्रतिकूल हालात में शिक्षा प्राप्त की। 1907 में मैट्रिक पास करने पर बम्बई के दलितों ने एक सभा में उन्हें सम्मानित किया। 17 वर्ष की आयु में 9 वर्षीय रामा बाई से बिल्कुल सादा ढंग से उनकी शादी हुई। उन्हें दहेज में सिर्फ एक कटोरी मिली जिसे उन्होंने बतौर निशानी जीवन भर संभाल कर रखा।  
 
बाबा साहब ने 1912 में बी.ए. पास की। 1913 में उच्च शिक्षा प्राप्त करने अमेरिका गए। 1915 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी से एम.ए. की डिग्री प्राप्त की। 1919 में दलितों की आवाज बुलंद करने हेतु ‘मूकनायक’ अर्थात ‘गूंगों का नेता’ पत्रिका शुरू की। 1920 में वह शिक्षा ग्रहण करने लंदन (इंगलैंड) चले गए। 1923 में लंदन से बैरिस्टर और डाक्टर ऑफ फिलास्फी की डिग्री प्राप्त करके डॉ. भीम राव अम्बेदकर बन कर लौटे। 1923 में उन्होंने वकालत शुरू की। 20 जुलाई, 1924 को उन्होंने ‘बहिसकृत हितकारनी सभा’ह्य कायम की व 3 अप्रैल, 1927 को मराठी में ‘बहिसकृत भारत’ पत्रिका शुरू की। 1930 में लंदन की गोलमेज कांफ्रैंस में जिस ढंग से बाबा साहब ने दलितों की समस्याओं और हालात को उजागर किया उससे वह पूरे विश्व में दलितों के मसीहा के रूप में प्रकट हुए। 1932 के पूना पैक्ट के रूप में दलितों के मौलिक अधिकार प्राप्त करने में सफलता हासिल की।  उनका पूर्ण जीवन संघर्षमयी रहा। उनकी जिंदगी का एक-एक पल करोड़ों दलितों को गुलामी से निजात दिलाने में लगा रहा। 
 
उनके जीवन दर्शन का मुख्य संदेश ‘पढ़ो-जुड़ो और संघर्ष करो’ हम सबको उन्नति का मार्ग दर्शाता है। दलितों में जिसने भी उपरोक्त वाक्य को अपनाया उसी ने मौलिक अधिकारों को प्राप्त कर स्वच्छ जीवन का आनंद प्राप्त किया। बाबा साहब का कथन था कि जब तक सामाजिक व्यवस्था में सुधार नहीं होता तब तक हमारे राजनीतिक प्रयास असफल ही रहेंगे। बाबा साहब ने 30 जनवरी, 1944 को कानपुर में अपने भाषण में कहा था कि अपने अधिकारों के लिए सदैव संघर्ष करने वालों के पीछे इज्जत छाया की तरह लगी रहती है। उनके ऐसे ही अनेक भाषणों ने दलितों में परिवर्तन की लहर पैदा कर दी। आज भी दलितों में बाबा साहब के क्रांतिकारी भाषणों को गहराई से समझने की अति आवश्यकता है अन्यथा दलित समाज को अंधकार से प्रकाश की ओर लेकर चलने वाले सभी प्रयास असफल होकर रह जाएंगे। 

Related Story

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!