आज सूरज ढलने के बाद ये 4 काम करने से मिलेगा अक्षय पुण्यों का लाभ

Edited By ,Updated: 25 Nov, 2015 11:15 AM

kartik purnima

प्रत्येक मास की अपनी-अपनी विशिष्टता है जिसमें अलग-अलग देवी-देवताओं की आराधना निर्धारित की जाती है। धर्मशास्त्रों में कार्तिक मास को धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष देने वाला माना गया है।

प्रत्येक मास की अपनी-अपनी विशिष्टता है जिसमें अलग-अलग देवी-देवताओं की आराधना निर्धारित की जाती है। धर्मशास्त्रों में कार्तिक मास को धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष देने वाला माना गया है। तुला राशि पर सूर्यनारायण के आते ही कार्तिक मास प्रारंभ हो जाता है। इस मास में दीपदान, तुलसी पूजा, भूमि पर सोना, ब्रह्मचर्य का पालन करना और कुछ चीजों का निषेध करने से जीवन में वास्तविक प्रगति पाई जा सकती है। 
 
आज कार्तिक मास की पूर्णिमा है। यदि आप सारा माह कार्तिक मास के नियमों का पालन नहीं कर पाए तो आज सूरज ढलने के बाद ये 4 काम करने से अक्षय पुण्यों का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। जो मनुष्य श्री राधाकृष्ण के नाम मंत्र का स्मरण एवं जाप करता है वह धर्मार्थी बनता है। अर्थार्थी को धन की प्राप्ति होती है, मोक्षार्थी को मोक्ष मिलता है।  इनके भक्तों के घर में सदा ही लक्ष्मी जी का वास रहता है।  
 
1 दीपदान- शाम को शुद्ध घी, तिलों के तेल अथवा सरसों के तेल से दीपक जलाएं। कहते हैं ऐसा करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। मंदिरों में और नदी के किनारे दीपदान करने से लक्ष्मी कृपा प्राप्त होती है। इस माह में दीपदान करने से विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में छाया अंधकार दूर होता है। व्यक्ति के भाग्य में वृद्धि होती है।
 
2 तुलसी पूजा- तुलसी पूजन करने तथा सेवन करने का विशेष महत्व बताया गया है। जो व्यक्ति यह चाहता है कि उसके घर में सदैव शुभ कर्म हो, सदैव सुख शान्ति का निवास रहे उसे तुलसी की आराधना अवश्य करनी चाहिए। जिस घर में शुभ कर्म होते हैं वहां तुलसी हरी-भरी रहती है एवं जहां अशुभ कर्म होते हैं वहां तुलसी कभी भी हरी-भरी नहीं रहती।
 
3 भूमि पर सोना- आज रात बिस्तर का त्याग करके जमीन पर सोएं। भूमि पर सोने से मनुष्य के जीवन से विलासिता दूर होती है और सात्विकता के भाव आते हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो स्वास्थ्य लाभ के साथ- साथ शारीरिक व मानसिक विकार भी खत्म होते हैं। 

4 ब्रह्मचर्य- कार्तिक पूर्णिमा की रात ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए काम-विकार न करें। ब्रह्म में लीन होना ब्रह्मचर्य है। जो व्यक्ति आत्मा में रमन करता है वही ब्रह्मचर्य का पालन कर सकता है। 

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