कुशग्रहणी अमावस्या: करें शनि परिवार का पूजन, मिलेगी तन और धन के कष्टों से मुक्ति

Edited By ,Updated: 31 Aug, 2016 02:56 PM

kushgrahani amavasya

1 सितंबर बृहस्पतिवार को कुशग्रहणी अमावस्या है। यह तिथि पूर्वान्ह्व्यापिनी मानी जाती है। सनातन धर्म के बहुत सारे धार्मिक कार्यों में कुश

1 सितंबर बृहस्पतिवार को कुशग्रहणी अमावस्या है। यह तिथि पूर्वान्ह्व्यापिनी मानी जाती है। सनातन धर्म के बहुत सारे धार्मिक कार्यों में कुश का उपयोग करना अनिवार्य है।  इससे देवी-देवता प्रसन्न होते हैं और अपना आशीर्वाद बनाए रखते हैं।

श्लोक: कुशा: काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:। गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:॥ 

शास्त्रों में भाद्रपद कृष्ण अमावस्या को कुशग्रहणी या कुशोत्पाटिनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। सनातन धर्म इस दिन को अघोरा चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। शास्त्रनुसार बिना कुशा के शनिदेव व दूसरे देवों की गई पूजा निष्फल मानी जाती है। पूजा-अनुष्ठान पर इसीलिए विद्वान पंडित अनामिका उंगली में कुश की बनी पैंती अर्थात अंगूठी पहनाते हैं। पवित्रीकरण हेतु कुशा से गंगा जल मिश्रित पानी से सभी पर छिड़काव किया जाता है। इसी कारण इस दिन साल भर के लिए पूजा आदि हेतु कुशा नमक विशिष्ट घास को उखाड़ा जाता है। अघोरा चतुर्दशी के दिन तर्पण करने की मान्यता है कि इस दिन शिव के गणों भूत-प्रेत आदि सभी को स्वतंत्रता प्राप्त होती है। परिजनों को बुरी आत्माओं के प्रभाव से बचाने के लिए लोग घरों के दरवाजे व खिड़कियों पर कांटेदार झाडिय़ों को लगाते हैं यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। 

 

शास्त्रनुसार जब अमावस्या या चतुर्दशी के दिन शनिवार का योग बनता है, तो यह बहुत पवित्र योग माना गया है। शास्त्रोक्त विधि के अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष में चलने वाला पन्द्रह दिनों के पितृ पक्ष का शुभारम्भ भादों मास की अमावस्या से ही हो जाता है। कुशाग्रहणी अमावस्या के दिन तीर्थ, स्नान, जप, तप और व्रत के पुण्य से ऋण और पापों से छुटकारा मिलता है। इस दिन शनिदेव के सम्पूर्ण परिवार का पूजन करने का विधान है। इस पूजन में शनि यम, यमुना, छाया व सूर्य आदि देवताओं की पूजा की जाती है। इसलिए यह दिन संयम, साधना और तप के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता है। पुराणों में अमावस्या पर कुछ विशेष व्रतों को करने का विधान है। इस दिन भगवान विष्णु व उनके अवतारों की आराधना की जाती है। इस विशेष पूजन से तन, मन और धन के कष्टों से मुक्ति मिलती है।

 

शास्त्रों में अमावस्या का स्वामी पितृदेव को माना जाता है। इसलिए इस दिन पितृ तृप्ति के लिए तर्पण का महत्व है। पितृ की तृप्ति के लिए कुशा को अनिवार्य माना गया है। कुशा दस प्रकार की होती हैं। शास्त्रनुसार जिस कुशा का मूल सुतीक्ष्ण, सात पत्ती हों, अग्रभाग कटा न हो और हरा हो, वह देव व पितृ दोनों कार्यों हेतु में उपयोग करने वाला होता है। जिन लोगों की जन्मकुंडली में पितृ दोष से संतान आदि न होने की आशंका है, उन्हें इस अमावस्या को पूजा-पाठ, दान अवश्य करना चाहिए। अपने नौकरों का अपमान न करें और किसी को कष्ट न दें। इस दिन शनिदेव व पितृदेव की विशिष्ट पूजन से जीवन के कष्ट मिटते हैं। जिन लोगों की कुंडली में शनि, राहु व केतु परेशान कर रहे हैं, उन्हें तो कुशग्रहणी अमावस्या पर पितृ को भोग व तर्पण द्वारा प्रसन्न करना चाहिए। 

आचार्य कमल नंदलाल

ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!