स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा लाला लाजपत राय को उनकी जन्म जयंती पर नमन

Edited By ,Updated: 28 Jan, 2016 08:15 AM

lala lajpat rai

मेरा मजहब हकपरस्ती है, मेरी मिल्लत कौम परस्ती है, मेरी इबादत खलक परस्ती है, मेरा मंदिर मेरा दिल है और मेरी उमंगें सदा जवान हैं। पूर्ववर्ती के साथ परवर्ती और कल के साथ आज को ठीक-ठाक मिलाने वाला आधुनिक राजनीति क्षेत्र में लाला जी के अतिरिक्त और कोई...

मेरा मजहब हकपरस्ती है, मेरी मिल्लत कौम परस्ती है, मेरी इबादत खलक परस्ती है, मेरा मंदिर मेरा दिल है और मेरी उमंगें सदा जवान हैं। पूर्ववर्ती के साथ परवर्ती और कल के साथ आज को ठीक-ठाक मिलाने वाला आधुनिक राजनीति क्षेत्र में लाला जी के अतिरिक्त और कोई नहीं हुआ। इसी के कारण उनमें एक ऐसा नैतिक प्रवाह उमड़ता था जो बड़े-बड़े समूहों को हिला देता था। लाला जी एक राजनीतिज्ञ ही नहीं, अपितु समाज सुधारक भी थे। जहां कभी दुख और दरिद्रता दिखती आप वहीं दौड़ पड़ते थे। किसी भी कार्य में वह पूरी संलग्रता के साथ जुटते थे। 

लाला जी का जन्म 28 जनवरी 1865 को हुआ। बचपन से ही आप बड़ी प्रखर बुद्धि के थे। बाल्यावस्था में ही आपने समस्त धार्मिक एवं ऐतिहासिक पुस्तकों का अध्ययन करते अपने विचारों को परिष्कृत करना आरंभ कर दिया था। वकालत की परीक्षा पास करके आप प्लीडर बन कर हिसार गए और वहां प्रैक्टिस करने लगे। अपनी असाधारण प्रतिभा के कारण आप थोड़े ही समय में विख्यात हो गए। लाला जी उस समय राजनीतिक, सामाजिक एवं शिक्षा के क्षेत्र में एक साथ ही बड़ी संलग्रता के साथ काम करते रहे। 1892 में लाला जी लाहौर आकर वकालत करने लगे। 1886 में डी.ए.वी. कॉलेज की स्थापना हो चुकी थी। आप उसके अध्यापक तथा अवैतनिक मंत्री बनाए गए। 1901 में आपने पंजाब की शिक्षा समिति की नींव डाली और जगराओं में अपने पिता के नाम पर राधाकृष्ण हाई स्कूल तथा पंजाब में अनेक स्थानों पर प्राइमरी स्कूल खुलवाए।

1896 में उत्तरी भारत तथा 1899 में राजपूताना में दुॢभक्ष पड़ा। लाला जी अकाल पीड़ितों की सेवा में जी जान से जुट गए। 1907-08 में बिहार तथा युक्त प्रांत में दुॢभक्ष पड़ा। इस समय भी आपने पीड़ितों की सेवा का बहुत बड़ा कार्य किया। 1905 में भी आपने वालंटियर कोर बनकर कांगड़ा के भूकंप पीड़ितों की सहायता की।

विद्यार्थी अवस्था से ही लाला जी के विचारों का झुकाव कांग्रेस की ओर था। 1888 में आप प्रथम बार इलाहाबाद-कांग्रेस में सम्मिलित हुए। वहां आपने कौंसिल सुधार के प्रस्ताव पर भाषण दिया जिसकी बड़ी प्रशंसा हुई। आपने कांग्रेस का ध्यान शिक्षा और देशी उद्योग धंधों की ओर आकर्षित किया जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस की ओर से औद्योगिक प्रदर्शनियां होने लगीं, इसके पश्चात आप प्राय: कांग्रेस के सभी अधिवेशनों में शामिल होते रहे और पंजाब के प्रमुख कांग्रेसी प्रतिनिधि माने जाने लगे। 1906 में लाला जी कांग्रेस-डैपुटेशन के सदस्य बनकर इंगलैंड गए। इसके पश्चात 1911 में भेजे गए डैपुटेशन में भी आप इंगलैंड गए।  

1912-13 में गांधी जी ने जब दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह आरंभ किया तो उसके लिए लाला जी ने पंजाब से चालीस हजार रुपए इकट्ठा किए थे। 1920 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन पर विचार करने के लिए कलकत्ता में कांग्रेस का एक विशेष अधिवेशन हुआ, जिसके सभापति लाला जी बनाए गए।  1926-27 में जब देश में शासन सुधार की मांग का आंदोलन हुआ तो ब्रिटिश सरकार ने भारतवासियों को बुलावा देने के लिए सर जान साइमन की अध्यक्षता में एक कमीशन की नियुक्ति की, यह साइमन कमीशन कहा गया। इसे यह काम सौंपा गया कि वह भारत की स्थिति का अध्ययन करे और शासन सुधार के संबंध में अपनी राय पेश करे। 1928 के आरंभ में उक्त कमीशन ने भारत का दौरा किया, चूंकि उक्त कमीशन में एक भी भारतीय नहीं था इसलिए देश ने एक स्वर में उक्त कमीशन का विरोध  किया। 30 अक्तूबर,1928 को साइमन कमीशन लाहौर पहुंचा। लाहौर में इस दिन धारा 144 लगा दी गई थी। जगह-जगह पर पुलिस का पहरा था। कांग्रेस और जनता ने साइमन कमीशन का बहिष्कार किया। अत: लाहौर में भी 60 वर्षीय लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन कमीशन के विरोध में उसके बहिष्कार का जुलूस निकाला गया। पुलिस ने जुलूस पर लाठियां बरसानी शुरू कर दीं, लाला जी की छाती पर भी लाठियां पडऩे लगीं, किंतु वह अडिग छाती फैलाए सब कुछ सहन करते रहे। उसी समय रायजादा हंसराज ने आगे बढ़कर लाठियों का प्रहार अपने ऊपर लेना शुरू कर दिया, फिर भी लाला जी को बहुत चोट आई।

उसी दिन शाम को लाला जी ने एक सभा में भाषण देते हुए कहा था कि मेरे ऊपर किया गया लाठी का एक-एक प्रहार ब्रिटिश साम्राज्य के कफन की कील बनेगा। इन्हीं घातक चोटों के चलते 17 नवम्बर, 1928 को प्रात: 7 बजे लाला जी परलोक सिधार गए। समस्त देश में इस घटना से शोक तथा विक्षोभ की लहर दौड़ गई। उनके महा प्रस्थान की खबर ने समस्त देश में हलचल मचा दी, लाहौर में स्कूल, कचहरी, हाईकोर्ट, सरकारी कार्यालय सभी बंद हो गए। गवर्मैंट कॉलेज का सरकारी झंडा झुका दिया गया। उनकी शव यात्रा में डेढ़ लाख लोग शामिल थे। लाला लाजपत राय न केवल पंजाब अपितु सम्पूर्ण भारतवर्ष की एक महान शक्ति थे। उनकी मृत्यु के पश्चात लाहौर में उनकी स्मृति में एक स्मारक बनाया गया।

-वीरेन्द्र सिंह परिहार 

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