जन्मदिवस पर विशेष: सद्गुरु जगजीत सिंह जी ने भूले-भटकों को गुरु परम्परा के साथ जोड़ा

Edited By ,Updated: 21 Nov, 2015 03:45 PM

satguru jagjit singh ji

सद्गुरु जगजीत सिंह जी का जन्म 22 नवम्बर 1920 को श्री भैणी साहिब (लुधियाना) में पिता गुरु प्रताप सिंह जी व माता भूपिंद्र के गृह में हुआ। तीक्ष्ण बुद्धि और दैवी शक्तियों के मालिक होने के कारण आपको ‘

सद्गुरु जगजीत सिंह जी का जन्म 22 नवम्बर 1920 को श्री भैणी साहिब (लुधियाना) में पिता गुरु प्रताप सिंह जी व माता भूपिंद्र के गृह में हुआ। तीक्ष्ण बुद्धि और दैवी शक्तियों के मालिक होने के कारण आपको ‘बेअंत’  के नाम से पुकारा जाता था। गुरु पिता की आज्ञा में रह कर आपने बचपन से ही संगीत विद्या व नाम-वाणी का अभ्यास  शुरू कर दिया था। लगभग 39 साल की आयु में 22 अगस्त 1959 को गुरु गद्दी का कार्य संभाला।

आपने देश-विदेश का भ्रमण कर सद्गुरु नानक देव जी के मिशन ‘नाम जपो वंड के छको, धर्म की कमाई करो’  का प्रचार किया। भूले-भटकों को गुरु परम्परा के साथ जोड़ा। श्री आदि ग्रंथ साहिब जी के लाखों पाठ संगत से करवाए। रोजाना सूर्योदय से पहले सिर में पानी डाल स्नान कर, कम से कम एक घंटे का नाम सिमरन, गुरबाणी का पाठ और प्रति घर प्रति महीना एक पाठ श्री आदि ग्रंथ साहिब जी या श्री दशम ग्रंथ साहिब जी का करने का शुभ उपदेश दिया। 
 
सिख उसूलों की इतनी दृढ़ता कि जब आपका दिल का आप्रेशन होना था तो शर्तें रखीं कि मेरे शरीर के रोम की बेअदबी न हो, अलकोहल का प्रयोग न हो, दूसरे का खून न चढ़ाया जाए और स्त्री नर्स मुझे स्पर्श न करे। आस्ट्रेलिया में डा. एस. ने ये शर्तें मानते हुए सफल आप्रेशन किया।
 
आप हमेशा नाम सिमरन और गुरबाणी कीर्तन के रंग में रंगे रहते थे। संगीत में इतने कुशल थे कि महान कलाकार विलायत खां (सितार), बिस्मिल्ला खां (शहनाई), अमजद अली (रबाब), बिरजू महाराज (कथक), राजन-साजन मिश्रा (युगलबंदी) आदि आपकी संगत पर निहाल होते थे। दिलरूबा तती साज को आप गज की बजाय उंगलियों के पोटों से बजाकर संगीत की इलाही महक बांटते थे। 2012 में आपको संगीत नाटक अकादमी की ओर से ‘टैगोर रत्न अवार्ड’ प्रदान किया गया। 
 
नामधारी पंथ शुरू से ही गोभक्त रहा है। आज भी श्री भैणी साहिब में उत्तम नस्ल और अधिक दूध देने वाली गायें मौजूद हैं। ये गायें पशु प्रदर्शनी में उत्तम स्थान प्राप्त करती हैं। गोपालक होने की वजह से आपको ‘गोपाल रत्न’  की उपाधि से सम्मानित किया गया। 
 
सद्गुरु जी फुटबाल, वालीबाल, हाकी, बैडमिंटन, खेलने के शौकीन थे। आपने हाकी टीम ‘नामधारी इलैवन’ बनाई। देश प्रदेश में इस टीम ने खूब नाम कमाया। मर्यादा का ध्यान रखते हुए इस टीम के खिलाड़ी सफेद गोल पगड़ी बांध और रेवदार सिखी कछहरा पहनकर खेलते हैं। अपना बना हुआ भोजन खाते हैं। 
 
पंजाब में श्री भैणी साहिब में आपने पहला एस्ट्रोटर्फ हाकी मैदान बनवाया। आज की भारतीय हाकी टीम का कप्तान सरदारा सिंह ‘नामधारी इलैवन टीम’ की ही देन है। बुजुर्गों की देखरेख का ध्यान रखते हुए श्री भैणी साहिब में सुंदर आश्रम बनवाया। उत्तरी भारत के लोगों की परेशानियां देखते हुए आपने लुधियाना में विश्व स्तरीय सहूलियतों वाला  ‘सतगुरु प्रताप सिंह अपोलो अस्पताल’ कायम किया। 
 
सद्गुरु जी खेतीबाड़ी के भी माहिर थे। किताबी ज्ञान के अलावा आध्यात्मिक शक्ति होने की वजह से आपने ऐसी जमीन में भी फल-पौधे पैदा कर दिए जिस जमीन के बारे साइंसदानों का विचार उलट था। बेंगलूर में आपने ‘नामधारी सीड्ज’ फार्म तैयार करवा कर संसार को उत्तम गुणों वाले बीज उपलब्ध करवाए हैं। 53 साल 3 महीने 23 दिन गुरुगद्दी पर विराजमान हो आप 13 दिसम्बर 2012 को स्वर्गवास हो गए।
 
—जोगा सिंह नामधारी 

 

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