Edited By ,Updated: 20 Nov, 2015 11:05 AM
धन ऐसी मूलभूत अवश्यकता है जिसे पाने की ललक कभी किसी की खत्म नहीं होती। व्यक्ति जितना कमाता है उससे कभी उसकी तृप्ती नहीं होती।
धन ऐसी मूलभूत अवश्यकता है जिसे पाने की ललक कभी किसी की खत्म नहीं होती। व्यक्ति जितना कमाता है उससे कभी उसकी तृप्ती नहीं होती। वो चाहता है उसका धन बढ़े और वैभव संपन्न जीवन व्यतित करे। इसके लिए महान संस्कृत कवि और नीतिकार भर्तहरि द्वारा लिखे श्लोक को हमेशा याद रखें-
दानं भोगो नाशस्तिस्त्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य।
यो न ददाति न भुङ्क्ते तस्य तृतीया गतिर्भवति ॥
अर्थात धन की गति तीव्र होती है। जो लोग धन का दो तरह से उपयोग नहीं करते उनके धन का विनाश हो जाता है।
धन की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी चंचला हैं वह कभी एक स्थान पर टिक कर नहीं रहती। जो व्यक्ति उन्हें अपने पास रोकने की भुल करता है उसके धन का नाश हो जाता है और बाद में पछताते रह जाते हैं।
धन को विनाश से बचाना है तो दो उपाय अपनाएं-
* धन का अपनी क्षमता के अनुसार दान करें, जरुरतमंदों की सहायता करें और उसे सदुपयोग में लगाएं।
* धन से अपने वैभव ऐश्वर्य का विस्तार करें। सुख-भोग से जीवन जीएं। धन को रोक कर रखने की भूल न करें।