जमीन-जायदाद के मालिक बनना चाहते हैं तो करें मां शैलपुत्री का पूजन

Edited By ,Updated: 02 Oct, 2016 10:02 AM

maa shailaputree

या देवी सर्वभू‍तेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। आधार: पौराणिक कथाओं के अनुसार नवदुर्गा के पहले स्वरूप में मां शैलपुत्री का पूजन किया जाता है, वास्तविकता में

या देवी सर्वभू‍तेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।


आधार: पौराणिक कथाओं के अनुसार नवदुर्गा के पहले स्वरूप में मां शैलपुत्री का पूजन किया जाता है, वास्तविकता में मां शैलपुत्री मूलरूप से महादेव शंकर कि अर्धांगिनी पार्वती जी का ही एक रूप हैं, मां पार्वती जी पूर्वजन्म में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थीं तथा उस जन्म में भी वे भगवान शंकर की ही पत्नी थीं। सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में अपने पति का अपमान न सह पाने के कारण स्वयं को योगाग्नि में भस्म कर दिया था तथा हिमनरेश हिमावन के घर पार्वती बन कर अवतरित हुईं । पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। 


स्वरुप: मां शैलपुत्री का वर्ण चंद्र के समान है, इन्होंने अपने मस्तक पर स्वर्ण मुकुट धारण किया हुआ है । इनके मस्तक पर अर्धचंद्र अपनी शोभा बढ़ा रहा है।  ये वृष अर्थात बैल पर सवार हैं अतः इन्हें देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता हैं। इन्होने दाहिने हाथ में त्रिशूल धारण किया हुआ है तथा इनके बाएं हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। 


साधना: मां शैलपुत्री कि साधना मनोवांछित लाभ के लिए कि जाती है । इनकी साधना का सर्वश्रेष्ठ समय है चंद्रोदय अर्थात सायं 5 बजे से 7 बजे के बीच, इनकी पूजा श्वे़त पुष्पों से करनी चाहिए, इन्हें मावे से बने भोग लगाने चाहिए तथा श्रृंगार में इन्हें चंदन अर्पित करना अच्छा रहता है । 


इनका ध्यान इस प्रकार है “ वंदे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्। वृषारूढ़ा शूलधराम् यशस्विनीम्।। ”


योगिक दृष्टिकोण: शैलपुत्री साधना के लिए साधक अपने मन को “मूलाधार चक्र” में स्थित करते हैं, इनको साधने से “मूलाधार चक्र” जागृत होता है और यहीं से योग चक्र आरंभ होता है जिससे अनेक प्रकार की सिद्धियों कि प्राप्ति होती है।


ज्योतिष दृष्टिकोण: मां शैलपुत्री कि साधना का संबंध चंद्रमा से है। कालपुरूष सिद्धांत के अनुसार कुण्डली में चंद्रमा का संबंध चौथे भाव से होता है अतः मां शैलपुत्री कि साधना का संबंध व्यक्ति के सुख, सुविधाएं, माता, निवास स्थान, पैतृक संपत्ति, वाहन सुख, जायदाद तथा चल और अचल संपत्ति से है । जिन व्यक्तियों कि कुण्डली में चंद्रमा किसी नीच ग्रह से प्रताड़ित है अथवा चंद्रमा नीचस्थ एवं पीड़ित है। उन्हें सर्वश्रेष्ठ फल देती है मां शैलपुत्री कि साधना। मां शैलपुत्री कि साधना से मनोविकार दूर होते हैं तथा साधक कि मनोविकृति दूर होती है। जो व्यक्ति की आजीविका का संबंध रियल एस्टेट से हो अथवा जो व्यक्ति प्रोपर्टी में इन्वैस्टमैंट करते हों उन्हें सर्वश्रेष्ठ फल देती है मां शैलपुत्री कि साधना। 


वास्तु दृष्टिकोण: मां शैलपुत्री कि साधना का संबंध वास्तुपुरुष सिद्धांत के अनुसार “इंदु” से है, इनकी दिशा पश्चिमोत्तर है आर्थात वायुकोण, पंचमहाभूतों कि श्रेणी में इनका आधिपत्य जल स्रोतों पर है अतः निवास में बने वो स्थान जहां शुद्ध चलायमान पानी को एकत्रित करते है आर्थात “ओवर हेड वाटर टेंक्स”। जिस व्यक्तियों के निवास पर पानी से दीवारों में सीलन कि समस्या आ रही हो यां जिनके घरों के नल बंद करने उपरांत भी निरंतर पानी टपकता हो यां जिन व्यक्तियों कि मासिक आय तो अच्छी हो लेकन खर्चा बेकाबू होने के कारण बचत न हो उन्हें सर्वश्रेष्ठ फल देती है मां शैलपुत्री की साधना ।


उपाय: जायदाद और संपत्ति कि प्राप्ति के लिए मां शैलपुत्री पर केवड़ा मिश्रित मखाने कि खीर का भोग लगाएं


आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

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